नागा साधु

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:58, 8 जनवरी 2013 का अवतरण ('[[चित्र:Kumbh Mela Vrindavan Mathura 2.jpg|thumb|नागा साधु, कुम्भ मेला, [[वृन्दा...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

[[चित्र:Kumbh Mela Vrindavan Mathura 2.jpg|thumb|नागा साधु, कुम्भ मेला, वृन्दावन] कुम्भ मेले में शैवपंथी नागा साधुओं को देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है। नागा साधुओं की रहस्यमय जीवन शैली और दर्शन को जानने के लिए विदेशी श्रद्धालु ज्यादा उत्सुक रहते हैं। कुम्भ के सबसे पवित्र शाही स्नान में सबसे पहले स्नान का अधिकार इन्हें ही मिलता है।

नागा साधुओं का रूप

नागा साधु अपने पूरे शरीर पर भभूत मले, निर्वस्त्र रहते हैं। उनकी बड़ी-बड़ी जटाएं भी आकर्षण का केंद्र रहती है। हाथों में चिलम लिए और चरस का कश लगाते हुए इन साधुओं को देखना अजीब लगता है। मस्तक पर आड़ा भभूत लगा, तीनधारी तिलक लगा कर धूनी रमा कर, नग्न रह कर और गुफ़ाओं में तप करने वाले नागा साधुओं का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में भी मिलता है। यह साधु उग्र स्वभाव के होते हैं। नागा जीवन की विलक्षण परंपरा में दीक्षित होने के लिए वैराग्य भाव का होना जरूरी है। संसार की मोह-माया से मुक्त कठोर दिल वाला व्यक्ति ही नागा साधु बन सकता है। साधु बनने से पूर्व ही ऐसे व्यक्ति को अपने हाथों से ही अपना ही श्राद्ध और पिंड दान करना होता है। अखाड़े किसी को आसानी से नागा रूप में स्वीकार नहीं करते। बाकायदा इसकी कठोर परीक्षा ली जाती है जिसमें तप, ब्रह्मचर्य, वैराग्य, ध्यान, संन्यास और धर्म का अनुशासन तथा निष्ठा आदि प्रमुखता से परखे-देखे जाते हैं। कठोर परीक्षा से गुजरने के बाद ही व्यक्ति संन्यासी जीवन की उच्चतम तथा अत्यंत विकट परंपरा में शामिल होकर गौरव प्राप्त करता है। इसके बाद इनका जीवन अखाड़ों, संत परंपराओं और समाज के लिए समर्पित हो जाता है।[1]

नागा इतिहास

शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए संन्यासी संघों का गठन किया था। बाहरी आक्रमण से बचने के लिए कालांतर में संन्यासियों के सबसे बड़े संघ जूना अखाड़े में संन्यासियों के एक वर्ग को विशेष रूप से शस्त्र-अस्त्र में पारंगत करके संस्थागत रूप प्रदान किया। वनवासी समाज के लोग अपनी रक्षा करने में समर्थ थे, और शस्त्र प्रवीण भी। इन्हीं शस्त्रधारी वनवासियों की जमात नागा साधुओं के रूप में सामने आई। ये नागा जैन और बौद्ध धर्म भी सनातन हिन्दू परम्परा से ही निकले थे। वन, अरण्य, नामधारी संन्यासी उड़ीसा के जगन्नाथपुरी स्थित गोवर्धन पीठ से संयुक्त हुए। आज संतों के तेरह-चौदह अखाड़ों में सात संन्यासी अखाड़े (शैव) अपने-अपने नागा साधु बनाते हैं :- ये हैं जूना, महानिर्वणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा।[1]



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 इलाहाबाद कुम्भ मेला : नागा बाबाओं की अद्‍भुत ‍दुनिया (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया हिंदी। अभिगमन तिथि: 8 जनवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख