रुद्रसेन

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  • 335 ई. के लगभग प्रवरसेन की मृत्यु के बाद उसका पोता रुद्रसेन वाकाटक राजगद्दी पर बैठा।
  • अपने नाना भारशिव भवनाग की इसे बड़ी सहायता थी।
  • प्रवरसेन के तीन अन्य पुत्र भी थे, जो उसके राज्य में प्रान्तीय शासकों के रूप में शासन करते थे।
  • सम्भवत: प्रवरसेन की मृत्यु के बाद उन्होंने स्वतंत्र होने का प्रयत्न किया, पर भवनाग की सहायता से रुद्रसेन अपने साम्राज्य को अक्षुण्ण बनाये रखने में सफल हुआ।
  • भवनाग की मृत्यु के बाद रुद्रसेन भारशिव राज्य का भी स्वामी हो गया।
  • वर्तमान उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दक्षिणापथ, गुजरात और काठियावाड़ – ये सब प्रदेश इस समय तक वाकाटक साम्राज्य में सम्मिलित थे। पर रुद्रसेन के शासन काल के अन्तिम वर्षों में गुजरात और काठियावाड़ में फिर शक-महाक्षत्रपों का शासन हो गया।
  • रुद्रदामा द्वितीय ने वहाँ फिर से शक-शासन की स्थापना की, और स्वयं महाक्षत्रप रूप में शासन करना प्रारम्भ किया।
  • सम्भवत: अपने चाचाओं के साथ संघर्ष करने के कारण वाकाटक राजा रुद्रसेन की शक्ति कमज़ोर पड़ गयी थी, और वह गुजरात-काठियावाड़ जैसे सुदुरवर्ती प्रदेश को अपनी अधीनता में नहीं रख सका था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