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एस्किमो जनजाति

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एस्किमो परिवार

एस्किमो (अंग्रेज़ी: Eskimo) उत्तरी अमेरिका के ध्रुवीय छोर तथा इसके पास के द्वीपों, ग्रीनलैंड के तटीय भागों एवं एशिया के सुदूर उत्तरी-पूर्वी छोर के निवासी हैं। चूँकि धरातल के जिस भाग पर ये लोग रहते हैं वहाँ साधन बहुत ही सीमित है। अतः इन लोगों का जीवन पूर्ण रूप से शिकार पर निर्भर होता है। जिसके लिए ये समुद्रों की शरण लेते हैं। ग्रीनलैण्ड का विस्तार लगभग 82,73000 वर्ग मील है। अधिकांश क्षेत्रों में एस्किमो के जीवन का ढंग मुख्य रूप से श्वेत लोगों के सम्पर्क के कारण परिवर्तित हो गया है। फलस्वरूप श्वेत लोगों के आग्नेयास्त्रों एवं अन्य औजारों की सुविधा के कारण ये लोग बहुत जल्दी ही प्रस्तर युग से लौह युग में पहुँच गये हैं। इनकी पोशाकें एवं भोजन परिवर्तित हो गये हैं। यही नहीं, बीमारियों, मादक पदार्थो आदि द्वारा इनकी बहुत हानि हुई है और अब तो इनकी शुद्ध जाति भी नहीं बची है।

शिकार एवं शरण

ऐसी सीमित संभावनाओं वाले क्षेत्रों में यहाँ के निवासियों के साधन जब कभी भी समाप्त होने लगते हैं तब इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान को घूमते रहना पड़ता है, फलस्वरूप अपनी सुविधा के लिए एस्किमो बहुत-सी वस्तुएँ इकट्ठी नहीं कर सकते। ग्रीष्मकाल में एस्किमो चमड़े से बने तम्बुओं में निवास करते हैं जिसे 50- 60 सील मछलियों के चमड़े को एक साथ सिलकर तैयार करते हैं तथा खम्भों से बने ढाँचे पर फैला देते हैं। इसे ट्यूपिक का नाम दिया जाता है। शीतकाल में एस्किमो ट्यूपिक को छोड़कर और भी गर्म निवास बनाते हैं जिसकी दीवारें प्रस्तर की छतें चूने के पत्थर अथवा स्लेट की होता है। इसके ऊपर घास-फूस बिछा देते हैं। इसके ऊपर ही ग्रीष्मकाल में प्रयुक्त होने वाले चमड़े के तम्बू को फैला देते हैं। इसके आन्तरिक भाग में भी सील के चमड़े को सिल देते हैं। इस पूरे निवास को ‘इग्लू’ कहा जाता है। बर्फ से बने मकान ‘इग्लूयाक’ को बहुत थोड़े समय तक ही उपयोग करते हैं।

ग्रीष्मकाल के आते ही एस्किमो अपने इगलू की छत को खोल देते हैं और पुनः ट्यूपिक में रहने लगते हैं। ग्रीष्मकाल एवं शीतकाल दोनों ऋतुओं में से लोग समुद्र के किनारे ही अपने निवास बनाते हैं क्योंकि अपने भोजन का अधिकांश ये समुद्रों से ही प्राप्त करते हैं। ये अपने निवास बनाते समय जल की सुविधा, तेज ठंडी हवाओं से सुरक्षा आदि का ध्यान रखते हैं। ग्रीष्म एवं शीतकाल में घरों को गर्म रखने के लिए मुलायम सोपस्टोन से बनी छिछली कटोरियों में समुद्री मछलियों की चर्बी जलाते हैं।

भोजन

एस्किमो की बस्ती

ध्रुवीय एस्किमो ग्रीष्म एवं शीतकाल दोनों ऋतुओं में समान रूप से धरातल एवं समुद्र में शिकार करते हैं। शिकार की सफलता पर ही इनका जीवन निर्भर करता है। कुछ भोजन उबालकर पकाते हैं, जबकि अधिकांश कच्चा ही खाया जाता है। समुद्र से ये लोग सील, वौलरस, नारवाल एवं बेलूजा मछलियों का शिकार करत है। इनसे न केवल माँस ही वरन् चर्बी तथा चमड़ा भी प्राप्त करते हैं। धरातल पर शिकार द्वारा कौरिवाए एवं चिड़ियाँ प्राप्त करते हैं। खुले सागर में शिकार के लिए ‘कयाक’ का उपयोग करते हैं जो कि लकड़ी के ढाँचे पर चमड़े से ढंका होने के कारण जल द्वारा सुरक्षित रहता है। इस कयाक द्वारा ये लोग वालरस एवं अन्य समुद्री जीवों का शिकार करते हैं।

