कान्ह हेरल छल मन बड़ साध। कान्ह हेरइत भेलएत परमाद।। तबधरि अबुधि सुगुधि हो नारि। कि कहि कि सुनि किछु बुझय न पारि।। साओन घन सभ झर दु नयान। अविरल धक-धक करय परान।। की लागि सजनी दरसन भेल। रभसें अपन जिब पर हाथ देल।। न जानिअ किए करु मोहन चारे। हेरइत जिब हरि लय गेल मारे।। एत सब आदर गेल दरसाय। जत बिसरिअ तत बिसरि न जाय।। विद्यापति कह सुनु बर नारि। धैरज धरु चित मिलब मुरारि।।