सर फ़िलिप फ़्राँसिस

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सर फ़िलिप फ़्राँसिस (1740-1818 ई.) रेग्युलेटिंग एक्ट के अंतर्गत बंगाल में फ़ोर्ट विलियम के गवर्नर-जनरल की परिषद का सदस्य नामजद किया गया था। फ़िलिप फ़्राँसिस और गवर्नर-जनरल वारेन हेस्टिंग्स के बीच सदा संघर्ष की स्थिति रहती थी, क्योंकि फ़िलिप फ़्राँसिस ने भारत में हेस्टिंग्स की नीतियों का कड़ा विरोध किया था।

  • फ़िलिप फ़्राँसिस को रेग्युलेटिंग एक्ट के अंतर्गत बंगाल में फ़ोर्ट विलियम भेजा गया था।
  • भारत में उसका वार्षिक वेतन 10 हज़ार पौण्ड निर्धारित हुआ था।
  • अक्टूबर 1774 ई. में कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) आने के कुछ समय बाद उसने दो अन्य सहयोगियों-'मौनसन' और 'क्लेवरिंग' का सहयोग प्राप्त किया।
  • अपने इन दोनों सहयोगियों के साथ फ़िलिप फ़्राँसिस ने गवर्नर-जनरल वारेन हेस्टिंग्स की नीतियों और शासन प्रणाली का तीव्र विरोध किया।
  • इस प्रकार फ़्राँसिस और वारेन हेस्टिंग्स में एक ज़बर्दस्त संघर्ष प्रारम्भ हो गया, जिसका अन्त फ़्राँसिस की हार से हुआ।
  • 1780 ई. में पुन: फ़्राँसिस और वारेन हेस्टिंग्स में संघर्ष हो गया और उसके बाद वह असक्त होकर इंग्लैंण्ड वापस चला गया।
  • इंग्लैंण्ड में उसने वारेन हेस्टिंग्स पर महाभियोग लगाने के अभियान को संगठित और संचालित करने में प्रमुख भाग लिया।
  • फ़िलिप बंगाल में लगान के स्थायी बंदोबस्त का सुझाव देने वाला पहला अंग्रेज़ अधिकारी था।
  • 1795 ई. में वारेन हेस्टिंग्स के निर्दोष घोषित किये जाने पर वह बहुत निराश हुआ और 1807 ई. में सार्वजनिक जीवन से अलग हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 260 |


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