"रुद्रदामन" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
*'''रुद्रदामन''' 'कार्दमक वंशी' [[चष्टन]] का पौत्र था, जिसे चष्टन के बाद गद्दी पर बैठाया गया था।
+
'''रुद्रदामन''' 'कार्दमक वंशी' [[चष्टन]] का पौत्र था, जिसे चष्टन के बाद गद्दी पर बैठाया गया था। यह इस वंश का सर्वाधिक योग्य शासक था और इसका शासन काल 130 से 150 ई. माना जाता है। रुद्रदामन एक अच्छा प्रजापालक, तर्कशास्त्र का विद्वान तथा [[संगीत]] का प्रेमी था। इसके समय में [[उज्जयिनी]] शिक्षा का बहुत ही महत्त्वपूर्ण केन्द्र बन चुकी थी।
*यह इस वंश का सर्वाधिक योग्य शासक था।
+
 
*इसका शासन काल 130 से 150 ई. माना जाता है।
 
 
*रुद्रदामन के विषय में विस्तृत जानकारी उसके [[जूनागढ़]] ([[गिरनार]]) से [[शक संवत]] 72 (150 ई.) के अभिलेख से मिलती है।
 
*रुद्रदामन के विषय में विस्तृत जानकारी उसके [[जूनागढ़]] ([[गिरनार]]) से [[शक संवत]] 72 (150 ई.) के अभिलेख से मिलती है।
 
*रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से उसके साम्राज्य के पूर्वी एवं पश्चिमी [[मालवा]], द्वारका के आस-पास के क्षेत्र, [[सौराष्ट्र]], [[कच्छ]], [[सिंधु नदी]] का मुहाना, उत्तरी कोंकण आदि तक विस्तृत होने का उल्लेख मिलता है।
 
*रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से उसके साम्राज्य के पूर्वी एवं पश्चिमी [[मालवा]], द्वारका के आस-पास के क्षेत्र, [[सौराष्ट्र]], [[कच्छ]], [[सिंधु नदी]] का मुहाना, उत्तरी कोंकण आदि तक विस्तृत होने का उल्लेख मिलता है।
पंक्ति 13: पंक्ति 12:
 
*चौथी शताब्दी ई. के अन्त में [[चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य]] ने इस वंश के अन्तिम रुद्र सिंह तृतीय की हत्या कर शकों के क्षेत्रों को [[गुप्त साम्राज्य]] में मिला लिया।  
 
*चौथी शताब्दी ई. के अन्त में [[चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य]] ने इस वंश के अन्तिम रुद्र सिंह तृतीय की हत्या कर शकों के क्षेत्रों को [[गुप्त साम्राज्य]] में मिला लिया।  
  
{{प्रचार}}
 
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
+
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
पंक्ति 23: पंक्ति 21:
 
[[Category:शक साम्राज्य]]
 
[[Category:शक साम्राज्य]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 +
__NOTOC__

09:06, 19 अप्रैल 2012 का अवतरण

रुद्रदामन 'कार्दमक वंशी' चष्टन का पौत्र था, जिसे चष्टन के बाद गद्दी पर बैठाया गया था। यह इस वंश का सर्वाधिक योग्य शासक था और इसका शासन काल 130 से 150 ई. माना जाता है। रुद्रदामन एक अच्छा प्रजापालक, तर्कशास्त्र का विद्वान तथा संगीत का प्रेमी था। इसके समय में उज्जयिनी शिक्षा का बहुत ही महत्त्वपूर्ण केन्द्र बन चुकी थी।

  • रुद्रदामन के विषय में विस्तृत जानकारी उसके जूनागढ़ (गिरनार) से शक संवत 72 (150 ई.) के अभिलेख से मिलती है।
  • रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से उसके साम्राज्य के पूर्वी एवं पश्चिमी मालवा, द्वारका के आस-पास के क्षेत्र, सौराष्ट्र, कच्छ, सिंधु नदी का मुहाना, उत्तरी कोंकण आदि तक विस्तृत होने का उल्लेख मिलता है।
  • इसी अभिलेख में रुद्रदामन द्वारा सातवाहन नरेश दक्षिण पथस्वामी में ही उसे 'भ्रष्ट-राज-प्रतिष्ठापक' कहा गया है।
  • इसने चन्द्रगुप्त मौर्य के मंत्री द्वारा बनवायी गई, सुदर्शन झील के पुननिर्माण में भारी धन व्यय करवाया था।
  • रुद्रदामन कुशल राजनीतिज्ञ के अतिरिक्त प्रजापालक, संगीत एवं तर्कशास्त्र के क्षेत्र का विद्वान था।
  • इसके समय में संस्कृत साहित्य का बहुत विकास हुआ था।
  • रुद्रदामन ने सबसे पहले विशुद्ध संस्कृत भाषा में लम्बा अभिलेख (जूनागढ़ अभिलेख) जारी किया।
  • उसके समय में उज्जयिनी शिक्षा का प्रमुख केन्द्र थी।
  • पश्चिमी भारत का अन्तिम शक नरेश रुद्रसिंह तृतीय था।
  • चौथी शताब्दी ई. के अन्त में चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने इस वंश के अन्तिम रुद्र सिंह तृतीय की हत्या कर शकों के क्षेत्रों को गुप्त साम्राज्य में मिला लिया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख