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'''शमी वृक्ष को खेजड़ी या सांगरी नाम से''' भी जाना जाता है। यह मूलतः रेगिस्तान में पाया जाने वाला वृक्ष है जो [[थार मरुस्थल|थार के मरुस्थल]] एवं अन्य स्थानों पर भी पाया जाता है। [[अंग्रेजी]] में शमी वृक्ष ''प्रोसोपिस सिनेरेरिया'' के नाम से जाना जाता है।
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|चित्र का नाम=शमी वृक्ष
[[विजयादशमी]] या दशहरे के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की प्रथा है। मान्यता है कि यह [[राम|भगवान श्री राम]] का प्रिय वृक्ष था और [[लंका]] पर आक्रमण से पहले उन्होंने शमी वृक्ष की पूजा कर के उससे विजयी होने का आशीर्वाद प्राप्त किया था। आज भी कई स्थानों पर 'रावण दहन' के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते [[स्वर्ण]] के प्रतीक के रूप में एक दूसरे को बाँटने की प्रथा हैं, इसके साथ ही  कार्यों में सफलता मिलने कि कामना की जाती है।<ref> विजयादशमी, अध्याय 10; स्मृतिकौस्तुभ (355)।</ref>  
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शमी वृक्ष का वर्णन [[महाभारत|महाभारत काल]] में भी मिलता है। अपने 12 [[वर्ष |वर्ष]] के वनवास के बाद एक साल के [[अज्ञातवास |अज्ञातवास]] में [[पांडव|पांडवों]] ने अपने सारे [[अस्त्र शस्त्र]] इसी पेड़ पर छुपाये थे जिसमें [[अर्जुन]] का [[गांडीव धनुष]] भी था। [[कुरुक्षेत्र]] में [[कौरव|कौरवों]] के साथ युद्ध के लिये जाने से पहले भी पांडवों ने शमी के वृक्ष की पूजा की थी और उससे शक्ति और विजय प्राप्ति की कामना की थी। तभी से यह माना जाने लगा है कि जो भी इस वृक्ष कि पूजा करता है उसे शक्ति और विजय प्राप्त होती है -
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'''शमी वृक्ष''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Prosopis cineraria'') को [[हिन्दू धर्म]] में बड़ा ही पवित्र माना गया है। भारतीय परंपरा में '[[विजयादशमी]]' पर शमी पूजन का पौराणिक महत्व रहा है। [[राजस्थान]] में शमी वृक्ष को 'खेजड़ी' के नाम से जाना जाता है। यह मूलतः [[रेगिस्तान]] में पाया जाने वाला वृक्ष है, जो [[थार मरुस्थल]] एवं अन्य स्थानों पर भी पाया जाता है। [[अंग्रेज़ी]] में शमी वृक्ष ''प्रोसोपिस सिनेरेरिया'' के नाम से जाना जाता है।  
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==संरचना==
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शमी वृक्ष के संदर्भ में कई पौराणिक कथाओं का आधार विद्यमान है। [[यज्ञ]] परंपरा में भी शमी के पत्तों का हवन गुणकारी माना गया है। शमी का वृक्ष आठ से दस मीटर तक ऊंचा होता है। शाखाओं पर कांटे होते हैं। इसकी पत्तियां द्विपक्षवत होती हैं। शमी के [[फूल]] छोटे पीताभ रंग के होते हैं। प्रौढ पत्तियों का [[रंग]] राख जैसा होता है, इसीलिए इसकी प्रजाति का नाम 'सिनरेरिया' रखा गया है अर्थात 'राख जैसा'।
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==महत्त्व==
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[[हिन्दू धर्म]] में शमी वृक्ष से जुड़ी कई मान्यताएँ है, जैसे-
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*[[विजयादशमी]] या दशहरे के दिन शमी के वृक्ष की [[पूजा]] करने की प्रथा है। मान्यता है कि यह [[राम|भगवान श्री राम]] का प्रिय वृक्ष था और [[लंका]] पर आक्रमण से पहले उन्होंने शमी वृक्ष की पूजा करके उससे विजयी होने का आशीर्वाद प्राप्त किया था। आज भी कई स्थानों पर 'रावण दहन' के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते [[स्वर्ण]] के प्रतीक के रूप में एक दूसरे को बाँटने की प्रथा हैं, इसके साथ ही  कार्यों में सफलता मिलने कि कामना की जाती है।<ref> विजयादशमी, अध्याय 10; स्मृतिकौस्तुभ (355)।</ref>  
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*शमी वृक्ष का वर्णन [[महाभारत|महाभारत काल]] में भी मिलता है। अपने 12 [[वर्ष]] के वनवास के बाद एक साल के [[अज्ञातवास |अज्ञातवास]] में [[पांडव|पांडवों]] ने अपने सारे [[अस्त्र शस्त्र]] इसी पेड़ पर छुपाये थे, जिसमें [[अर्जुन]] का [[गांडीव धनुष]] भी था। [[कुरुक्षेत्र]] में [[कौरव|कौरवों]] के साथ युद्ध के लिये जाने से पहले भी पांडवों ने शमी के वृक्ष की पूजा की थी और उससे शक्ति और विजय प्राप्ति की कामना की थी। तभी से यह माना जाने लगा है कि जो भी इस वृक्ष कि पूजा करता है उसे शक्ति और विजय प्राप्त होती है।
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<blockquote><poem>शमी शमयते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी ।
 
