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समीपवर्ती एक कस्बे में [[दत्तात्रेय]] जंयती के दौरान उनकी आंख के समीप पटाखा फटने के कारण उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई थी। आंखों की रोशनी जाने के बाद उपचार के लिए वह समीप के मिरज राज्य चले गए। | समीपवर्ती एक कस्बे में [[दत्तात्रेय]] जंयती के दौरान उनकी आंख के समीप पटाखा फटने के कारण उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई थी। आंखों की रोशनी जाने के बाद उपचार के लिए वह समीप के मिरज राज्य चले गए। | ||
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ग्वालियर घराने में शिक्षित पं. बालकृष्णबुवा इचलकरंजीकर से मिरज में संगीत की शिक्षा आरंभ की। बारह वर्ष तक संगीत की विधिवत तालीम हासिल करने के बाद पलुस्कर के अपने गुरु से संबंध खराब हो गए। बारह वर्ष कठोर तप:साधना से संगीत शिक्षाक्रम पूर्ण करके सन् 1896 में समाज की कुत्या और अवहेलना एवं संगीत गुरुओं की संकीर्णता से भारतीय संगीत के उद्धार के लिए दृढ़ संकल्प सहित यात्रा आरंभ की। इस दौरान उन्होंने [[बड़ौदा]] और [[ग्वालियर]] की यात्रा की। [[गिरनार]] में दत्तशिखर पर एक अलौकिक पुरुष के संकेतानुसार [[लाहौर]] का सर्वप्रथम कार्यक्षेत्र चुना। | ग्वालियर घराने में शिक्षित पं. बालकृष्णबुवा इचलकरंजीकर से मिरज में संगीत की शिक्षा आरंभ की। बारह वर्ष तक संगीत की विधिवत तालीम हासिल करने के बाद पलुस्कर के अपने गुरु से संबंध खराब हो गए। बारह वर्ष कठोर तप:साधना से संगीत शिक्षाक्रम पूर्ण करके सन् 1896 में समाज की कुत्या और अवहेलना एवं संगीत गुरुओं की संकीर्णता से भारतीय संगीत के उद्धार के लिए दृढ़ संकल्प सहित यात्रा आरंभ की। इस दौरान उन्होंने [[बड़ौदा]] और [[ग्वालियर]] की यात्रा की। [[गिरनार]] में दत्तशिखर पर एक अलौकिक पुरुष के संकेतानुसार [[लाहौर]] का सर्वप्रथम कार्यक्षेत्र चुना। | ||
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विष्णु दिगम्बर पलुस्कर (अंग्रेज़ी: 18 अगस्त, 1872 - 21 अगस्त, 1931 ) हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक विशिष्ट प्रतिभा थे, जिन्होंने भारतीय संगीत में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वे भारतीय समाज में संगीत और संगीतकार की उच्च प्रतिष्ठा के पुनरुद्धारक, समर्थ संगीतगुरु, अप्रतिम कंठस्वर एवं गायनकौशल के घनी भक्तहृदय गायक थे। विष्णु दिगम्बर पलुस्कर ने स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में महात्मा गांधी की सभाओं सहित विभिन्न मंचों पर रामधुन गाकर हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाया। पलुस्कर ने लाहौर में गंधर्व विद्यालय की स्थापना कर भारतीय संगीत को एक विशिष्ट स्थान दिया। इसके अलावा उन्होंने अपने समय की तमाम धुनों की स्वरलिपियों को संग्रहित कर आधुनिक पीढ़ी के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान दिया।
जीवन परिचय
विष्णु दिगम्बर पलुस्कर का जन्म 18 अगस्त 1872 को अंग्रेज़ी शासन वाले बंबई प्रेसीडेंसी के कुरूंदवाड़ में हुआ था। पलुस्कर को घर में संगीत का माहौल मिला था। क्योंकि उनके पिता दिगम्बर गोपाल पलुस्कर धार्मिक भजन और कीर्तन गाते थे। विष्णु दिगम्बर पलुस्कर को बचपन में एक भीषण त्रासदी से गुजरना पड़ा। समीपवर्ती एक कस्बे में दत्तात्रेय जंयती के दौरान उनकी आंख के समीप पटाखा फटने के कारण उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई थी। आंखों की रोशनी जाने के बाद उपचार के लिए वह समीप के मिरज राज्य चले गए।
संगीत की शिक्षा
ग्वालियर घराने में शिक्षित पं. बालकृष्णबुवा इचलकरंजीकर से मिरज में संगीत की शिक्षा आरंभ की। बारह वर्ष तक संगीत की विधिवत तालीम हासिल करने के बाद पलुस्कर के अपने गुरु से संबंध खराब हो गए। बारह वर्ष कठोर तप:साधना से संगीत शिक्षाक्रम पूर्ण करके सन् 1896 में समाज की कुत्या और अवहेलना एवं संगीत गुरुओं की संकीर्णता से भारतीय संगीत के उद्धार के लिए दृढ़ संकल्प सहित यात्रा आरंभ की। इस दौरान उन्होंने बड़ौदा और ग्वालियर की यात्रा की। गिरनार में दत्तशिखर पर एक अलौकिक पुरुष के संकेतानुसार लाहौर का सर्वप्रथम कार्यक्षेत्र चुना।
ब्रजभूमि भ्रमण
धनार्जन के लिए उन्होंने संगीत के सार्वजनिक कार्यक्रम भी किए। पलुस्कर संभवत: पहले ऐसे शास्त्रीय गायक हैं, जिन्होंने संगीत के सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किए। बाद में विष्णु दिगम्बर पलुस्कर मथुरा आए और उन्होंने शास्त्रीय संगीत की बंदिशें समझने के लिए ब्रज भाषा सीखी। बंदिशें अधिकतर ब्रजभाषा में ही लिखी गई हैं। इसके अलावा उन्होंने मथुरा में ध्रुपद शैली का गायन भी सीखा।
गंधर्व विद्यालय की स्थापना
विष्णु दिगम्बर पलुस्कर मथुरा के बाद पंजाब घूमते हुए लाहौर पहुंचे और 1901 में उन्होंने गंधर्व विद्यालय की स्थापना की। इस स्कूल के जरिए उन्होंने कई संगीत विभूतियों को तैयार किया। हालांकि स्कूल चलाने के लिए उन्हें बाजार से कर्ज लेना पड़ा। बाद में उन्होंने मुंबई में अपना स्कूल स्थापित किया। कुछ वर्ष बाद आर्थिक कारणों से यह स्कूल नहीं चल पाया और इसके कारण विष्णु दिगम्बर पलुस्कर की संपत्ति भी जब्त हो गई।
पलुस्कर के शिष्य
विष्णु दिगम्बर पलुस्कर के शिष्यों में पंडित ओंकारनाथ ठाकुर, पंडित विनायक राव पटवर्धन, पंडित नारायण राव और उनके पुत्र डी. वी. पलुस्कर जैसे दिग्गज गायक शामिल थे।
रचना
विष्णु दिगम्बर पलुस्कर ने तीन खंडों में संगीत बाल प्रकाश नामक पुस्तक लिखी और 18 खंडों में रागों की स्वरलिपियों को संग्रहित किया।
निधन
हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के इस पुरोधा गायक और महान संगीत साधक का निधन 21 अगस्त 1931 को हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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