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[[गुरु अंगद देव]] की साखियों में से पहली साखी है। | [[चित्र:Guru-angad-dev.jpg|thumb|[[गुरु अंगद देव]]]] | ||
'''जुलाही को आरोग्य करना''' [[गुरु अंगद देव]] की साखियों में से पहली साखी है। | |||
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एक दिन [[गुरु अमरदास |अमरदास जी]] गुरु अंगद जी के स्नान के लिए पानी की गागर सिर पर उठाकर प्रातःकाल आ रहे थे कि रास्ते में एक जुलाहे कि खड्डी के खूंटे से आपको चोट लगी जिससे आप खड्डी में गिर गये। गिरने की आवाज़ सुनकर जुलाहे ने जुलाही से पुछा कि बाहर कौन है? जुलाही ने कहा इस समय और कौन हो सकता है, अमरू घरहीन ही होगा, जो रातदिन समधियों का पानी ढ़ोता फिरता है। जुलाही की यह बात सुनकर अमरदास जी ने कहा कमलीये! मैं घरहीन नहीं, मैं गुरु वाला हूँ। तू पागल है जो इस तरह कह रही हो। | एक दिन [[गुरु अमरदास |अमरदास जी]] गुरु अंगद जी के स्नान के लिए पानी की गागर सिर पर उठाकर प्रातःकाल आ रहे थे कि रास्ते में एक जुलाहे कि खड्डी के खूंटे से आपको चोट लगी जिससे आप खड्डी में गिर गये। गिरने की आवाज़ सुनकर जुलाहे ने जुलाही से पुछा कि बाहर कौन है? जुलाही ने कहा इस समय और कौन हो सकता है, अमरू घरहीन ही होगा, जो रातदिन समधियों का पानी ढ़ोता फिरता है। जुलाही की यह बात सुनकर अमरदास जी ने कहा कमलीये! मैं घरहीन नहीं, मैं गुरु वाला हूँ। तू पागल है जो इस तरह कह रही हो। | ||
11:45, 23 मार्च 2013 का अवतरण

जुलाही को आरोग्य करना गुरु अंगद देव की साखियों में से पहली साखी है।
साखी
एक दिन अमरदास जी गुरु अंगद जी के स्नान के लिए पानी की गागर सिर पर उठाकर प्रातःकाल आ रहे थे कि रास्ते में एक जुलाहे कि खड्डी के खूंटे से आपको चोट लगी जिससे आप खड्डी में गिर गये। गिरने की आवाज़ सुनकर जुलाहे ने जुलाही से पुछा कि बाहर कौन है? जुलाही ने कहा इस समय और कौन हो सकता है, अमरू घरहीन ही होगा, जो रातदिन समधियों का पानी ढ़ोता फिरता है। जुलाही की यह बात सुनकर अमरदास जी ने कहा कमलीये! मैं घरहीन नहीं, मैं गुरु वाला हूँ। तू पागल है जो इस तरह कह रही हो।
उधर इनके वचनों से जुलाही पागलों की तरह बुख्लाने लगी। गुरु अंगद देव जी ने दोनों को अपने पास बुलाया और पूछा प्रातःकाल क्या बात हुई थी, सच सच बताना। जुलाहे ने सारी बात सच सच गुरु जी के आगे रख दी कि अमरदास जी के वचन से ही मेरी पत्नी पागल हुई है। आप कृपा करके हमें क्षमा करें और इसे आरोग्य कर दें नहीं तो मेरा घर बर्बाद हो जायेगा।
गुरु जी ने अमरदास जी को बारह वरदान देकर अपने गले से लगा लिया और वचन किया कि आप मेरा ही रूप हो गये हो। इसके पश्चात गुरु अंगद देव जी ने अपनी कृपा दृष्टि से जुलाही की तरफ देखा और उसे आरोग्य कर दिया। इस प्रकार वे दोनों गुरु जी की उपमा गाते हुए घर की ओर चल दिये।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जुलाही को आरोग्य करना (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) आध्यात्मिक जगत। अभिगमन तिथि: 23 मार्च, 2013।
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