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06:16, 10 अप्रैल 2011 का अवतरण
उदयन, कौशांबी नगर का राजा परंतप का पुत्र था। उसके साथ उसकी गर्भिणी राजमहिषी बैठी धूप सेंक रही थी। उसने लाल रंग का कम्बल ओढ़ा हुआ था। एक हाथी की सूरत के पक्षी ने मांस का टुकड़ा समझकर उठाया और आकाश में उड़ता हुआ पर्वत की जड़ मे लगे हुए वृक्ष पर ले गया। राजमहिषी ने पेड़ का सहारा पाकर ताली बजाकर शोर मचाया। पहले वह इस भय से चुप रही थी कि कहीं पक्षी ने छोड़ दिया तो वह नीचे गिरकर मर जायेगी। उसका शोर सुनकर पक्षी उड़ गया तथा एक तापस जा पहुँचा। उसने गर्भवती महिषी को अपने आवास में स्थान दिया। पुत्र जन्म के उपरान्त भी वह वर्षों तक तापस के पास रही। तापस का व्रत भंग हो गया। पुत्र का नाम उदयन रखा गया। अपने पिता (राजा) की मृत्यु के उपरान्त वह मां के कम्बल तथा अंगूठी के साथ कौशांबी पहुँचा तथा उसने राजा का पद प्राप्त किया। वह संगीत के बल से हाथियों को भगा देता था। एक बार राजा चंडप्रद्योत ने लकड़ी का हाथी बनवाकर उसमें सैनिक बैठाकर उदयन के पास भेजा। वह अपनी कला का प्रदर्शन करने लगा तो सैनिक उसे पकड़कर ले गये। चंडप्रद्योत ने उदयन से उसका कौशल सीखा।
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