बोंडा जनजाति

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बोंडा जनजाति की महिला, उड़ीसा

बोंडा जनजाति भारत की आदिम जनजातियों में से एक है। बोंडा जनजाति उड़ीसा के पश्चिमी प्रांतों में रहने वाली अनुसूचित जन-जाति है। यह जनजाति उड़ीसा के पश्चिमी प्रांतों के मलकानगिरी ज़िले के बीहड़ और पहाड़ी क्षेत्र में विशेष रूप से पायी जाति हैं। बोंडा जनजाति को रेमो बोंडा अथवा बोंडो के नाम से भी जाना जाता है। बोडो भाषा में रेमो का अर्थ है 'लोग'। ऐसा माना जाता है कि बोंडा ऑस्ट्रो - एशियाटिक जनजातियाँ हैं, जो जंगली जयपुर पहाड़ियों के वंशज निवासी हैं। बोंडा आदिवासी समुदाय के बारे में यह कहा जाता है कि ये पांच हज़ार के निकट की आबादी वाली भारत की आदिम जनजातियाँ में से एक है।

विशेषताएँ

बोंडा जनजाति की वेशभूषा की अनूठी शैली है। जो उनकी संस्कृति को दर्शाती है। बोंडा जनजातियाँ सामान्यत: एक अधो वस्त्र और गले में चाँदी का हार ही पहनते हैं, जो उनकी प्राकृतिक सुंदरता को सुशोभित करते हैं। इनकी मान्यता है कि भगवान राम की पत्नी सीता के श्राप के कारण ही ये केवल नीचे के शरीर को ही ढँकते हैं। बोंडा जनजाति वारलि चित्रकला के कलाकृति बनाने में भी माहिर होते है। बोंडा जनजाति के लोग कृषि प्रधान हैं, वे पोडु की खेती करते हैं और महिलायें भी इस खेती में पुरुषों की मदद करती हैं।

उत्सव और त्यौहार

बोंडा जाति के लोग आनंद के साथ उत्सव और त्यौहार मनाते हैं, वे पैटखंड यात्रा नामक त्यौहार भी मनाते हैं जो कि इनके जीवन में बहुत महत्व रखता है।

अंध विश्वासी

बोंडा जाति के लोग सामान्यत: अंध विश्वासी होते हैं, वे आलौकिक शक्तियों पर विश्वास रखते हैं और उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण देवी 'पृथ्वी देवी' है। इसके अलावा वे सूर्य, चंद्रमा और सितारों की भी पूजा करते हैं। कुछ जनजातियाँ कीचड़, गोबर, भूसे, छप्पर आदि के मकानों में आवास करती थी, जो सरकारी और गैर सरकारी संगठन परियोजनाओं से अब ईंट और टिन के मकानों में तब्दील हो गये हैं। यह विकास परियोजनायें धीरे-धीरे स्वास्थ्य शिक्षा, सफाई, सड़कों आदि की सेवा शुरू कर रही हैं।

विवाह

बोंडा जाति की लड़कियों का विवाह 14 वर्ष की आयु में ही हो जाता है और लड़के की आयु लड़की की आयु से दो-गुनी होना सही माना जाता है।


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