"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/2": अवतरणों में अंतर
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-बख़्त ख़ान | -बख़्त ख़ान | ||
-अजीमुल्लाह ख़ान | -अजीमुल्लाह ख़ान | ||
||[[चित्र:Mausoleum-Of-Hafiz-Rahmat-Khan-Bareilly.jpg|right|100px|हाफिज़ रहमत ख़ान का मकबरा, बरेली]][[बरेली]] [[उत्तरी भारत]] में मध्य [[उत्तर प्रदेश]] में [[रामगंगा नदी|रामगंगा]] के तट पर स्थित है। बरेली को 'बाँसबरेली' भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ लकड़ी, [[बाँस]] आदि का कारोबार बड़े पैमाने पर काफ़ी लम्बे समय से हो रहा है। एक कहावत 'उल्टे बाँस बरेली' भी इस स्थान पर बाँसों की प्रचुरता को सिद्ध करती है। 1537 में स्थापित इस शहर का निर्माण मुख्यत: [[मुग़ल]] प्रशासक 'मकरंद राय' ने करवाया था। प्राचीन काल में [[बरेली]] का क्षेत्र [[पंचाल जनपद]] का एक भाग था। [[महाभारत]] काल में पंचाल की राजधानी '[[अहिच्छत्र]]' थी, जो [[बरेली ज़िला|ज़िला बरेली]] की तहसील [[आंवला उत्तर प्रदेश|आंवला]] के निकट स्थित थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बरेली]] | |||
{'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' के प्रथम अध्यक्ष कौन थे? (पृ. सं. 25 | {'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' के प्रथम अध्यक्ष कौन थे? (पृ. सं. 25 | ||
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-जेड. ए. अहमद | -जेड. ए. अहमद | ||
-एम. एन. जोशी | -एम. एन. जोशी | ||
||[[चित्र:Lala-Lajpat-Rai.jpg|right|100px|लाला लाजपत राय]]'लाला लाजपत राय' को [[भारत]] के महान क्रांतिकारियों में गिना जाता है। आजीवन ब्रिटिश राजशक्ति का सामना करते हुए अपने प्राणों की परवाह न करने वाले [[लाला लाजपत राय]] 'पंजाब केसरी' भी कहे जाते हैं। ये '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' के 'गरम दल' के प्रमुख नेता तथा पूरे [[पंजाब]] के प्रतिनिधि थे। लालाजी को 'पंजाब के शेर' की उपाधि भी मिली थी। उन्होंने देशभर में स्वदेशी वस्तुएँ अपनाने के लिए अभियान चलाया। [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने जब [[1905]]] में '[[बंगाल का विभाजन]]' कर दिया तो लालाजी ने [[सुरेंद्रनाथ बैनर्जी]] और [[विपिनचंद्र पाल]] जैसे आंदोलनकारियों से हाथ मिला लिया और अंग्रेज़ों के इस फैसले का जमकर विरोध किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[लाला लाजपत राय]] | |||
{[[भारत]] में पूर्व प्रस्तर युग के अधिकांश औज़ार किसके बने थे? (पृ. सं. 25 | {[[भारत]] में पूर्व प्रस्तर युग के अधिकांश औज़ार किसके बने थे? (पृ. सं. 25 | ||
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-कन्हेया | -कन्हेया | ||
+अलीवाल | +अलीवाल | ||
||[[चित्र:Sikh-Symbol.jpg|right|100px|सिक्ख धर्म का प्रतीक]][[सिक्ख]] लोगों को [[गुरु नानक]] के अनुयायियों के रूप में जाना जाता है। मुख्य रूप से [[पंजाब]] ही इनका निवास स्थान है। 1773 ई. तक उनका अधिकार क्षेत्र पूर्व में [[सहारनपुर]] से पश्चिम में [[अटक]] तक तथा उत्तर में पहाड़ी भाग से लेकर दक्षिण में [[मुल्तान]] तक विस्तृत हो गया था। इस प्रकार सिक्ख अपने लिए एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना करने में सफल हुए थे। किन्तु उनमें एक शासकीय ईकाई का अभाव था। वे बारह मिसलों (टुकड़ियों) में विभक्त थे, जिनके नाम क्रमश: इस प्रकार थे- सिंहपुरिया, अहलूवालिया, रामगढ़िया, कनहिया, फुलकिया, भाँगी, सुकरचकिया, निशानवालिया, करोड़ सिंधिया, उल्लेवालिया, नकाई, और शहीदी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सिक्ख]] | |||