वस्त्र एवं औजार

एस्किमो के वस्त्र चमड़े से बनते हैं। सूई एवं तागे भी मछलियों के चमड़े एवं उनकर हड्डियों से बनते हैं। चमड़े तैयार करने का कार्य स्त्रियाँ करती हैं। पुरुषों एवं स्त्रियों दोनों के वस्त्र एक समान होते हैं जिनका उद्देश्य शरीर की ठंड से सुरक्षा है न कि दिखावा। इसी प्रकार इनके हथियार भी पशुओं की हड्डियों तथा चमड़े से ही बनते हैं। इनके तीर एवं धनुष हड्डियों एवं चमड़े से ही बनाये जाते हैं। कुत्तों को हाँकने के लिए कोड़े तथा सामान ढोने वाली स्लेज में भी चमड़े एवं हड्डियों का ही उपयोग होता है।

पुनर्जन्म में विश्वास

एस्किमो का प्रवास

एस्किमो की जिंदगी बहुत ही अजीब अलग है। इसी तरह इनकी संस्कृति भी बहुत अलग है। एस्किमो के बीच उनका न तो कोई नेता होता है और न ही कोई प्रमुख। कहते हैं कि इनके समाज में सभी को समान अधिकार होता है। परुषों के साथ महिला भी कभी कभी शिकार पर जाती हैं मगर उनका प्रमुख कार्य गृहस्थी होता है। माना जाता है कि यह लोग बहुत ही अलग तरह के रिवाजों को अपनाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इनके समुदाए में जब कोई व्यक्ति मर जाता है, तो उसका शरीर खुले आसमान में रखा जाता है ताकि आत्मा अपना रास्ता पा सके। वहीं अगर कोई व्यक्ति बीमारी की वजह से मरता है, तो उसके शरीर के टुकड़े कर अलग अलग हिस्सों में फेंक दिए जाते हैं। एशियाई एस्किमो अपने मृतकों को जलाते हैं जबकि ग्रीनलैंड के एस्किमो अपने मृतकों के शरीर को समुद्र में तैराने के लिए ले जाते हैं।

वहीं दूसरी ओर अलास्का के एस्किमो अपने मृतकों को दफनाते हैं और फिर कब्र को पत्थरों से ढक देते हैं। इन सभी समुदायों के रिवाज़ एक दूसरे से काफी अलग होते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि एस्किमो पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं। इसलिए एस्किमो के परिवार में जब कोई बूढा व्यक्ति बीमार पड़ता है और वो मौत के करीब होता है, तो उसको समुद्र में बर्फ की सिल्ली पर लेटाकर तैरा दिया जाता है। धारणाओं की माने, तो एस्किमो बच्चों को अपने पूर्वज का पुनर्जन्म मानते हैं। इसलिए यह बच्चों का काफी ख्याल रखते हैं। कहते हैं कि एस्किमो और प्राचीन ईजिप्ट के लोगों में कुछ चीजें समान थीं, जैसे- यह दोनों ही समुदाय में अगर कोई मरता था, तो उसके साथ उसकी कुछ चीजों को भी दफना दिया जाता था। एस्किमो के विवाह के नियमों की बात करें, तो वो भी अजीबोगरीब हैं। यहाँ पर बाल विवाह का प्रचलन था। इसके साथ ही तलाक भी अनौपचारिक था। जब जी चाहे महिला या पुरुष एक दूसरे से अलग हो सकते थे।

एस्किमो की जिंदगी पर नज़र डालें, तो इनकी जिंदगी बहुत ही कठिन है। हर एक छोटी चीज के लिए भी इन्हें संघर्ष करना पड़ता है। हालांकि इसके बावजूद भी यह सालों से ऐसे ही रहते आ रहे हैं। आज नए जमाने में इनकी जिंदगी थोड़ी बहुत तो आसान हो गई है मगर आज भी यह बर्फ में अपना कठिनाइयों भरा जीवन जीना ही पसंद करते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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