फ़्रावाशी

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फ़्रावाशी किसी व्यक्ति की[1] पहले से अस्तित्वमान दिव्य उच्च आत्मा या सार। इन्हें पारसी धर्म में माना जाता है।

  • फ़्रावाशियों का संबंध परम दिव्यता 'अहुर मज़्दा' के साथ है।
  • पहली सृष्टि से ही फ़्रावाशी पवित्र प्रकाश तथा अनंत उदारता की प्रकृति में भागीदार रहे हैं। वे अपनी इच्छा से इस संसार में दु:ख भोग और बुराई की शक्तियों से लड़ने के लिए आते हैं और इन्हें क़यामत के समय अपने अपरिहार्य पुनरुत्थान की जानकारी होती है।
  • अपनी मूर्तिमान आत्मा से भिन्न प्रत्येक फ़्रावाशी जीवन में उसे उच्च प्रकृति प्राप्त करने की ओर निर्देशित करता है। उद्धार की गई आत्मा मृत्यु के बाद अपने फ़्रावाशी में लीन हो जाती है।
  • फ़्रावाशियों को ब्रह्मांडीय रूप से तीन समूहों में विभक्त किया गया है-
  1. जीवित
  2. मृत
  3. अब तक अजन्मे
  • दानवों से ब्रह्मांड की रक्षा के लिए अहुर मज़्दा इन्हीं शक्तियों पर निर्भर करती है। पवित्र अग्नि की रक्षा करके ये शक्तियां अंधकार को विश्व में क़ैद रखती हैं।
  • लोकप्रिय धर्म में, रक्षा के लिए सदाचारी मृत व्यक्तियों और पुरखों के फ़्रावाशियों का आह्वान किया है।
  • प्रत्येक वर्ष के अंतिम 10 दिनों के दौरान मनाए जाने वाले पारसी त्योहार 'फ़्रावर्तीजन' में प्रत्येक परिवार प्रार्थना, अग्नि और धूपबत्ती के ज़रिये अपने मृतकों के फ़्रावाशियों का सम्मान करता है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कुछ स्त्रोतों के अनुसार देवताओं और फ़रिश्तों की भी
  2. भारत ज्ञानकोश, खण्ड-3 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 307 |

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