मुग़ल ए आज़म

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मुग़ल ए आज़म
निर्देशक के. आसिफ़
निर्माता स्टर्लिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन
लेखक अमन, कमाल अमरोही, के. आसिफ़, वजाहत मिर्ज़ा, एहसान रिज़वी
कलाकार पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार, मधुबाला, दुर्गा खोटे
प्रसिद्ध चरित्र अकबर, सलीम, अनारकली, महारानी जोधा बाई
संगीत नौशाद
गीतकार शकील बदायूँनी
गायक ग़ुलाम अली खान, मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर, शमशाद बेगम
प्रसिद्ध गीत जब प्यार किया तो डरना क्या
छायांकन आर.डी.माथुर
संपादन धर्मवीर
प्रदर्शन तिथि 5 अगस्त, 1960, 12 नवम्बर, 2004 (रंगीन)
अवधि 191 मिनट
भाषा उर्दू, तमिल और अंग्रेज़ी
पुरस्कार फ़िल्मफ़ेयर:- सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, सर्वश्रेष्ठ छायाकार पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ संवाद
बजट 1.5 करोड़ रुपये
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट

मुग़ल-ए-आज़म (अंग्रेज़ी: Mughal-e-Azam) हिन्दी सिनेमा की सार्वकालिक क्लासिक, जो 1960 में भारतीय सिनेमा में एक ऐसी फ़िल्म बनी जो आज भी पुरानी नहीं लगती। चाहे मधुबाला की दिलकश अदाएँ हों या फिर दिलीप कुमार की बग़ावती शख़्सियत या फिर हो बादशाह अकबर बने पृथ्वीराज कपूर की दमदार आवाज़, फ़िल्म में सब कुछ था ख़ास। साथ ही ख़ास था फ़िल्म में नौशाद साहब का संगीत। मुग़ल-ए-आज़म के ज़्यादातर गाने गाये सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने।[1]

कथावस्तु

हिन्दुस्तान में बनी मुग़ल-ए-आज़म के. आसिफ़ की पहली विराट फ़िल्म थी जिसने आगे आने वाली पुश्तों के लिए फ़िल्म निर्माण के पैमाने ही बदल दिए। लेकिन मुग़ल-ए-आज़म कोरा इतिहास नहीं, हिन्दुस्तान के लोकमानस में बसी प्रेम-कथा का पुनराख्यान है। एक क़नीज़ का राजकुमार से प्रेम शहंशाह को नागवार है लेकिन वो प्रेम ही क्या जो बंधनों में बँधकर हो। चहुँओर से बंद सामंती व्यवस्था के गढ़ में प्रेम की खुली उद्घोषणा स्वरूप "जब प्यार किया तो डरना क्या" गाती अनारकली को कौन भूल सकता है।[2]

दिलीप कुमार (सलीम) और मधुबाला (अनारकली)
Dilip Kumar (Salim) & Madhubala (Anarkali)

आधी सदी पहले भव्य और आलीशान सेट, शानदार नृत्यों और भावपूर्ण संगीत से सजी फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म रुपहले पर्दे पर आई थीं, लेकिन के. आसिफ़ के द्वारा निर्देशित यह फ़िल्म आज भी बॉलीवुड के निर्देशकों और तक़नीशियनों को प्रेरित करती है। मुग़ल-ए-आज़म 5 अगस्त 1960 में प्रदर्शित हुई थी। जिसमें सलीम और अनारकली की ऐतिहासिक प्रेम कहानी को बेहद ख़ूबसूरती से फ़िल्माया गया है। 1960 में बनी इस फ़िल्म का काँच से बना 'शीश महल' एक अनोखा फ़िल्म सेट था। इसमें अभिनेता पृथ्वीराज कपूर ने अकबर के किरदार को बख़ूबी निभाया था। नौशाद का संगीत और शकील बदायूँनी के गीत के साथ दिलीप कुमार और मधुबाला की जोड़ी ने इस फ़िल्म को भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक मील का पत्थर बना दिया।[3]

फ़िल्म की विशेषता

दिलीप कुमार (सलीम)
Dilip Kumar (Salim)
  • पृथ्वीराज कपूर और मधुबाला की अदाकारी।
  • मधुबाला और दिलीप कुमार की प्रेमी-प्रेमिका जोड़ी।
  • के. आसिफ़ का शानदार निर्देशन।
  • फ़िल्म के लिए बनाया गया शीशमहल का सेट।
  • युद्ध का बड़े पैमाने पर चित्रण, हाथी-घोड़े, पोशाक, आभूषण और हथियार आदि।[4]
  • ज़िंदाबाद, ज़िंदाबाद, ऐ मुहब्बत ज़िंदाबाद गाने के कोरस में 100 से अधिक गायकों ने भाग लिया।
  • उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ साहिब ने ठुमरी "प्रेम जोगन बनकें" और "शुभ दिन आयौ" गायी।
  • मुग़ल-ए-आज़म के सेट और प्रत्येक कलाकार के लिए अलग-अलग कपड़े तैयार किए गए थे। जिसके चलते यह फ़िल्म ऐतिहासिकता को दर्शाने में सफल रही थी।
  • इसके किरदारों के कपड़े तैयार करने के लिए दिल्ली से विशेष तौर पर दर्ज़ी और सूरत से काशीदाकारी के जानकार बुलाये गए थे। हालांकि विशेष आभूषण हैदराबाद से लाए गए थे। अभिनेताओं के लिए कोल्हापुर के कारीग़रों ने ताज बनाया था।
  • राजस्थान के कारीगरों ने हथियार बनाए थे और आगरा से जूतियाँ मंगाई गई थीं। फ़िल्म के एक दृश्य में कृष्ण भगवान की मूर्ति दिखाई गई है, जो वास्तव में सोने की बनी हुई थी।[3]