{[[कुमारिल भट्ट|कुमारिल]] निम्नलिखित में से किसके आचार्य थे? (पृ. सं. 26 | {[[कुमारिल भट्ट|कुमारिल]] निम्नलिखित में से किसके आचार्य थे? (पृ. सं. 26 | ||
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-[[वैशेषिक दर्शन|वैशेषिक]] | -[[वैशेषिक दर्शन|वैशेषिक]] | ||
-[[वेदान्त]] | -[[वेदान्त]] | ||
||[[कुमारिल भट्ट]] या 'कुमारिल स्वामी' या 'कुमारिल मिश्र' का नाम [[मीमांसा दर्शन|मीमांसा]] के इतिहास में मौलिक चिन्तन, विशद एवं स्पष्ट व्याख्या तथा अलौकिक प्रतिभा के कारण सदा स्मरणीय है। इन्होंने [[वैदिक धर्म]] का खंडन करने वाले [[बौद्ध|बौद्धों]] को परास्त कर वैदिक धर्म की पुन: स्थापना की थी। कुमारिल भट्ट मीमांसा दर्शन के दो प्रधान संप्रदायों में से एक 'भट्ट सम्प्रदाय' के संस्थापक थे। ईसा की सातवीं शताब्दी में पैदा हुए कुमारिल भट्ट ने मीमांसा दर्शन के 'भट्ट सम्प्रदाय' की स्थापना की थी। वे [[शंकराचार्य]] से और [[वाचस्पति मिश्र]] से पहले हुए थे। [[भवभूति]] इन्हीं के शिष्य थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कुमारिल भट्ट]] | |||
{'[[सूफ़ी मत|सूफ़ीवाद]]' की दस अवस्थाओं का वृतांत देने वाला 'दस मुकामी रेख्ता' की रचना किसने की थी? (पृ. सं. 26 | {'[[सूफ़ी मत|सूफ़ीवाद]]' की दस अवस्थाओं का वृतांत देने वाला 'दस मुकामी रेख्ता' की रचना किसने की थी? (पृ. सं. 26 | ||
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+[[गुरु नानक]] | +[[गुरु नानक]] | ||
-[[मीर|मियाँ मीर]] | -[[मीर|मियाँ मीर]] | ||
||[[चित्र:Guru-Nanak.jpg|right|100px|गुरु नानक]]'गुरु नानक' [[सिक्ख|सिक्खों]] के आदि गुरु हैं। इनके अनुयायी इन्हें 'गुरु नानक', 'बाबा नानक' और 'नानकशाह' नामों से संबोधित करते हैं। [[गुरु नानक]] की पहली 'उदासी' (विचरण यात्रा) [[अक्टूबर]], 1507 ई. से 1515 ई. तक रही। इस यात्रा में उन्होंने [[हरिद्वार]], [[अयोध्या]], [[प्रयाग]], [[काशी]], [[गया]], [[पटना]], [[असम]], [[जगन्नाथ पुरी]], [[रामेश्वर]], [[सोमनाथ]], [[द्वारिका]], [[नर्मदा नदी|नर्मदातट]], [[बीकानेर]], [[पुष्कर अजमेर|पुष्कर तीर्थ]], [[दिल्ली]], [[पानीपत]], [[कुरुक्षेत्र]], [[मुल्तान]], [[लाहौर]] आदि स्थानों में भ्रमण किया। उन्होंने बहुतों का [[हृदय]] परिवर्तन किया। ठगों को [[साधु]] बनाया, वेश्याओं का अन्त:करण शुद्ध कर नाम का दान दिया, कर्मकाण्डियों को आडम्बरों से निकालकर रागात्मिकता भक्ति में लगाकर मानवता का पाठ पढ़ाया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गुरु नानक]] | |||
{निम्नलिखित क़िलों में से ब्रिटिशों ने किसका सबसे पहले निर्माण किया? (पृ. सं. 29 | {निम्नलिखित क़िलों में से ब्रिटिशों ने किसका सबसे पहले निर्माण किया? (पृ. सं. 29 |
07:58, 21 फ़रवरी 2013 का अवतरण
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