आयात
आयात (अंग्रेज़ी: Import), सीमा शुल्क अधिनियम-1962 के अनुसार आयात का अर्थ "भारत के बाहर किसी स्थान से भारत में लाना है।" इस हिसाब से आयातित वस्तु का अर्थ यह हुआ कि "कोई वस्तु या फिर सामान जो भारत के बाहर से भारत में लाया गया हो।" आयातक का अर्थ "किसी वस्तु के आयात और उसके घरेलु उपभोग कि स्वीकृति तक, उस वस्तु को ग्रहण या रखने वाले व्यक्ति से है।"
वर्गीकरण
आयात को अम्बारी आयात[1] और गैर-अम्बारी आयात[2] में वर्गीकृत किया जा सकता है।
- अम्बारी आयात मदों में शामिल हैं-
- पेट्रोलियम, तेल एवं लुब्रिकेंट (पीओएल)
- नॉन-पीओएल जैसी उपभोग वस्तुएं (खाद्य तेल, चीनी इत्यादि), उर्वरक और लौह एवं इस्पात।
- गैर-अम्बारी आयात मदों में शामिल हैं-
- पूंजी वस्तुएं जिनमें धातुएं, मशीनी औजार, इलेक्ट्रिक एवं गैर-इलेक्ट्रिक मशीनरी
- मोती, बहुमूल्य और अल्प मूल्य पत्थर
अन्य
अभी हाल तक, भारत के आयात की संरचना देश द्वारा द्वितीय नियोजन के दौरान 1956 की शुरुआत में अपनाई गई औद्योगीकरण की रणनीति को प्रतिबिम्बित करती है। इस समय बड़ी मात्रा में मशीनरी, परिवहन उपकरण, यंत्र एवं उपकरण इत्यादि पूंजीगत सामान का आयात हुआ। लौह एवं इस्पात, पेट्रोलियम, रसायनों इत्यादि के औद्योगिक विकास हेतु आगतों का भी आयात किया गया। इन वस्तुओं के आयात ने औद्योगिक विकास को प्रारंभ करने में मदद की और कई वर्षों के लिए इसके विस्तार में भी मदद की। बढ़ती जनसंख्या की ज़रूरतों तथा प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़ इत्यादि के कारण घरेलू उत्पादन में आयी कमी को पूरा करने के लिए भी उपभोक्ता वस्तुओं जिसमें बड़ी मात्रा में अनाज एवं इनके बने उत्पाद भी आयात किए गए।
इन्हें भी देखें: भारत का विदेशी व्यापार
|
|
|
|
|