निर्माण

मुग़ल-ए-आज़म एक कालजयी फ़िल्म है, जिसके लिए निर्देशक के. आसिफ़ ने अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया। हालाँकि लोग के. आसिफ़ को तो याद करते हैं तथा उनकी रचनात्मकता और कर्मठता की प्रशंसा करते हैं परंतु निर्माता के धैर्य की भी प्रशंसा करनी चाहिए जो कई वर्षों तक फ़िल्म के खत्म होने का इंतज़ार करते रहे और फ़िल्म में निवेश भी करते रहे।

मधुबाला (अनारकली)
Madhubala (Anarkali)
  • मुग़ल-ए-आज़म मुम्बई के मराठा मंदिर में 5 अगस्त, 1960 को प्रदर्शित हुई थी।
  • मुग़ल-ए-आज़म फ़िल्म उर्दू, तमिल और अंग्रेज़ी में बनी थी।
  • मुग़ल-ए-आज़म फ़िल्म का काम बेहद धीमी गति से होता था। के. आसिफ़ एक-एक दृश्य के पीछे बहुत मेहनत करते थे।
  • पहले एक साल में सिर्फ़ पृथ्वीराज कपूर और दुर्गा खोटे के दृश्य शूट हुए थे।
  • पूरे वर्ष के दौरान मात्र एक सेट के दृश्य ही शूट हुए।
  • मुग़ल-ए-आज़म का एक सेट तैयार होने में महीनों का समय लग जाता था। कुछ सेट दस साल तक भी नहीं बन पाए।
  • इस फ़िल्म की शूटिंग मोहन स्टूडियो में हुई थी। आउटडोर शूटिंग जयपुर में हुई थी। क़रीब सौ लोगों की यूनिट सर्दियों में जयपुर गई थी, पर शूटिंग गर्मियों में हुई।
पृथ्वीराज कपूर (अकबर) और दिलीप कुमार (सलीम)
Prithviraj Kapoor (Akbar) & Dilip Kumar (Salim)
  • यूनिट के लोग भारतीय सेना के बैरक़ में रहते थे।
  • फ़िल्म में युद्ध के दृश्यों के लिए सेना ने मदद की थी।
  • "जब प्यार किया तो डरना क्या" गाने की शूटिंग रंगीन हुई थी, बाक़ी पूरी फ़िल्म श्वेत श्याम थी। इस गाने की शूटिंग के पीछे 1 करोड़ रूपए खर्च कर दिए गए थे, जबकि उस ज़माने में 10 लाख रुपयों में भव्य फ़िल्म बन जाती थी।
  • फ़िल्म की शूटिंग इतनी लम्बी चली कि कई दृश्यों में दिलीप कुमार की उम्र अधिक और कई में कम लगती थी।
  • इस फ़िल्म के 150 प्रिंट एक साथ प्रदर्शित किए गए जो कि एक कीर्तिमान था।
  • इस फ़िल्म ने कमज़ोर शुरूआत की और लोगों को लगा कि यह फ़िल्म असफल हो जाएगी लेकिन इस फ़िल्म ने अभूतपूर्व कमाई की।[5]

गीत-संगीत

फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म की हिरोइन अनारकली सीना ठोक कर ज़माने के सामने 'जब प्यार किया तो डरना क्या' गाकर अपनी मोहब्बत का इज़हार करती है और शायद सबसे ज़्यादा मुख्य आकर्षण रहा मधुबाला का नृत्य। इसके अलावा इस फ़िल्म के कुछ मधुर गाने हैं :

मधुबाला (अनारकली)
Madhubala (Anarkali)
  • प्रेम जोगन बनकें...(ठुमरी)
  • शुभ दिन आयौ...
  • बेकस पे करम कीजिये , सरकारे मदीना…
  • जब रात है ऐसी मतवाली, फिर सुबह का आलम क्या होगा…
  • मोहे पनघट पे नन्दलाल छेड़ गयो रे…
  • मुहब्बत की झूठी कहानी पे रोये…
  • तेरी महफ़िल में क़िस्मत आज़माकर हम भी देखेंगे…
  • ज़िंदाबाद, ज़िंदाबाद, ऐ मुहब्बत ज़िंदाबाद…[4]

मुख्य कलाकार

पृथ्वीराज कपूर (अकबर)
Prithviraj Kapoor (Akbar)
  • दिलीप कुमार - सलीम
  • मधुबाला - अनारकली
  • पृथ्वीराज कपूर - बादशाह जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर
  • दुर्गा खोटे - महारानी जोधा बाई
  • निगार सुल्ताना - बहार
  • अजीत - दुर्जन सिंह
  • एम कुमार - संगतराश (मूर्तिकार)
  • मुराद - राजा मान सिंह
  • जलाल आग़ा - युवा राजकुमार सलीम
  • जिल्लू बाई - अनारकली की माँ

पुरस्कार

  • 1960: फ़िल्मफ़ेयर:- सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के. आसिफ़
  • 1960: फ़िल्मफ़ेयर:- सर्वश्रेष्ठ छायाकार पुरस्कार आर.डी. माथुर
  • 1960: फ़िल्मफ़ेयर:- सर्वश्रेष्ठ संवाद अमानुल्लाह ख़ान, कमाल अमरोही, वजाहत मिर्ज़ा, एहसान रिज़वी


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