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*[[वासिष्क]] के बाद कनिष्क नाम का एक व्यक्ति [[कुषाण साम्राज्य]] का अधिपति बना, यह बात [[पेशावर]] ज़िले में अटक से दस मील दक्षिण सिन्ध के तट पर आरा नाम के स्थान से प्राप्त एक लेख से सूचित होती है। | *[[वासिष्क]] के बाद कनिष्क नाम का एक व्यक्ति [[कुषाण साम्राज्य]] का अधिपति बना, यह बात [[पेशावर]] ज़िले में अटक से दस मील दक्षिण सिन्ध के तट पर आरा नाम के स्थान से प्राप्त एक लेख से सूचित होती है। | ||
− | *इस लेख में '''महाराज राजाधिराज देवपुत्र कइसर वाझेष्कपुत्र''' के शासनकाल में दशव्हर नामक व्यक्ति द्वारा एक कुआँ खुदवाने की बात लिखी गई है। इस लेख में कनिष्क को वाझेष्कपुत्र लिखा गया है। इससे इतिहासकारों ने यह परिणाम निकाला है कि कनिष्क नाम के एक अन्य राजा ने वासिष्क के बाद शासन किया था, और यह वाझेष्कपुत्र [[कनिष्क|कनिष्क प्रथम]] से भिन्न था। पर अनेक इतिहासकार इससे सहमत नहीं हैं। उनकी सम्मति में कनिष्क नाम का केवल एक राजा हुआ था, और इसीलिए वे वासिष्क का समय कनिष्क से पहले रखते हैं। पर कुषाण राजाओं के सिक्कों पर दिए गए संवतों को दृष्टि में रखते हुए इस मत को स्वीकृत करना सम्भव प्रतीत नहीं होता। आजकल बहुसंख्यक ऐतिहासिक दो कनिष्कों की सत्ता को स्वीकृत करते हैं, और यह मानते हैं कि कनिष्क द्वितीय ने वासिष्क के बाद 108 से 120 ईस्वी तक शासन किया। | + | *इस लेख में '''महाराज राजाधिराज देवपुत्र कइसर वाझेष्कपुत्र''' के शासनकाल में दशव्हर नामक व्यक्ति द्वारा एक [[कुआँ]] खुदवाने की बात लिखी गई है। इस लेख में कनिष्क को वाझेष्कपुत्र लिखा गया है। इससे इतिहासकारों ने यह परिणाम निकाला है कि कनिष्क नाम के एक अन्य राजा ने वासिष्क के बाद शासन किया था, और यह वाझेष्कपुत्र [[कनिष्क|कनिष्क प्रथम]] से भिन्न था। पर अनेक इतिहासकार इससे सहमत नहीं हैं। उनकी सम्मति में कनिष्क नाम का केवल एक राजा हुआ था, और इसीलिए वे वासिष्क का समय कनिष्क से पहले रखते हैं। पर कुषाण राजाओं के सिक्कों पर दिए गए संवतों को दृष्टि में रखते हुए इस मत को स्वीकृत करना सम्भव प्रतीत नहीं होता। आजकल बहुसंख्यक ऐतिहासिक दो कनिष्कों की सत्ता को स्वीकृत करते हैं, और यह मानते हैं कि कनिष्क द्वितीय ने वासिष्क के बाद 108 से 120 ईस्वी तक शासन किया। |
*कनिष्क द्वितीय के समय के उपर्युक्त लेख में यह बात ध्यान देने याग्य है, कि कनिष्क के नाम के साथ अन्य विशेषणों के अतिरिक्त 'कइसर' का भी प्रयोग किया गया है। कइसर, कैसर या सीजर प्राचीन रोमन सम्राटों की उपाधि थी। | *कनिष्क द्वितीय के समय के उपर्युक्त लेख में यह बात ध्यान देने याग्य है, कि कनिष्क के नाम के साथ अन्य विशेषणों के अतिरिक्त 'कइसर' का भी प्रयोग किया गया है। कइसर, कैसर या सीजर प्राचीन रोमन सम्राटों की उपाधि थी। | ||
− | *इस युग में भारत का रोमन साम्राज्य के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध था, इसी लिए भारत के उत्तरापथपति ने अन्य उपाधियों के साथ इसे भी ग्रहण किया था। इस समय [[भारत]] और [[रोम]] में व्यापार सम्बन्ध भी विद्यमान था, और इसी कारण से पहली सदी ईस्वी के बहुत से रोमन सिक्के दक्षिणी भारत में उपलब्ध हुए हैं। | + | *इस युग में भारत का रोमन साम्राज्य के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध था, इसी लिए भारत के उत्तरापथपति ने अन्य उपाधियों के साथ इसे भी ग्रहण किया था। इस समय [[भारत]] और [[रोम]] में व्यापार सम्बन्ध भी विद्यमान था, और इसी कारण से पहली [[सदी]] ईस्वी के बहुत से रोमन सिक्के दक्षिणी भारत में उपलब्ध हुए हैं। |
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10:50, 2 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
- वासिष्क के बाद कनिष्क नाम का एक व्यक्ति कुषाण साम्राज्य का अधिपति बना, यह बात पेशावर ज़िले में अटक से दस मील दक्षिण सिन्ध के तट पर आरा नाम के स्थान से प्राप्त एक लेख से सूचित होती है।
- इस लेख में महाराज राजाधिराज देवपुत्र कइसर वाझेष्कपुत्र के शासनकाल में दशव्हर नामक व्यक्ति द्वारा एक कुआँ खुदवाने की बात लिखी गई है। इस लेख में कनिष्क को वाझेष्कपुत्र लिखा गया है। इससे इतिहासकारों ने यह परिणाम निकाला है कि कनिष्क नाम के एक अन्य राजा ने वासिष्क के बाद शासन किया था, और यह वाझेष्कपुत्र कनिष्क प्रथम से भिन्न था। पर अनेक इतिहासकार इससे सहमत नहीं हैं। उनकी सम्मति में कनिष्क नाम का केवल एक राजा हुआ था, और इसीलिए वे वासिष्क का समय कनिष्क से पहले रखते हैं। पर कुषाण राजाओं के सिक्कों पर दिए गए संवतों को दृष्टि में रखते हुए इस मत को स्वीकृत करना सम्भव प्रतीत नहीं होता। आजकल बहुसंख्यक ऐतिहासिक दो कनिष्कों की सत्ता को स्वीकृत करते हैं, और यह मानते हैं कि कनिष्क द्वितीय ने वासिष्क के बाद 108 से 120 ईस्वी तक शासन किया।
- कनिष्क द्वितीय के समय के उपर्युक्त लेख में यह बात ध्यान देने याग्य है, कि कनिष्क के नाम के साथ अन्य विशेषणों के अतिरिक्त 'कइसर' का भी प्रयोग किया गया है। कइसर, कैसर या सीजर प्राचीन रोमन सम्राटों की उपाधि थी।
- इस युग में भारत का रोमन साम्राज्य के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध था, इसी लिए भारत के उत्तरापथपति ने अन्य उपाधियों के साथ इसे भी ग्रहण किया था। इस समय भारत और रोम में व्यापार सम्बन्ध भी विद्यमान था, और इसी कारण से पहली सदी ईस्वी के बहुत से रोमन सिक्के दक्षिणी भारत में उपलब्ध हुए हैं।
- कुषाण साम्राज्यों के सिक्कों की बनावट और तोल रोमन सिक्कों से बहुत सादृश्य रखते हैं।
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