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वर्ष 1962 में प्रदर्शित फ़िल्म सन ऑफ़ इंडिया महबूब ख़ान के सिने करियर की अंतिम फ़िल्म साबित हुई। बड़े बजट से बनी यह फ़िल्म टिकट खिड़की की पर बुरी तरह नकार दी गई। हांलाकि नौशाद के स्वरबद्ध फ़िल्म के गीत नन्हा मुन्ना राही हूं... और तुझे दिल ढूंढ रहा है... श्रोताओं के बीच आज भी तन्मयता के साथ सुने जाते है। अपने जीवन के आख़िरी दौर में महबूब ख़ान 16वीं शताब्दी की कवयित्री हब्बा खातून की जिंदगी पर एक फ़िल्म बनाना चाहते थे। लेकिन उनका यह ख्वाब अधूरा ही रह गया। <ref>{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/entertainment/entertainmentnews/28-28-119523.html |title= चालीस 'चोरों' में एक 'चोर' थे महबूब ख़ान  |accessmonthday=[[28 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=हिंदुस्तान |language=हिन्दी }}</ref>
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वर्ष 1962 में प्रदर्शित फ़िल्म सन ऑफ़ इंडिया महबूब ख़ान के सिने करियर की अंतिम फ़िल्म साबित हुई। बड़े बजट से बनी यह फ़िल्म टिकट खिड़की की पर बुरी तरह नकार दी गई। हांलाकि नौशाद के स्वरबद्ध फ़िल्म के गीत नन्हा मुन्ना राही हूं... और तुझे दिल ढूंढ रहा है... श्रोताओं के बीच आज भी तन्मयता के साथ सुने जाते हैं। अपने जीवन के आख़िरी दौर में महबूब ख़ान 16वीं शताब्दी की कवयित्री हब्बा खातून की जिंदगी पर एक फ़िल्म बनाना चाहते थे। लेकिन उनका यह ख्वाब अधूरा ही रह गया। <ref>{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/entertainment/entertainmentnews/28-28-119523.html |title= चालीस 'चोरों' में एक 'चोर' थे महबूब ख़ान  |accessmonthday=[[28 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=हिंदुस्तान |language=हिन्दी }}</ref>
  
 
==पुरस्कार==
 
==पुरस्कार==

08:32, 20 फ़रवरी 2011 का अवतरण

महबूब ख़ान
Mehboob Khan

महबूब ख़ान का जन्म 1906 में गुजरात के बिलमिरिया में हुआ था। इनका मूल नाम रमजान ख़ान था। हिन्दी सिनेमा जगत के युगपुरुष महबूब ख़ान को एक ऐसी शख्सियत के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने दर्शकों को लगभग तीन दशक तक क्लासिक फ़िल्मों का तोहफा दिया। वह युवावस्था में घर से भागकर मुंबई आ गए और एक स्टूडियों में काम करने लगे। भारतीय सिनेमा को आधुनिकतम तकनीकी से सँवारने में अग्रणी निर्माता-निर्देशक महबूब ख़ान का अहं किरदार रहा है। महबूब ख़ान हॉलीवुड के फ़िल्मों से बहुत अधिक प्रभावित थे और भारत में भी उच्च स्तर के चलचित्रों का निर्माण करने में जुटे रहते थे। उन्होंने अपने सिने कैरियर की शुरुआत 1927 में प्रदर्शित फ़िल्म अलीबाबा एंड फोर्टी थीफ्स से अभिनेता के रूप में की। इस फ़िल्म में उन्होंने चालीस चोरों में से एक चोर की भूमिका निभाई थी।

अभिनेता

बहुत कम लोगों को पता होगा कि भारत की पहली बोलती फ़िल्म आलम आरा के लिए महबूब ख़ान का अभिनेता के रूप में चयन किया गया था। लेकिन फ़िल्म निर्माण के समय आर्देशिर ईरानी ने महसूस किया कि फ़िल्म की सफलता के लिए नए कलाकार को मौक़ा देने के बजाय किसी स्थापित अभिनेता को यह भूमिका देना सही रहेगा। बाद में उन्होंने महबूब ख़ान की जगह मास्टर विट्ठल को इस फ़िल्म में काम करने का अवसर दिया। इसके बाद महबूब ख़ान सागर मूवीटोन से जुड़ गए और कई फ़िल्मों में सहायक अभिनेता के रूप में काम किया।

निर्देशक

वर्ष 1935 में उन्हें जजमेंट ऑफ़ अल्लाह फ़िल्म के निर्देशन का मौक़ा मिला। अरब और रोम के बीच युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित यह फ़िल्म दर्शकों को काफ़ी पसंद आई। महबूब ख़ान को 1936 में मनमोहन और 1937 में जागीरदार फ़िल्म को निर्देशित करने का मौक़ा मिला, लेकिन ये दोनों फ़िल्में टिकट खिड़की पर कुछ ख़ास कमाल नहीं दिखा सकीं।

