विष्णु देवी
विष्णु देवी जम्मू-कश्मीर के जम्मू से उत्तर की ओर 39 मील की दूरी पर त्रिकूट पर्वत पर समुद्र तल से लगभग 6000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है।
- 'विष्णु' या 'वैष्णव' या 'वैष्णो देवी' का उल्लेख मार्कण्डेय पुराण के अन्तर्गत 'दुर्गासप्तशती' में है।
- इस स्थान पर देवी की मूर्तियाँ एक संकीर्ण और अंधेरी गुफ़ा के अंतिम छोर पर हैं।
- मूर्तियाँ गायत्री, सरस्वती और महालक्ष्मी की हैं, जो विष्णु देवी के विभिन्न रूप माने जाते हैं।[1]
वैष्णो देवी
पूरे जगत में माता रानी और वैष्णवी के नाम से जानी जाने वाली शेरावाली माता वैष्णों देवी का जागृत और पवित्र मंदिर भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य की हसीन वादियों में उधमपुर ज़िले में कटरा से 12 किलोमीटर दूर उत्तर पश्चिमी हिमालय के त्रिकुटा पर्वत पर गुफ़ा में विराजित है। यह एक दुर्गम यात्रा है, किंतु माता के भक्तों की आस्था और विश्वास की शक्ति सब कुछ संभव कर देती है। नवरात्रों के दौरान माँ वैष्णों देवी के दर्शन की विशेष मान्यता है। इन नौ दिनों तक क्या देश क्या विदेश, लाखों लोग माँ वैष्णों देवी के दर्शन करने को आते हैं।
व्यावहारिक दृष्टि से माता वैष्णों देवी ज्ञान, वैभव और बल का सामूहिक रूप है, क्योंकि यहाँ आदिशक्ति के तीन रूप हैं- पहली 'महासरस्वती', जो ज्ञान की देवी हैं, दूसरी 'महालक्ष्मी', जो धन-वैभव की देवी और तीसरी 'महाकाली' या दुर्गा, जो शक्ति स्वरूपा मानी जाती है। जीवन के धरातल पर भी श्रेष्ठ और सफल बनने और ऊंचाईयों को छूने के लिए विद्या, धन और बल ही ज़रूरी होता है, जो मेहनत और परिश्रम के द्वारा ही संभव है। माता की इस यात्रा से भी जीवन के सफर में आने वाली कठिनाईयों और संघर्षों का सामना कर पूरे विश्वास के साथ अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की प्रेरणा और शक्ति मिलती है। माँ वैष्णों देवी का यह प्रसिद्ध दरबार हिन्दू धर्मावलम्बियों का एक प्रमुख तीर्थ होने के साथ-साथ 51 शक्तिपीठों में से एक मानी जाती है, जहाँ दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु माँ के दर्शन के लिए आते हैं। यह उत्तरी भारत में सबसे पूजनीय पवित्र स्थलों में से एक है। माँ वैष्णों देवी के गुफ़ा में 'महालक्ष्मी', 'महाकाली' और 'महासरस्वती' पिंडी रूप में स्थापित हैं। भूगर्भशास्त्री भी इस गुफ़ा को कई अरब साल पुरानी बताते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 865 |