पुष्कर मेला

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Disamb2.jpg पुष्कर एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- पुष्कर (बहुविकल्पी)

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ऊँट मेला, पुष्कर

अजमेर से लगभग 11 कि.मी. दूर हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पुष्कर है। यहां पर कार्तिक पूर्णिमा को मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक भी आते हैं। पुष्कर मेले का एक रोचक अंग ऊँटों का क्रय–विक्रय है। निस्संदेह अन्य पशुओं का भी व्यापार किया जाता है, परन्तु ऊँटों का व्यापार ही यहाँ का मुख्य आकर्षण होता है। मीलों दूर से ऊँट व्यापारी अपने पशुओं के साथ में पुष्कर आते हैं। पच्चीस हज़ार से भी अधिक ऊँटों का व्यापार यहाँ पर होता है। यह सम्भवतः ऊँटों का संसार भर में सबसे बड़ा मेला होता है। इस दौरान लोग ऊँटों की सवारी कर ख़रीददारों का अपनी ओर लुभाते हैं।

महत्त्व

पुष्कर में सरस्वती नदी के स्नान का सर्वाधिक महत्त्व है। यहाँ सरस्वती नाम की एक प्राचीन पवित्र नदी है। यहाँ पर वह पाँच नामों से बहती है। पुष्कर स्नान कार्तिक पूर्णिमा को सर्वाधिक पुण्यप्रद माना जाता है। यहाँ प्रतिवर्ष दो विशाल मेलों का आयोजन किया जाता हैं।

विशेषताएँ

पुष्कर मेला पर डाक टिकट
  • पुष्कर मेला कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक लगता है। दूसरा मेला वैशाख शुक्ला एकादशी से पूर्णिमा तक रहता है।
  • मेलों के रंग राजस्थान में देखते ही बनते हैं। ये मेले मरुस्थल के गाँवों के कठोर जीवन में एक नवीन उत्साह भर देते हैं। लोग रंग–बिरंगे परिधानों में सज–धजकर जगह–जगह पर नृत्य गान आदि समारोहों में भाग लेते हैं। यहाँ पर काफ़ी मात्रा में भीड़ देखने को मिलती है। लोग इस मेले को श्रद्धा, आस्था और विश्वास का प्रतीक मानते हैं।
  • पुष्कर मेला थार मरुस्थल का एक लोकप्रिय व रंगों से भरा मेला है। यह कार्तिक शुक्ल एकादशी को प्रारम्भ हो कार्तिक पूर्णिमा तक पाँच दिन तक आयोजित किया जाता है। मेले का समय पूर्ण चन्द्रमा पक्ष, अक्टूबर–नवम्बर का होता है। पुष्कर झील भारतवर्ष में पवित्रतम स्थानों में से एक है। प्राचीनकाल से लोग यहाँ पर प्रतिवर्ष कार्तिक मास में एकत्रित हो भगवान ब्रह्मा की पूजा उपासना करते हैं। [1]

पशु मेला

कार्तिक के महीने में यहां लगने वाला ऊंट मेला दुनिया में अपनी तरह का अनूठा तो है ही, साथ ही यह भारत के सबसे बडे पशु मेलों में से भी एक है। मेले के समय पुष्कर में कई संस्कृतियों का मिलन सा देखने को मिलता है। एक तरफ तो मेला देखने के लिए विदेशी सैलानी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं, तो दूसरी तरफ राजस्थान व आसपास के तमाम इलाक़ों से आदिवासी और ग्रामीण लोग अपने-अपने पशुओं के साथ मेले में शरीक होने आते हैं। मेला रेत के विशाल मैदान में लगाया जाता है।

आम मेलों की ही तरह ढेर सारी कतार की कतार दुकानें, खाने-पीने के स्टाल, सर्कस, झूले और न जाने क्या-क्या। ऊंट मेला और रेगिस्तान की नजदीकी है इसलिए ऊंट तो हर तरफ देखने को मिलते ही हैं। लेकिन कालांतर में इसका स्वरूप एक विशाल पशु मेले का हो गया है, इसलिए लोग ऊंट के अलावा घोडे, हाथी, और बाकी मवेशी भी बेचने के लिए आते हैं। सैलानियों को इन पर सवारी का लुत्फ मिलता है। लोक संस्कृति व लोक संगीत का शानदार नज़ारा देखने को मिलता है।[2]

