"आचार्या" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replacement - "==संबंधित लेख==" to "==संबंधित लेख== {{पाणिनिकालीन शब्दावली}}")
 
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
 
{{पाणिनिकालीन शब्दावली}}
 
{{पाणिनिकालीन शब्दावली}}
  
[[Category:पाणिनिकालीन शब्दावली]][[Category:प्राचीन भारत का इतिहास]][[Category:इतिहास कोश]]
+
[[Category:पाणिनिकालीन शब्दावली]]
 +
[[Category:पाणिनिकालीन भारत]][[Category:प्राचीन भारत का इतिहास]][[Category:इतिहास कोश]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

10:10, 6 मई 2018 के समय का अवतरण

पाणिनिकालीन भारतवर्ष में स्त्री चरणों के संस्थापक, सांग सरहस्य वेद का अध्ययन कराने वाले, उपनयन कराने के अधिकारी महान आचार्य शिक्षा के क्षेत्र में सर्वोच्च पद के अधिकारी थे। उन्हीं की कोटि पर पहुंचकर अध्यापन कार्य करने वाली विशिष्ट स्त्रियां आचार्या जैसे सम्मानित पद की अधिकारिणी होती थीं।[1]

  • पुरुषों के समान ही सांग सरहस्य वेद का अध्यापन कराने और माणविकाओं का उपनयन कराने का जिसे अधिकार हो, वही आचार्या हो सकती थी।
  • शिक्षा की ऐसी उन्नत दशा में छात्राओं के लिए अलग आवास स्थानों का प्रबंध भी किया जाना आवश्यक था। पाणिनि ने विशेष रूप से छात्रिशालाओं का उल्लेख किया है।[2] आचार्यों के निरीक्षण में जो शिक्षा संस्थाएं चलती थीं, उन्हीं के अंतर्गत यह छात्रिशालाएं रहती होंगी।[3]


इन्हें भी देखें: पाणिनि, अष्टाध्यायी एवं भारत का इतिहास


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 4/1/49 सूत्र में पंडित आचार्यानी का प्रत्युदाहरण
  2. छात्र्यादय:शालायाम् 6/2/86
  3. पाणिनीकालीन भारत |लेखक: वासुदेवशरण अग्रवाल |प्रकाशक: चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-1 |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 102 |

संबंधित लेख