शर्की वंश
शर्की वंश की स्थापना ख़्वाजा जहान ने की थी, जो कि महमूद के दरबार में वज़ीर के पद पर नियुक्त था। बनारस के उत्तर पश्चिम में स्थित जौनपुर राज्य की नींव फ़िरोज़शाह तुग़लक़ के द्वारा डाली गई थी। सम्भवतः इस राज्य को फ़िरोज ने अपने भाई 'जौना ख़ाँ' या 'जूना ख़ाँ' (मुहम्मद बिन तुग़लक़) की स्मृति में बसाया था। यह नगर गोमती नदी के किनारे स्थापित किया गया था। 1394 ई. में फ़िरोज तुग़लक़ के पुत्र सुल्तान महमूद ने अपने वज़ीर 'ख़्वाजा जहान' को ‘मलिक-उस-शर्क’ (पूर्व का स्वामी) की उपाधि प्रदान की। उसने दिल्ली पर हुए तैमूर के आक्रमण के कारण व्याप्त अस्थिरता का लाभ उठाकर स्वतन्त्र 'शर्की वंश' की नींव डाली।
इतिहास
गंगा की घाटी में सबसे पहले स्वतंत्रता घोषित करने वालों में फ़िरोज़ तुग़लक के समय से ही एक प्रमुख सरदार मलिक सरवर था। मलिक सरवर कुछ समय तक वज़ीर रहा था और फिर उसे 'मलिक-उस-शर्क'[1] की उपाधि देकर पूर्वी प्रान्तों का शासक बना दिया गया था। उसकी उपाघि के कारण उसके उत्तराधिकारी शर्की कहलाये। शर्की सुल्तानों ने जौनपुर, पूर्वी उत्तर प्रदेश में स्थित, को अपनी राजधानी बनाया और नगर को अनेक भव्य महलों, मस्जिदों और मक़बरों से सुन्दर बनाया। इसमें से कुछ मस्जिदें और मक़बरे ही बचे हैं। इनसे प्रतीत होता है कि शर्की सुल्तानों ने दिल्ली की स्थापत्य शैली का ही अनुसरण नहीं किया। उन्होंने विशाल दरवाज़ों और महराबों वाली अपनी शैली का निर्माण भी किया।
अस्तित्व
शर्की सल्तनत का अस्तित्व लगभग 75 वर्ष तक ही बना रहा। अपनी उन्नति के काल में इस सल्तनत की पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ से उत्तरी बिहार के दरभंगा तक और उत्तर नेपाल की सीमा से दक्षिण में बुंदेलखण्ड तक थी। शर्की सुल्तान दिल्ली को भी जीतना चाहते थे, किन्तु इसमें वे सफल नहीं हुए। पंद्रहवीं शताब्दी के मध्य में दिल्ली में लोदियों के स्थापित हो जाने के बाद शर्की निरन्तर बचाव में लगे रहे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का अधिकांश हिस्सा उन्होंने खो दिया और अपनी सारी शक्ति दिल्ली जीतने की तीव्र, लेकिन असफल अभियानों में व्यर्थ कर दी। अन्ततः दिल्ली के सुल्तान बहलोल लोदी ने जौनपुर को जीत लिया और शर्की सल्तनत को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया। शर्की शासक कुछ समय तक प्रवासी के रूप में चुनार में रहा और फिर अपने राज्य को फिर से प्राप्त करने के कई प्रयत्नों में असफल होकर निराशा की स्थिति में मर गया।
दिल्ली सल्तनत के पतन के पश्चात् शर्की सुल्तानों ने एक बड़े भूखण्ड पर क़ानून और व्यवस्था को बनाय रखा। उन्होंने बंगाल के सुल्तानों के पूर्वी उत्तर प्रदेश पर आधिपत्य के प्रयत्नों को सफल नहीं होने दिया। इससे भी अधिक उन्होंने एक सांस्कृतिक परम्परा क़ायम की, जो उनका राज समाप्त होने के बाद भी काफ़ी समय तक जीवित रही।