"आँसू और आँखें -अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'": अवतरणों में अंतर
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सदा बेचैनी रहती है। | सदा बेचैनी रहती है। | ||
लाग में आ आकर चाहत। | लाग में आ आकर चाहत। | ||
न जाने क्या क्या कहती | न जाने क्या क्या कहती है॥1॥ | ||
कह सके यह कोई कैसे। | कह सके यह कोई कैसे। | ||
आग जी की बुझ जाती है। | आग जी की बुझ जाती है। | ||
कौन सा रस पाती है जो। | कौन सा रस पाती है जो। | ||
आँख आँसू बरसाती | आँख आँसू बरसाती है॥2॥ | ||
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07:58, 4 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण
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दिल मचलता ही रहता है। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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