"नंदि वर्मन तृतीय": अवतरणों में अंतर

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*वह केवल पल्लवों की स्वतंत्र सत्ता स्थापित करके ही संतुष्ट नहीं हुआ, अपितु दक्षिण दिशा में विजय यात्राएँ करके [[चोल साम्राज्य|चोल]] और [[पांड्य साम्राज्य|पांड्य]] देशों में भी उसने अपनी शक्ति का परिचय दिया।
*वह केवल पल्लवों की स्वतंत्र सत्ता स्थापित करके ही संतुष्ट नहीं हुआ, अपितु दक्षिण दिशा में विजय यात्राएँ करके [[चोल साम्राज्य|चोल]] और [[पांड्य साम्राज्य|पांड्य]] देशों में भी उसने अपनी शक्ति का परिचय दिया।


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11:17, 10 जनवरी 2011 का अवतरण

  • नरसिंहवर्मा का उत्तराधिकारी परमेश्वरवर्मा द्वितीय था।
  • उसके शासन काल में पल्लव राज्य में शान्ति और व्यवस्था क़ायम रही।
  • पर आठवीं सदी के प्रथम चरण में जब उसकी मृत्यु हो गई, तो काञ्जी के राजसिंहासन के लिए अनेक राजकुमारों में गृहकलह प्रारम्भ हुए, जिसमें नन्दिवर्मा सफल हुआ।
  • गृहकलह के काल में वातापी के चालुक्य राजाओं ने फिर पल्लव राज्य पर आक्रमण किया, और उसे जीत कर अपने अधीन कर लिया।
  • पल्लवों को परास्त कर काञ्जी पर अपना आधिपत्य स्थापित करने वाले इस वीर चालुक्य राजा का नाम विक्रमादित्य द्वितीय था।
  • नन्दिवर्मा ने पल्लवों की सैन्यशक्ति को पुनः संगठित किया, और काञ्जी को चालुक्यों की अधीनता से मुक्त किया।
  • निःसन्देह, नन्दिवर्मा बहुत वीर और महत्वाकांक्षी राजा था।
  • वह केवल पल्लवों की स्वतंत्र सत्ता स्थापित करके ही संतुष्ट नहीं हुआ, अपितु दक्षिण दिशा में विजय यात्राएँ करके चोल और पांड्य देशों में भी उसने अपनी शक्ति का परिचय दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