तात्या टोपे
तात्या टोपे
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पूरा नाम | रामचंद्र पांडुरंग येवालकर |
अन्य नाम | तात्या टोपे |
जन्म | 1814 ई. |
जन्म भूमि | येवला, पटौदा ज़िला, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 18 अप्रैल, 1859 |
मृत्यु स्थान | शिवपुरी, मध्य प्रदेश |
अभिभावक | पाण्डुरंग त्र्यम्बक भट्ट तथा रुक्मिणी बाई |
कर्म भूमि | महाराष्ट्र |
भाषा | मराठी, उर्दू और गुजराती |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी |
विशेष योगदान | भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई तथा नाना साहब का प्रमुख योगदान था। |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | मराठा, रानी लक्ष्मीबाई, बाजीराव द्वितीय, नाना साहब, पेशवा, बिठूर, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम। |
अन्य जानकारी | रामकृष्ण टोपे के बयान के अनुसार तात्या टोपे अपने पिता की 12 संतानों में से दूसरे थे। उनका एक सगा और छह सौतेले भाई और चार बहनें थीं। |
तात्या टोपे (अंग्रेज़ी: Tatya Tope, जन्म- 1814 ई., पटौदा ज़िला, महाराष्ट्र; मृत्यु- 18 अप्रैल, 1859, शिवपुरी, मध्य प्रदेश) को सन 1857 ई. के 'प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम' के अग्रणीय वीरों में उच्च स्थान प्राप्त है। इस वीर ने कई स्थानों पर अपने सैनिक अभियानों द्वारा उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात आदि में अंग्रेज़ी सेनाओं से कड़ी टक्कर ली और उन्हें बुरी तरह परेशान कर दिया। गोरिल्ला युद्ध प्रणाली को अपनाते हुए तात्या टोपे ने अंग्रेज़ी सेनाओं के छक्के छुड़ा दिये। वे 'तांतिया टोपी' के नाम से भी विख्यात थे। अपनी अटूट देशभक्ति और वीरता के लिए तात्या टोपे का नाम भारतीय इतिहास में अमर है।
जन्म परिचय
तात्या टोपे का जन्म सन 1814 ई. में नासिक के निकट पटौदा ज़िले में येवला नामक ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम पाण्डुरंग त्र्यम्बक भट्ट तथा माता का नाम रुक्मिणी बाई था। तात्या टोपे देशस्थ कुलकर्णी परिवार में जन्मे थे।[1] इनके पिता पेशवा बाजीराव द्वितीय के गृह-विभाग का काम देखते थे। उनके विषय में थोड़े बहुत तथ्य उस बयान से इकट्ठे किए जा सकते हैं, जो उन्होंने अपनी गिरफ़्तारी के बाद दिया और कुछ तथ्य तात्या के सौतेले भाई रामकृष्ण टोपे के उस बयान से इकट्ठे किए जा सकते हैं, जो उन्होंने 1862 ई. में बड़ौदा के सहायक रेजीडेंस के समक्ष दिया था। तात्या का वास्तविक नाम 'रामचंद्र पांडुरंग येवलकर' था। 'तात्या' मात्र उपनाम था। तात्या शब्द का प्रयोग अधिक प्यार के लिए होता था। टोपे भी उनका उपनाम ही था, जो उनके साथ ही चिपका रहा। क्योंकि उनका परिवार मूलतः नासिक के निकट पटौदा ज़िले में छोटे से गांव येवला में रहता था, इसलिए उनका उपनाम येवलकर पड़ा।[2]
बिठूर आगमन
तात्या टोपे जब मुश्किल से चार वर्ष के थे, तभी उनके पिता के स्वामी बाजीराव द्वितीय के भाग्य में अचानक परिवर्तन हुआ। बाजीराव द्वितीय 1818 ई. में बसई के युद्ध में अंग्रेज़ों से हार गए। उनका साम्राज्य उनसे छिन गया। उन्हें आठ लाख रुपये की सालाना पेंशन मंजूर की गई और उनकी राजधानी से उन्हें बहुत दूर हटाकर बिठूर, कानपुर में रखा गया। यह स्पष्ट रूप से ऐसी स्थिति से बचने के लिए किया गया था कि वह अपने खोए हुए साम्राज्य को पुनः प्राप्त करने के लिए कुछ नई चालें न चल सकें। बिठूर से 12 मील दूर गंगा के तट पर छोटा-सा सुंदर नगर था। वहाँ बाजीराव ने अपने लिए एक विशाल प्रासाद का निर्माण करवाया और अपना अधिकांश समय धार्मिक कार्यकलापों में व्यतीत करने लगे। तात्या टोपे के पिता पेशवा बाजीराव द्वितीय के कर्मचारी तथा उनके वफादार थे, इसीलिए वे भी परिवार सहित बाजीराव द्वितीय के पास 1818 ई. में बिठूर आ गए। रामकृष्ण टोपे के बयान के अनुसार तात्या अपने पिता की 12 संतानों में से दूसरे थे। उनका एक सगा और छह सौतेले भाई और चार बहनें थीं। यद्यपि तात्या अपने बच्चों के साथ अलग रहते थे, फिर भी सभी व्यावहारिक कार्यों के लिए उनका परिवार संयुक्त परिवार था।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ तात्या टोपे की देशभक्ति (हिन्दी) वेबदुनिया। अभिगमन तिथि: 16 मई, 2015।
- ↑ तात्या टोपे का बालकाल बिठूर में पेशवा के दत्तक पुत्र नाना साहब और झाँसी की वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई के साथ व्यतीत हुआ था। आगे चलकर 1857 में देश की स्वाधीनता के लिए तीनों ने जो आत्मोत्सर्ग किया, वह हमारे स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। तात्या ने 1859 में दिए गए अपने एक बयान में अपनी आयु 45 वर्ष बताई थी, जिससे यह पता लगता है कि उनका जन्म 1813 या 1814 ई. के आसपास हुआ था।
- ↑ जान लैंग; वांडरिंग इन इंडिया एंड अदर्स स्केचेज आफ लाइफ इन हिंदुस्तान
- ↑ इस टोप की वजह से वेल्लोर में सिपाही विद्रोह हो चुका था।
- ↑ तात्या टोपे को फाँसी नहीं दी गई, वह लड़ते हुए शहीद हुए थे: पराग टोपे (हिन्दी) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 16 मई, 2015।
बाहरी कड़ियाँ
- तात्या टोपे : स्वतंत्रता संग्राम 1857 के सेनापति
- तात्या टोपे
- तात्या टोपे (पुस्तक)
- फाँसी नहीं दी गई थी तात्या टोपे को