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी ॥
 
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी ॥
 
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया ।
 
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया ।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता ॥<ref> हे शमी, आप पापों का क्षय करने वाले और दुश्मनों को पराजित करने वाले हैं। आप अर्जुन का [[धनुष]] धारण करने वाले हैं और [[राम|श्री राम]] को प्रिय हैं। जिस तरह श्री राम ने आपकी पूजा की मैं भी करता हूँ। मेरी विजय के रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं से दूर कर के उसे सुखमय बना दीजिये।</ref></poem>
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तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता ॥</poem></blockquote>
;अन्य कथा
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अन्य कथा के अनुसार [[कालिदास|कवि कालिदास]] ने शमी के वृक्ष के नीचे बैठ कर तपस्या कर के ही ज्ञान की प्राप्ति की थी।
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अर्थात "हे शमी, आप पापों का क्षय करने वाले और दुश्मनों को पराजित करने वाले हैं। आप अर्जुन का [[धनुष]] धारण करने वाले हैं और [[राम|श्री राम]] को प्रिय हैं। जिस तरह श्री राम ने आपकी पूजा की मैं भी करता हूँ। मेरी विजय के रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं से दूर कर के उसे सुखमय बना दीजिये।
;मान्यताएँ
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==अन्य विशेष तथ्य==
शमी वृक्ष की लकड़ी [[यज्ञ]] की समिधा के लिए पवित्र मानी जाती है। [[शनिवार]] को शमी की समिधा का विशेष महत्त्व है। [[शनि देव]] को शान्त रखने के लिये भी शमी की पूजा करी जाती है। शमी को [[गणेश|गणेश जी]] का भी प्रिय वृक्ष माना जाता है और इसकी पत्तियाँ गणेश जी की पूजा में भी चढ़ाई जाती हैं।
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*अन्य कथा के अनुसार [[कालिदास|कवि कालिदास]] ने शमी के वृक्ष के नीचे बैठ कर तपस्या करके ही ज्ञान की प्राप्ति की थी।
;विभिन्न प्रांतों में
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*शमी वृक्ष की लकड़ी [[यज्ञ]] की समिधा के लिए पवित्र मानी जाती है। [[शनिवार]] को शमी की समिधा का विशेष महत्त्व है। [[शनि देव]] को शान्त रखने के लिये भी शमी की पूजा की जाती है।  
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*शमी को [[गणेश|गणेश जी]] का भी प्रिय वृक्ष माना जाता है और इसकी पत्तियाँ गणेश जी की पूजा में भी चढ़ाई जाती हैं।
 
*[[बिहार]], [[झारखण्ड]] और आसपास के कई [[राज्य|राज्यों]] में भी इस वृक्ष को पूजा जाता है। यह लगभग हर घर के दरवाज़े के दाहिनी ओर लगा देखा जा सकता है। किसी भी काम पर जाने से पहले इसके दर्शन को शुभ मना जाता है।
 
