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'''श्यामा चरण लाहिड़ी''' ( जन्म- 1825, [[नदिया]], [[बंगाल]]) प्रसिद्ध गृहस्थ साधक थे। वे योग विधि से दीक्षा लेकर अन्य लोगों को भी दीक्षा देने लगे।  
 
'''श्यामा चरण लाहिड़ी''' ( जन्म- 1825, [[नदिया]], [[बंगाल]]) प्रसिद्ध गृहस्थ साधक थे। वे योग विधि से दीक्षा लेकर अन्य लोगों को भी दीक्षा देने लगे।  
 
==परिचय==
 
==परिचय==
प्रसिद्ध गृहस्थ साधक श्यामा चरण लाहिड़ी के व्यक्तिगत जीवन के बारे में प्रामाणिक जानकारी का अभाव है। अनुमानत: उनका जन्म 1825 ई. के आसपास [[बंगाल]] के [[नदिया|नदिया जिले]] में कृष्णा नगर के निकट धरणी नामक गांव में एक [[ब्राह्मण]] परिवार में हुआ था। [[वाराणसी]] में उन्होंने [[बांग्ला]], [[संस्कृत]] और [[अंग्रेजी]] की शिक्षा पाई। फिर [[दानापुर]] में मिलिट्री अकाउंट ऑफिस में काम करने लगे। इसी सिलसिले में उनका स्थानांतरण [[उत्तरांचल]] में [[अल्मोड़ा ज़िला|अल्मोड़ा जिले]] के रानीखेत केंट में हो गया।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=863|url=}}</ref>
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प्रसिद्ध गृहस्थ साधक श्यामा चरण लाहिड़ी के व्यक्तिगत जीवन के बारे में प्रामाणिक जानकारी का अभाव है। अनुमानत: उनका जन्म 1825 ई. के आस-पास [[बंगाल]] के [[नदिया|नदिया जिले]] में कृष्णा नगर के निकट धरणी नामक गांव में एक [[ब्राह्मण]] परिवार में हुआ था। [[वाराणसी]] में उन्होंने [[बांग्ला]], [[संस्कृत]] और [[अंग्रेजी]] की शिक्षा पाई। फिर [[दानापुर]] में मिलिट्री अकाउंट ऑफिस में काम करने लगे। इसी सिलसिले में उनका स्थानांतरण [[उत्तरांचल]] में [[अल्मोड़ा ज़िला|अल्मोड़ा जिले]] के रानीखेत केंट में हो गया।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=863|url=}}</ref>
 
==दीक्षा गृहण==
 
==दीक्षा गृहण==
 
श्यामा चरण लाहिड़ी ने एक तेजस्वी युवक से योग विधि द्वारा दीक्षा गृहण की। [[रानीखेत]] के निकट द्रोणागिरी नाम का एक तीर्थ स्थान है। श्यामा चरण लाहिड़ी द्रोणागिरी पर्वत के निकट घूमते हुए प्राकृतिक छटा का आनंद ले रहे थे कि उन्हें अपना नाम सुनाई दिया। जब वे पहाड़ के ऊपर चढ़े तो वहां एक गुफा के सामने उन्हें एक तेजस्वी युवक के दर्शन हुए। युवक ने कहा- "मैंने ही तुम्हें बुलाया है"  इसके बाद उनके पूर्वजन्मों का वृतांत बताकर शक्तिपात किया और योग विधि से दीक्षा दी।
 
श्यामा चरण लाहिड़ी ने एक तेजस्वी युवक से योग विधि द्वारा दीक्षा गृहण की। [[रानीखेत]] के निकट द्रोणागिरी नाम का एक तीर्थ स्थान है। श्यामा चरण लाहिड़ी द्रोणागिरी पर्वत के निकट घूमते हुए प्राकृतिक छटा का आनंद ले रहे थे कि उन्हें अपना नाम सुनाई दिया। जब वे पहाड़ के ऊपर चढ़े तो वहां एक गुफा के सामने उन्हें एक तेजस्वी युवक के दर्शन हुए। युवक ने कहा- "मैंने ही तुम्हें बुलाया है"  इसके बाद उनके पूर्वजन्मों का वृतांत बताकर शक्तिपात किया और योग विधि से दीक्षा दी।

09:57, 2 अगस्त 2018 के समय का अवतरण

श्यामा चरण लाहिड़ी ( जन्म- 1825, नदिया, बंगाल) प्रसिद्ध गृहस्थ साधक थे। वे योग विधि से दीक्षा लेकर अन्य लोगों को भी दीक्षा देने लगे।

परिचय

प्रसिद्ध गृहस्थ साधक श्यामा चरण लाहिड़ी के व्यक्तिगत जीवन के बारे में प्रामाणिक जानकारी का अभाव है। अनुमानत: उनका जन्म 1825 ई. के आस-पास बंगाल के नदिया जिले में कृष्णा नगर के निकट धरणी नामक गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वाराणसी में उन्होंने बांग्ला, संस्कृत और अंग्रेजी की शिक्षा पाई। फिर दानापुर में मिलिट्री अकाउंट ऑफिस में काम करने लगे। इसी सिलसिले में उनका स्थानांतरण उत्तरांचल में अल्मोड़ा जिले के रानीखेत केंट में हो गया।[1]

दीक्षा गृहण

श्यामा चरण लाहिड़ी ने एक तेजस्वी युवक से योग विधि द्वारा दीक्षा गृहण की। रानीखेत के निकट द्रोणागिरी नाम का एक तीर्थ स्थान है। श्यामा चरण लाहिड़ी द्रोणागिरी पर्वत के निकट घूमते हुए प्राकृतिक छटा का आनंद ले रहे थे कि उन्हें अपना नाम सुनाई दिया। जब वे पहाड़ के ऊपर चढ़े तो वहां एक गुफा के सामने उन्हें एक तेजस्वी युवक के दर्शन हुए। युवक ने कहा- "मैंने ही तुम्हें बुलाया है" इसके बाद उनके पूर्वजन्मों का वृतांत बताकर शक्तिपात किया और योग विधि से दीक्षा दी।

दीक्षा वितरण

श्यामा चरण लाहिड़ी गुरु की आज्ञा से अन्य लोगों को भी दीक्षा देने लगे। दीक्षा लेने के बाद भी कई वर्षों तक नौकरी करते रहे और उनका कहना था कि गृहस्थ मनुष्य भी योगाभ्यास द्वारा चिर शांति प्राप्त कर योग के उच्चतम शिखर पर आरुढ़ हो सकता है। उन्होंने एक बांग्ला भाषा में वेदांत, सांख्य, वैश्विक, आदि की व्याख्यान प्रकाशित कराईं। 1880 में सेवानिवृत्त होकर वे काशी आ गये थे। धार्मिक भेदभाव उनमें नहीं था। हिंदू, मुसलमान, इसाई सभी धर्मों के लोग उनके शिष्य बने। उन्होंने आत्मचिंतन को अपनी समस्याएं हल करने का एकमात्र मार्ग बताया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 863 |

बाहरी कड़ियाँ

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