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चित्र:Amjad-Ali-Khan-2.jpg|अमज़द अली ख़ाँ
 
चित्र:Amjad-Ali-Khan-2.jpg|अमज़द अली ख़ाँ
 
चित्र:Amjad-Ali-Khan-3.jpg|जुगलबंदी करते अमज़द अली ख़ाँ और अयान अली ख़ाँ  
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

06:14, 16 मार्च 2012 का अवतरण

प्रीति चौधरी/अभ्यास पन्ना3
अमज़द अली ख़ाँ
पूरा नाम अमज़द अली ख़ाँ
जन्म 9 अक्टूबर, 1945
जन्म भूमि ग्वालियर
संतान पुत्र अमान और अयान
कर्म-क्षेत्र शास्त्रीय संगीत
पुरस्कार-उपाधि 1971 रोस्टम पुरस्कार, 2001 पद्म विभूषण, 1975 पद्मश्री, 1991 में पद्मभूषण, 1989 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, तानसेन सम्मान, यूनेस्को पुरस्कार, यूनिसेफ का राष्ट्रीय राजदूत
प्रसिद्धि सरोद वादक
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख बिस्मिल्ला ख़ाँ, हरिप्रसाद चौरसिया, अल्ला रक्खा ख़ाँ, ज़ाकिर हुसैन, पन्नालाल घोष
अन्य जानकारी 1963 में मात्र 18 वर्ष की आयु में उन्होने पहली अमेरिका यात्रा की थी। इस यात्रा में पण्डित बिरजू महाराज के नृत्य-दल की प्रस्तुति के साथ अमजद अली खाँ का सरोद-वादन भी हुआ था।
बाहरी कड़ियाँ अमज़द अली ख़ाँ

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अमज़द अली ख़ाँ (9 अक्टूबर, 1945) भारत के प्रसिद्ध सरोद वादक हैं। अमज़द अली ख़ाँ एक संगीत परिवार में पैदा हुआ थे और 1960 के दशक के बाद से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन किया। वह 2001 में भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।

जीवन परिचय

अमज़द अली ख़ाँ का जन्म ग्वालियर में 9 अक्टूबर 1945 को हुआ था। अमज़द अली ख़ाँ ग्वालियर में संगीत के सेनिया बंगश घराने की छठी पीढ़ी में जन्म लेने वाले अमजद अली खाँ को संगीत विरासत में प्राप्त हुआ था। इनके पिता उस्ताद हाफ़िज़ अली खाँ ग्वालियर राज-दरबार में प्रतिष्ठित संगीतज्ञ थे। इस घराने के संगीतज्ञों ने ही ईरान के लोकवाद्य ‘रबाब’ को भारतीय संगीत के अनुकूल परिवर्द्धित कर ‘सरोद’ नामकरण किया। मात्र बारह वर्ष की आयु में एकल सरोद-वादन का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन किया था। एक छोटे से बालक की सरोद पर अनूठी लयकारी और तंत्रकारी सुन कर दिग्गज संगीतज्ञ दंग रह गए।

प्रसिद्धि

1963 में मात्र 18 वर्ष की आयु में उन्होने पहली अमेरिका यात्रा की थी। इस यात्रा में पण्डित बिरजू महाराज के नृत्य-दल की प्रस्तुति के साथ अमजद अली खाँ का सरोद-वादन भी हुआ था। इस यात्रा का सबसे उल्लेखनीय पक्ष यह था कि खाँ साहब के सरोद-वादन में पण्डित बिरजू महाराज ने तबला संगति की थी और खाँ साहब ने कथक संरचनाओं में सरोद की संगति की थी।

उस्ताद अमज़द अली ख़ाँ ने देश-विदेश के अनेक महत्त्वपूर्ण संगीत केन्द्रों में प्रदर्शन कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया है। इनमें कुछ प्रमुख हैं- रायल अल्बर्ट हाल, रायल फेस्टिवल हाल, केनेडी सेंटर, हाउस ऑफ कामन्स, फ़्रंकफ़र्ट का मोजर्ट हाल, शिकागो सिंफनी सेंटर, आस्ट्रेलिया के सेंट जेम्स पैलेस और ओपेरा हाउस आदि। वर्तमान में उस्ताद अमजद अली खाँ के दो पुत्र- अमान और अयान सहित देश-विदेश के अनेक शिष्य सरोद वादन की पताका फहरा रहे हैं।

सम्मान और पुरस्कार

युवावस्था में ही उस्ताद अमजद अली खाँ ने सरोद-वादन में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर ली थी। 1971 में उन्होने द्वितीय एशियाई अन्तर्राष्ट्रीय संगीत-सम्मेलन में भाग लेकर ‘रोस्टम पुरस्कार’ प्राप्त किया था। यह सम्मेलन यूनेस्को की ओर से पेरिस में आयोजित किया गया था, जिसमें उन्होने ‘आकाशवाणी’ के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया था। अमजद अली ने यह पुरस्कार मात्र 26 वर्ष की आयु में प्रपट किया था। भारत सरकार द्वारा प्रदत्त 1975 में पद्मश्री, 1991 में पद्मभूषण, 2001 में पद्म विभूषण, 1989 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, तानसेन सम्मान, यूनेस्को पुरस्कार, यूनिसेफ का राष्ट्रीय राजदूत सम्मान आदि।


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वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

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