*[[बिहार]], [[झारखण्ड]] और आसपास के कई [[राज्य|राज्यों]] में भी इस वृक्ष को पूजा जाता है। यह लगभग हर घर के दरवाज़े के दाहिनी ओर लगा देखा जा सकता है। किसी भी काम पर जाने से पहले इसके दर्शन को शुभ मना जाता है।
*[[राजस्थान]] के विशनोई समुदाय के लोग शमी वृक्ष को अमूल्य मानते हैं।
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*[[राजस्थान]] के [[विश्नोई|विश्नोई समुदाय]] के लोग शमी वृक्ष को अमूल्य मानते हैं।
*[[ऋग्वेद]] के अनुसार शमी के पेड़ में आग पैदा करने कि क्षमता होती है और ऋग्वेद की ही एक कथा के अनुसार आदिम काल में सबसे पहली बार पुरुओं<ref> चंद्रवंशियों के पूर्वज</ref> ने शमी और [[पीपल |पीपल]] की टहनियों को रगड़ कर ही आग पैदा की थी।
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*[[ऋग्वेद]] के अनुसार शमी के पेड़ में [[आग]] पैदा करने कि क्षमता होती है और ऋग्वेद की ही एक कथा के अनुसार आदिम काल में सबसे पहली बार पुरुओं<ref> चंद्रवंशियों के पूर्वज</ref> ने शमी और [[पीपल |पीपल]] की टहनियों को रगड़ कर ही आग पैदा की थी।
 
*कवियों और लेखकों के लिये शमी बड़ा महत्व रखता है। [[हिन्दू धर्म]] में [[चित्रगुप्त देवता|भगवान चित्रगुप्त]] को शब्दों और लेखनी का [[देवता]] माना जाता है और शब्द-साधक  [[यम द्वितीया|यम-द्वितीया]]<ref>[[दीपावली]] के दो दिन बाद</ref> को यथा-संभव शमी के पेड़ के नीचे उसकी पत्तियों से उनकी पूजा करते हैं।
 
*कवियों और लेखकों के लिये शमी बड़ा महत्व रखता है। [[हिन्दू धर्म]] में [[चित्रगुप्त देवता|भगवान चित्रगुप्त]] को शब्दों और लेखनी का [[देवता]] माना जाता है और शब्द-साधक  [[यम द्वितीया|यम-द्वितीया]]<ref>[[दीपावली]] के दो दिन बाद</ref> को यथा-संभव शमी के पेड़ के नीचे उसकी पत्तियों से उनकी पूजा करते हैं।
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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13:13, 14 मार्च 2015 के समय का अवतरण

शमी वृक्ष
शमी वृक्ष
जगत पादप (Plantae)
संघ मैग्नोलियोफ़ाइटा (Magnoliophyta)
वर्ग यूडीकोट्स (Eudicots)
गण फ़ैबेल्स (Fabales)
कुल फ़ैबेसी (Fabaceae)
जाति प्रोसोपिस (Prosopis)
प्रजाति सिनरेरिया (Prosopis)
द्विपद नाम प्रोसोपिस सिनरेरिया (Prosopis Prosopis)
अन्य जानकारी राजस्थान में शमी वृक्ष को 'खेजड़ी' के नाम से जाना जाता है। 'शमी वृक्ष' को हिन्दू धर्म में बड़ा ही पवित्र माना गया है।

शमी वृक्ष (अंग्रेज़ी:Prosopis cineraria) को हिन्दू धर्म में बड़ा ही पवित्र माना गया है। भारतीय परंपरा में 'विजयादशमी' पर शमी पूजन का पौराणिक महत्व रहा है। राजस्थान में शमी वृक्ष को 'खेजड़ी' के नाम से जाना जाता है। यह मूलतः रेगिस्तान में पाया जाने वाला वृक्ष है, जो थार मरुस्थल एवं अन्य स्थानों पर भी पाया जाता है। अंग्रेज़ी में शमी वृक्ष प्रोसोपिस सिनेरेरिया के नाम से जाना जाता है।

