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[[राजस्थान]] के आमेर महल स्थित मानसिंह महल के पूर्व दिशा में लगे पानी के पुराने सिस्टम में बने तीन टांके सूखने पर मावठा सागर से महल में पहुंचाया जाता था। पानी ऊपर चढ़ाने के लिए पांच मंजिला रहट प्रणाली बनाई गई। प्रत्येक मंजिल पर हौज़ बनाया गया था। इस प्रणाली से पानी दीवारों में बनी नालियों के सहारे एक मंजिल की हौज़ में आता था। इसके बाद उसी रहट प्रणाली से दूसरी, तीसरी, चौथी तथा पांचवीं मंजिल तक पहुंचता था। लकड़ी के चरखे को घुमाने पर पानी ऊपर की ओर बहने लगता था।।<ref>{{cite web |url=http://hindi.indiawaterportal.org/content/17-%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%82-%E0%A4%B8%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E2%80%98%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%9F%E2%80%99 |title=17 वीं सदी का ‘रहट’ |accessmonthday=26 अप्रॅल |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=इंडिया वाटर पोर्टल |language=हिंदी }}</ref> | [[राजस्थान]] के आमेर महल स्थित मानसिंह महल के पूर्व दिशा में लगे पानी के पुराने सिस्टम में बने तीन टांके सूखने पर मावठा सागर से महल में पहुंचाया जाता था। पानी ऊपर चढ़ाने के लिए पांच मंजिला रहट प्रणाली बनाई गई। प्रत्येक मंजिल पर हौज़ बनाया गया था। इस प्रणाली से पानी दीवारों में बनी नालियों के सहारे एक मंजिल की हौज़ में आता था। इसके बाद उसी रहट प्रणाली से दूसरी, तीसरी, चौथी तथा पांचवीं मंजिल तक पहुंचता था। लकड़ी के चरखे को घुमाने पर पानी ऊपर की ओर बहने लगता था।।<ref>{{cite web |url=http://hindi.indiawaterportal.org/content/17-%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%82-%E0%A4%B8%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E2%80%98%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%9F%E2%80%99 |title=17 वीं सदी का ‘रहट’ |accessmonthday=26 अप्रॅल |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=इंडिया वाटर पोर्टल |language=हिंदी }}</ref> | ||
==रहट सिंचाई तकनीक== | ==रहट सिंचाई तकनीक== | ||
रहट सिंचाई तकनीक के नाम से शायद अब अधिकांश लोग वाकिफ भी नहीं है। इस सिंचाई तकनीक से किसान जहां पर्यावरण का संरक्षण करते थे वहीं बिजली और [[डीज़ल]] की बचत भी होती थी। वर्तमान में बदलती तकनीक और विकास की इस रफ्तार में किसानों को भी पुरानी परंपराओं को बदलने के लिए मजबूर कर दिया। दो बैलों के साथ इस सिस्टम को परंपरागत कुएं में लगाया जाता था और चेन में लगे डिब्बों के जरिये पानी खेतों तक पहुंचाया जाता था। इस सिस्टम में किसी तरह की बिजली अथवा डीज़ल का इस्तेमाल नहीं किया जाता था। महज बैलों को चलाने के लिए एक व्यक्ति की | रहट सिंचाई तकनीक के नाम से शायद अब अधिकांश लोग वाकिफ भी नहीं है। इस सिंचाई तकनीक से किसान जहां पर्यावरण का संरक्षण करते थे वहीं बिजली और [[डीज़ल]] की बचत भी होती थी। वर्तमान में बदलती तकनीक और विकास की इस रफ्तार में किसानों को भी पुरानी परंपराओं को बदलने के लिए मजबूर कर दिया। दो बैलों के साथ इस सिस्टम को परंपरागत कुएं में लगाया जाता था और चेन में लगे डिब्बों के जरिये पानी खेतों तक पहुंचाया जाता था। इस सिस्टम में किसी तरह की बिजली अथवा डीज़ल का इस्तेमाल नहीं किया जाता था। महज बैलों को चलाने के लिए एक व्यक्ति की ज़रूरत रहती थी। किसानों की बात पर यकीन करें तो कुछ बैल इस तकनीक के लिए इतने फिट रहते थे कि वे बिना किसी व्यक्ति के इस सिस्टम को चलाते रहते थे। इससे बिजली की भी बचत रहती थी और साथ में पर्यावरण का भी संरक्षण होता था। बिना धुएं और बिना किसी [[ईंधन]] के इस सिस्टम को चलाया जाता था।<ref>{{cite web |url=http://www.hindi.indiawaterportal.org/node/28479 |title=रहट से ध्यान गया भटक |accessmonthday=26 अप्रॅल |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=इंडिया वाटर पोर्टल |language=हिंदी }}</ref> | ||
10:45, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
रहट कुएँ या तालाब से जल निकालने का एक ऐसा यंत्र है जिसमें एक रस्सी में पिरोयी हुई पानी भरने की डोलचियों की माला गोलाकार चलती रहती है जब बैलों या किसी मनुष्य के द्वारा रस्सी खींची जाती है।
17वीं शताब्दी का रहट

राजस्थान के आमेर महल स्थित मानसिंह महल के पूर्व दिशा में लगे पानी के पुराने सिस्टम में बने तीन टांके सूखने पर मावठा सागर से महल में पहुंचाया जाता था। पानी ऊपर चढ़ाने के लिए पांच मंजिला रहट प्रणाली बनाई गई। प्रत्येक मंजिल पर हौज़ बनाया गया था। इस प्रणाली से पानी दीवारों में बनी नालियों के सहारे एक मंजिल की हौज़ में आता था। इसके बाद उसी रहट प्रणाली से दूसरी, तीसरी, चौथी तथा पांचवीं मंजिल तक पहुंचता था। लकड़ी के चरखे को घुमाने पर पानी ऊपर की ओर बहने लगता था।।[1]
रहट सिंचाई तकनीक
रहट सिंचाई तकनीक के नाम से शायद अब अधिकांश लोग वाकिफ भी नहीं है। इस सिंचाई तकनीक से किसान जहां पर्यावरण का संरक्षण करते थे वहीं बिजली और डीज़ल की बचत भी होती थी। वर्तमान में बदलती तकनीक और विकास की इस रफ्तार में किसानों को भी पुरानी परंपराओं को बदलने के लिए मजबूर कर दिया। दो बैलों के साथ इस सिस्टम को परंपरागत कुएं में लगाया जाता था और चेन में लगे डिब्बों के जरिये पानी खेतों तक पहुंचाया जाता था। इस सिस्टम में किसी तरह की बिजली अथवा डीज़ल का इस्तेमाल नहीं किया जाता था। महज बैलों को चलाने के लिए एक व्यक्ति की ज़रूरत रहती थी। किसानों की बात पर यकीन करें तो कुछ बैल इस तकनीक के लिए इतने फिट रहते थे कि वे बिना किसी व्यक्ति के इस सिस्टम को चलाते रहते थे। इससे बिजली की भी बचत रहती थी और साथ में पर्यावरण का भी संरक्षण होता था। बिना धुएं और बिना किसी ईंधन के इस सिस्टम को चलाया जाता था।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 17 वीं सदी का ‘रहट’ (हिंदी) इंडिया वाटर पोर्टल। अभिगमन तिथि: 26 अप्रॅल, 2013।
- ↑ रहट से ध्यान गया भटक (हिंदी) इंडिया वाटर पोर्टल। अभिगमन तिथि: 26 अप्रॅल, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
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