हरीके गाँव का अहंकारी चौधरी

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गुरु अंगद देव

हरीके गाँव का अहंकारी चौधरी गुरु अंगद देव की साखियों में से चौथी साखी है।

साखी

गुरु जी अपने पुराने मित्रों को मिलने के लिए कुछ सिख सेवकों को साथ लेकर हरीके गाँव पहुँचे। गुरु जी की उपमा सुनकर बहुत से लोग श्रद्धा के साथ दर्शन करने आए। हरीके के चौधरी ने अपने आने की खबर पहले ही गुरु जी को भेज दी कि मैं दर्शन करने आ रहा हूँ। गाँव का सरदार होने के कारण उसमें अहम का भाव था। गुरु जी ने उसके बैठने के लिए पीहड़ा रखवा दिया व चादर बिछवा दी। चौधरी ने पीहड़े पर बैठना अपना अपमान समझा। वह पलंग पर गुरु जी के साथ सिर की ओर बैठ गया। गुरु जी से वार्तालाप करके वह तो चला गया पर सिख शंका ग्रस्त हो गये और कहने लगे महाराज! चौधरी तो आप से भी ऊँचा होकर आपके साथ ही बैठ गया इसमें कितना अहंकार का भाव है, जिसे बड़ों का आदर करना नहीं आता|
सिखों की बात सुनकर गुरु जी कहने लगे जो बड़ों का निरादर करता है वह छोटा ही रहता है, और जो बड़ों का आदर करता है वह अपने आप ही बड़ा हो जाता है। गुरु जी के ऐसे वचनों से सरदार बड़ा होते हुए भी छोटा हो गया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हरीके गाँव का अहंकारी चौधरी (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) आध्यात्मिक जगत। अभिगमन तिथि: 23 मार्च, 2013।

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