अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन

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अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन का प्रतीक

अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन (अंग्रेज़ी: International Maritime Organization या IMO) संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशिष्ट संस्था है, जो जलयानों के यातायात को नियंत्रित करने के लिये अधिकृत है। इसे 1982 तक अंतर-सरकारी समुद्री सलाहकारी संगठन कहते थे। इसकी स्थापना 1958 में जिनेवा में हुई थी।

  • वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन के कुल 174 सदस्य तथा 3 एसोसिएट सदस्य हैं और इसका मुख्यालय लंदन में स्थित है।
  • यह एक अंतरराष्ट्रीय मानक-निर्धारण प्राधिकरण है जो मुख्य रूप से अंतरराष्ट्रीय शिपिंग की सुरक्षा में सुधार करने और जहाज़ों द्वारा होने वाले प्रदूषण को रोकने हेतु उत्तरदायी है।
  • शिपिंग वास्तव में एक अंतरराष्ट्रीय उद्योग है और इसे केवल तभी प्रभावी रूप से संचालित किया जा सकता है जब नियमों और मानकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया जाए।
  • ध्यातव्य है कि अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन अपनी नीतियों को लागू करने के लिये ज़िम्मेदार नहीं है और न ही इसके पास नीतियों के प्रवर्तन हेतु कोई तंत्र मौजूद है।
  • इसका मुख्य कार्य शिपिंग उद्योग के लिये एक ऐसा नियामक ढाँचा तैयार करना है जो निष्पक्ष एवं प्रभावी हो तथा जिसे सार्वभौमिक रूप से अपनाया व लागू किया जा सके।

संरचना और कार्य प्रणाली

संगठन में एक सामान्य सभा, एक परिषद और पाँच मुख्य समितियाँ हैं। इसके अतिरिक्त प्रमुख समितियों के कार्य में सहयोग के लिये संगठन में कई उप-समितियाँ भी हैं।

सामान्य सभा

सामान्य सभा अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन का सर्वोच्च शासनिक निकाय है। इसमें सभी सदस्य राष्ट्र शामिल होते हैं और प्रत्येक 2 वर्ष में एक बार सत्र का आयोजन किया जाता है, किंतु यदि आवश्यकता हो तो एक असाधारण सत्र भी आयोजित किया जा सकता है। सामान्य सभा मुख्य रूप से संगठन के कार्यक्रम को मंज़ूरी देने, बजट पर मतदान करने और संगठन की वित्तीय व्यवस्था का निर्धारण करने के लिये उत्तरदायी होती है। सामान्य सभा संगठन के परिषद का भी चुनाव करती है।

परिषद

परिषद को सामान्य सभा के प्रत्येक नियमित सत्र के पश्चात् दो वर्षों के लिये सामान्य सभा द्वारा ही चुना जाता है। परिषद अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन का कार्यकारी अंग है और संगठन के कार्य की देखरेख के लिये ज़िम्मेदार होती है।

परिषद के कार्य

  1. सामान्य सभा के दो सत्रों के मध्य परिषद सामान्य सभा के सभी कार्य करती है। हालाँकि सम्मेलन के अनुच्छेद 15 (जे) के तहत सामुद्रिक सुरक्षा और प्रदूषण #रोकथाम पर सरकारों को सिफारिशें करने का कार्य सामान्य सभा के पास सुरक्षित रखा गया है।
  2. परिषद संगठन के विभिन्न अंगों की गतिविधियों के मध्य समन्वय स्थापित करने का कार्य भी करती है।
  3. सामान्य सभा की मंज़ूरी के साथ महासचिव की नियुक्ति का कार्य भी परिषद द्वारा ही किया जाता है।
  4. परिषद में कुल 40 सदस्य होते हैं, जिन्हें A, B तथा C श्रेणी में बाँटा जाता है।

समितियाँ

  1. समुद्री सुरक्षा समिति
  2. समुद्री पर्यावरण संरक्षण समिति
  3. कानूनी समिति
  4. तकनीकी सहयोग समिति
  5. सुविधा समिति

संगठन की ये समितियाँ मुख्य रूप से नीतियाँ बनाने और विकसित करने, उन्हें आगे बढ़ाने और नियमों तथा दिशा-निर्देशों को पूरा करने का कार्य करती हैं।

संगठन और भारत

भारत वर्ष 1959 में अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन में शामिल हुआ था। वर्तमान में भारत संगठन की परिषद के सदस्यों की श्रेणी (B) में आता है।

  • श्रेणी (A) - इसमें वे देश शामिल हैं जिनका सबसे अधिक हित अंतरराष्ट्रीय शिपिंग सेवाओं से जुड़ा हुआ है। जैसे- चीन, इटली, जापान और नॉर्वे आदि।
  • श्रेणी (B) - इसमें वे देश शामिल हैं जिनका सबसे अधिक हित अंतरराष्ट्रीय समुद्री व्यापार से जुड़ा हुआ है। जैसे- भारत, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया और ब्राज़ील आदि।
  • श्रेणी (C) - वे देश जिनका समुद्री व्यापार और नेवीगेशन से विशेष हित जुड़ा हुआ है। जैसे- बेल्जियम, चिली, साइप्रस और डेनमार्क आदि।

अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने के लिये अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन में भारत की भागीदारी उल्लेखनीय रूप से अपर्याप्त रही है। लंदन स्थित अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन के मुख्यालय में भारत का स्थायी प्रतिनिधि पद बीते 25 वर्षों से रिक्त है। भारत के विपरीत विकसित राष्ट्रों का अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन में वर्चस्व देखा जाता है। अधिकतर यूरोपीय देश अपने समुद्री हितों की रक्षा करने के लिये अपने प्रस्तावों को एकसमान रूप से आगे बढ़ाते हैं। वहीं लगभग सभी प्रमुख राष्ट्रों ने अपने हितों को बढ़ावा देने के लिये लंदन स्थित अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन के मुख्यालय में अपना स्थायी प्रतिनिधि नियुक्त किया है।

अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन ने समुद्री डाकुओं की उपस्थिति के आधार पर हिंद महासागर में ‘उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों’ का सीमांकन किया है। इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल की मौजूदगी के बावजूद अरब सागर और भारत के लगभग पूरे दक्षिण-पश्चिमी तट को संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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