इश्क़ की मस्ती -नज़ीर अकबराबादी

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इश्क़ की मस्ती -नज़ीर अकबराबादी
नज़ीर अकबराबादी
कवि नज़ीर अकबराबादी
जन्म 1735
जन्म स्थान दिल्ली
मृत्यु 1830
मुख्य रचनाएँ बंजारानामा, दूर से आये थे साक़ी, फ़क़ीरों की सदा, है दुनिया जिसका नाम आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
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नज़ीर अकबराबादी की रचनाएँ
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हैं आशिक़ और माशूक जहाँ वां शाह[1] बज़ीरी[2]है बाबा ।
न रोना है न धोना है न दर्द असीरी[3] है बाबा ।।
दिन-रात बहारें चुहलें हैं और इश्क़ सग़ीरी[4] है बाबा ।
जो आशिक़ हैं सो जानें हैं यह भेड फ़क़ीरी है बाबा ।।

               हर आन हँसी, हर आन ख़ुशी हर वक़्त अमीरी है बाबा ।
               जब आशिक़ मस्त फ़क़ीर हुए फिर क्या दिलगीरी[5]है बाबा ।।1।।

है चाह फ़क़त एक दिलबर की फिर और किसी की चाह नहीं ।
एक राह उसी से रखते हैं फिर और किसी से राह नहीं ।
यां जितना रंजो तरद्दुद[6] है हम एक से भी आगाह नहीं।
कुछ करने का सन्देह नहीं, कुछ जीने की परवाह नहीं ।।

               हर आन हँसी, हर आन ख़ुशी हर वक़्त अमीरी है बाबा ।
               जब आशिक़ मस्त फ़क़ीर हुए फिर क्या दिलगीरी है बाबा ।।2।।

कुछ ज़ुल्म नहीं, कुछ ज़ोर नहीं, कुछ दाद[7] नहीं फ़रयाद नहीं।
कुछ क़ैद नहीं, कुछ बन्द नहीं, कुछ जब्र[8] नहीं, आज़ाद नहीं ।।
शागिर्द नहीं, उस्ताद नहीं, वीरान नहीं, आबाद नहीं ।
हैं जितनी बातें दुनिया की सब भूल गए कुछ याद नहीं ।।

               हर आन हँसी, हर आन ख़ुशी हर वक़्त अमीरी है बाबा ।
               जब आशिक़ मस्त फ़क़ीर हुए फिर क्या दिलगीरी है बाबा ।।3।।

जिस सिम्त नज़र भर देखे हैं उस दिलबर की फुलवारी है ।
कहीं सब्ज़ी की हरियाली है, कहीं फूलों की गुलकारी[9] है ।।
दिन-रात मगन ख़ुश बैठे हैं और आस उसी की भारी है ।
बस आप ही वह दातारी हैं और आप ही वह भंडारी हैं ।।
 
               हर आन हँसी, हर आन ख़ुशी हर वक़्त अमीरी है बाबा ।
               जब आशिक़ मस्त फ़क़ीर हुए फिर क्या दिलगीरी है बाबा ।।4।।

नित इश्रत[10] है, नित फ़रहत[11] है, नित राहत है, नित शादी है ।
नित मेहरो करम[12] है दिलबर का नित ख़ूबी ख़ूब मुरादी है ।।
जब उमड़ा दरिया उल्फ़त का हर चार तरफ़ आबादी है ।
हर रात नई एक शादी है हर रोज़ मुबारकबादी है ।।

               हर आन हँसी, हर आन ख़ुशी हर वक़्त अमीरी है बाबा ।
               जब आशिक़ मस्त फ़क़ीर हुए फिर क्या दिलगीरी है बाबा ।।5।।

है तन तो गुल के रंग बना और मुँह पर हरदम लाली है ।
जुज़ ऐशो तरब[13] कुछ और नहीं जिस दिन से सुरत संभाली है ।।
होंठो में राग तमाशे का और गत पर बजती ताली है ।
हर रोज़ बसंत और होली है और हर इक रात दिवाली है ।।

               हर आन हँसी, हर आन ख़ुशी हर वक़्त अमीरी है बाबा ।
               जब आशिक़ मस्त फ़क़ीर हुए फिर क्या दिलगीरी है बाबा ।।6।।

हम चाकर जिसके हुस्न के हैं वह दिलबर सबसे आला है ।
उसने ही हमको जी बख़्शा उसने ही हमको पाला है ।।
दिल अपना भोला-भाला है और इश्क़ बड़ा मतवाला है ।
क्या कहिए और ’नज़ीर’ आगे अब कौन समझने वाला है ।।

               हर आन हँसी, हर आन ख़ुशी हर वक़्त अमीरी है बाबा ।
               जब आशिक़ मस्त फ़क़ीर हुए फिर क्या दिलगीरी है बाबा ।।7।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बादशाह
  2. मंत्री
  3. ऊँचा या तेज़
  4. छोटा या थोड़ा
  5. रंज
  6. सोच
  7. न्याय
  8. अत्याचार
  9. बेल-बूटे बनाने का काम
  10. ख़ुशी
  11. ख़ुशी
  12. कृपा
  13. हर्षोल्लास

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