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नज़ीर अकबराबादी की रचनाएँ
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सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम[1]
तेरा दोस्त है वह जो ख़ेरुलवरा ।
मुहम्मद नबी मालिके दोसरा ।
कहाँ वस्फ़[2]हो मुझ से उसका अदा ।
व लेकिन है मेरी यही इल्तिजा[3] ।
ज़बाँ ताबुवद दर दहाँ जाए गीर ।
सनाऐ मुहम्मद बुवद दिल पज़ीर[4]।
वह शाहे दो आलम अमीरे उमम ।
बने वास्ते जिसके लौहो-क़लम[5]।
सदा जिसके चूमें मलायक[6]क़दम ।
करूँ उसका रुतबा[7] मैं क्यूँकर रक़म[8] ।
हबीबे ख़ुदा अशरफ़ुल अंम्बिया ।
कि अर्शे मजीदश बुवद मुत्तक़ा[9] ।
अगर्चे यह पदा हुआ ख़ाक पर ।
गया ख़ाक से फिर वह इफ़लाक[10]पर ।
मेरा जी फ़िदा उस तने पाक पर
तसद्दुक़[11] हूँ मैं उसके फ़ितराक[12] पर ।
सवारे जहाँ गीर यकराँ बुराक़ ।
कि बगज़श्त अज़ करने नीली-ए-खाक़ ।[13]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हज़रत मुहम्मद साहब के यशोगान में
- ↑ वस्फ़=प्रशंसा
- ↑ इल्तिजा=प्रार्थना
- ↑ जब तक जुबाँ मुँह में क़ायम रहे
- ↑ लौहो-क़लम=वह तख़्ती और लेखनी, जिनके द्वारा ईश्वर की आज्ञा से भविष्य में होने वाली सब घटनाएँ लिखी हों
- ↑ मलायक=देवतागण, फ़रिश्ते
- ↑ रुतबा=महत्ता
- ↑ लिखना
- ↑ वह रसूल जो ख़ुदा के महबूब हैं और नाबियों में जिनका रुत्बा सबसे ज़्यादा है ।
- ↑ आकाश
- ↑ न्यौछावर
- ↑ वह डोरी जो घोड़े की ज़ीन में दोनों ओर लगाते हैं।
- ↑ वह व्यक्ति जो अकेले बुराक़ घोड़े पर सवार होकर सारे ब्रह्माण्ड की सैर कर आए जो कि इस नीले गुम्बद वाले महल (आसमान) से भी परे चले गए
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