संरचना

शमी वृक्ष के संदर्भ में कई पौराणिक कथाओं का आधार विद्यमान है। यज्ञ परंपरा में भी शमी के पत्तों का हवन गुणकारी माना गया है। शमी का वृक्ष आठ से दस मीटर तक ऊंचा होता है। शाखाओं पर कांटे होते हैं। इसकी पत्तियां द्विपक्षवत होती हैं। शमी के फूल छोटे पीताभ रंग के होते हैं। प्रौढ पत्तियों का रंग राख जैसा होता है, इसीलिए इसकी प्रजाति का नाम 'सिनरेरिया' रखा गया है अर्थात 'राख जैसा'।

महत्त्व

हिन्दू धर्म में शमी वृक्ष से जुड़ी कई मान्यताएँ है, जैसे-

  • विजयादशमी या दशहरे के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की प्रथा है। मान्यता है कि यह भगवान श्री राम का प्रिय वृक्ष था और लंका पर आक्रमण से पहले उन्होंने शमी वृक्ष की पूजा करके उससे विजयी होने का आशीर्वाद प्राप्त किया था। आज भी कई स्थानों पर 'रावण दहन' के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते स्वर्ण के प्रतीक के रूप में एक दूसरे को बाँटने की प्रथा हैं, इसके साथ ही कार्यों में सफलता मिलने कि कामना की जाती है।[1]
  • शमी वृक्ष का वर्णन महाभारत काल में भी मिलता है। अपने 12 वर्ष के वनवास के बाद एक साल के अज्ञातवास में पांडवों ने अपने सारे अस्त्र शस्त्र इसी पेड़ पर छुपाये थे, जिसमें अर्जुन का गांडीव धनुष भी था। कुरुक्षेत्र में कौरवों के साथ युद्ध के लिये जाने से पहले भी पांडवों ने शमी के वृक्ष की पूजा की थी और उससे शक्ति और विजय प्राप्ति की कामना की थी। तभी से यह माना जाने लगा है कि जो भी इस वृक्ष कि पूजा करता है उसे शक्ति और विजय प्राप्त होती है।

शमी शमयते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी ।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी ॥
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया ।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता ॥

अर्थात "हे शमी, आप पापों का क्षय करने वाले और दुश्मनों को पराजित करने वाले हैं। आप अर्जुन का धनुष धारण करने वाले हैं और श्री राम को प्रिय हैं। जिस तरह श्री राम ने आपकी पूजा की मैं भी करता हूँ। मेरी विजय के रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं से दूर कर के उसे सुखमय बना दीजिये।

अन्य विशेष तथ्य

  • अन्य कथा के अनुसार कवि कालिदास ने शमी के वृक्ष के नीचे बैठ कर तपस्या करके ही ज्ञान की प्राप्ति की थी।
  • शमी वृक्ष की लकड़ी यज्ञ की समिधा के लिए पवित्र मानी जाती है। शनिवार को शमी की समिधा का विशेष महत्त्व है। शनि देव को शान्त रखने के लिये भी शमी की पूजा की जाती है।
  • शमी को गणेश जी का भी प्रिय वृक्ष माना जाता है और इसकी पत्तियाँ गणेश जी की पूजा में भी चढ़ाई जाती हैं।
  • बिहार, झारखण्ड और आसपास के कई राज्यों में भी इस वृक्ष को पूजा जाता है। यह लगभग हर घर के दरवाज़े के दाहिनी ओर लगा देखा जा सकता है। किसी भी काम पर जाने से पहले इसके दर्शन को शुभ मना जाता है।
  • राजस्थान के विश्नोई समुदाय के लोग शमी वृक्ष को अमूल्य मानते हैं।
  • ऋग्वेद के अनुसार शमी के पेड़ में आग पैदा करने कि क्षमता होती है और ऋग्वेद की ही एक कथा के अनुसार आदिम काल में सबसे पहली बार पुरुओं[2] ने शमी और पीपल की टहनियों को रगड़ कर ही आग पैदा की थी।
  • कवियों और लेखकों के लिये शमी बड़ा महत्व रखता है। हिन्दू धर्म में भगवान चित्रगुप्त को शब्दों और लेखनी का देवता माना जाता है और शब्द-साधक यम-द्वितीया[3] को यथा-संभव शमी के पेड़ के नीचे उसकी पत्तियों से उनकी पूजा करते हैं।


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विजयादशमी, अध्याय 10; स्मृतिकौस्तुभ (355)।
  2. चंद्रवंशियों के पूर्वज
  3. दीपावली के दो दिन बाद

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