कार्तिक स्नान

पुष्कर मेला के दौरान स्नान करते श्रद्धालु

मेला स्थल से परे पुष्कर नगरी का माहौल एक तीर्थनगरी सरीखा होता है। कार्तिक में स्नान का महत्व हिंदू मान्यताओं में वैसे भी काफ़ी ज़्यादा है। इसलिए यहां साधु भी बडी संख्या में नज़र आते हैं। मेले के शुरुआती दिन जहां पशुओं की ख़रीद-फरोख्त पर ज़ोर रहता है, वहीं बाद के दिनों में पूर्णिमा पास आते-आते धार्मिक गतिविधियों का ज़ोर हो जाता है। श्रद्धालुओं के सरोवर में स्नान करने का सिलसिला भी पूर्णिमा को अपने चरम पर होता है। पुष्कर मेले के दौरान इस नगरी में आस्था और उल्लास का अनोखा संगम देखा जाता है। पुष्कर को इस क्षेत्र में तीर्थराज कहा जाता है और पुष्कर मेला राजस्थान का सबसे बड़ा मेला माना जाता है। पुष्कर मेले की प्रसिद्धि का अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि ऐतिहासिक धरोहरों के रूप में ताजमहल का जो दर्जा विदेशी सैलानियों की नजर में है, ठीक वही महत्व त्यौहारों से जुडे पारंपरिक मेलों में पुष्कर मेले का है।[2]

सांस्कृतिक कार्यक्रम

शाम का ख़ास आकर्षण तो यहां आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। इनमें पारंपरिक लोक नर्तक और नर्तकियां लोक संगीत की धुन पर जब थिरकते हैं तो एक अलग ही समां बंध जाता है। घूमर, कालबेलिया, गेर, मांड, काफ़ी घोड़ी और सपेरा नृत्य जैसे लोकनृत्य देख पर्यटक भी झूम उठते हैं। तमाम पर्यटक इन कार्यक्रमों का आनंद लेने से पूर्व सरोवर के घाटों पर जाते हैं। जहां उस समय संध्या आरती और सरोवर में दीपदान का समय होता है। हरे पत्तों को जोड़कर उनके मध्य पुष्प एवं दीप रखकर जल में प्रवाहित कर दिया जाता है। इसे ही दीपदान कहते हैं। जल पर तैरते सैकड़ों दीपक और पानी में टिमटिमाता उनका प्रतिबिंब झिलमिल सितारों जैसा प्रतीत होता है।

घाटों पर की गई लाइटिंग इस मंजर को और भी अद्भुत बना देती है। पुष्कर मेले में देश-विदेश के सैलानियों की भागीदारी इतने बड़े पैमाने पर होती है कि वहां की तमाम आवासीय सुविधाएं कम पड़ जाती हैं। राजस्थान पर्यटन विकास निगम द्वारा उस समय विशेष रूप से एक पर्यटक गांव स्थापित किया जाता है। वहां सर्वोत्तम तम्बू में ठहरने की अच्छी व्यवस्था होती है। इनमें पर्यटकों के लिए सभी ज़रूरी सुविधाएं होती हैं। इस पर्यटक ग्राम में ठहरना भी अपने आपमें अलग अनुभव होता है। इस तरह की तमाम विशेषताओं के कारण पुष्कर मेले का भ्रमण पर्यटकों के लिए यादगार बन जाता है।[3]

पुष्कर में ऊंट मेला का एक दृश्य


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुष्कर (हिन्दी) google.com/site/ajmervisit। अभिगमन तिथि: 4 जुलाई, 2011।
  2. 2.0 2.1 पुष्कर मेला – भारतीय संस्कृति की एक अनोखी झलक (हिन्दी) (पी.एच.पी) जागरण जंक्शन। अभिगमन तिथि: 10 अप्रॅल, 2012।
  3. आस्था का उत्सव पुष्कर मेला (हिन्दी) (पी.एच.पी) जागरण यात्रा। अभिगमन तिथि: 10 अप्रॅल, 2012।

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