वर्ष 1937 में उनकी एक ही रास्ता प्रदर्शित हुई। सामाजिक पृष्ठभूमि पर बनी यह फ़िल्म दर्शकों को काफ़ी पसंद आई। इस फ़िल्म की सफलता के बाद वह निर्देशक के रूप में अपनी पहचान बनाने में क़ामयाब हो गए। वर्ष 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण फ़िल्म इंडस्ट्री को काफ़ी आर्थिक नुक़सान का सामना करना पड़ा। इस दौरान सागर मूवीटोन की आर्थिक स्थिति काफ़ी कमज़ोर हो गई और वह बंद हो गई। इसके बाद महबूब ख़ान अपने सहयोगियों के साथ नेशनल स्टूडियों चले गए। जहाँ उन्होंने औरत (1940), बहन (1941) और रोटी (1942) जैसी फ़िल्मों का निर्देशन किया।

कुछ समय तक नेशनल स्टूडियों में काम करने के बाद महबूब ख़ान को महसूस हुआ कि उनकी विचारधारा और कंपनी की विचारधारा में भिन्नता है। इसे देखते हुए उन्होंने नेशनल स्टूडियों को अलविदा कह दिया और महबूब ख़ान प्रोडक्शन लिमिटेड की स्थापना की। इसके बैनर तले उन्होंने नज़मा, तकदीर, और हूमायूँ (1945) जैसी फ़िल्मों का निर्माण किया। वर्ष 1946 में प्रदर्शित फ़िल्म अनमोल घड़ी महबूब ख़ान की सुपरहिट फ़िल्मों में शुमार की जाती है।

इस फ़िल्म से जुड़ा रोचक तथ्य यह है कि महबूब ख़ान फ़िल्म को संगीतमय बनाना चाहते थे। इसी उद्देश्य से उन्होंने नूरजहाँ, सुरैय्या और अभिनेता सुरेन्द्र का चयन किया जो अभिनय के साथ ही गीत गाने में भी सक्षम थे। फ़िल्म की सफलता से महबूब ख़ान का निर्णय सही साबित हुआ। नौशाद के संगीत से सजे आवाज दे कहाँ है..., आजा मेरी बर्बाद मोहब्बत के सहारे... और जवाँ है मोहब्बत... जैसे गीत श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय हैं।

महत्त्वपूर्ण फ़िल्म

वर्ष 1949 में प्रदर्शित फ़िल्म अंदाज महबूब ख़ान की महत्त्वपूर्ण फ़िल्मों में शामिल है। प्रेम त्रिकोण पर बनी दिलीप कुमार, राज कपूर और नर्गिस अभिनीत यह फ़िल्म क़्लासिक फ़िल्मों में शुमार की जाती है। इस फ़िल्म में दिलीप कुमार और राजकपूर ने पहली और आख़िरी बार एक साथ काम किया था। वर्ष 1952 में प्रदर्शित फ़िल्म आन महबूब ख़ान की एक और महत्त्वपूर्ण फ़िल्म साबित हुई। इस फ़िल्म की ख़ास बात यह थी कि यह हिंदुस्तान में बनी पहली टेक्नीकलर फ़िल्म थी और इसे काफ़ी खर्च के साथ वृहत पैमाने पर बनाया गया था।

दिलीप कुमार, प्रेमनाथ और नादिरा की मुख्य भूमिका वाली इस फ़िल्म से जुड़ा एक रोचक तथ्य यह भी है कि भारत में बनी यह पहली फ़िल्म थी जो पूरे विश्व में एक साथ प्रदर्शित की गई। आन की सफलता के बाद महबूब ख़ान ने अमर फ़िल्म का निर्माण किया। बलात्कार जैसे संवेदनशील विषय बनी इस फ़िल्म में दिलीप कुमार, मधुबाला और निम्मी ने मुख्य निभाई। हालांकि फ़िल्म व्यावसायिक तौर पर सफल नहीं हुई, लेकिन महबूब ख़ान इसे अपनी एक महत्त्वपूर्ण फ़िल्म मानते थे।

महत्त्वपूर्ण फ़िल्में
वर्ष फ़िल्म
1957 मदर इण्डिया
1954 अमर
1949 अंदाज़
1946 अनमोल घड़ी
1945 हुमायूँ
1943 नज़मा

मदर इंडिया

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वर्ष 1957 में प्रदर्शित फ़िल्म मदर इंडिया महबूब ख़ान की सर्वाधिक सफल फ़िल्मों में शुमार की जाती है। उन्होंने मदर इंडिया से पहले भी इसी कहानी पर 1939 में औरत फ़िल्म का निर्माण किया था और वह इस फ़िल्म का नाम भी औरत ही रखना चाहते थे। लेकिन नर्गिस के कहने पर उन्होंने इसका मदर इंडिया जैसा विशुद्व अंग्रेज़ी नाम रखा। फ़िल्म की सफलता से उनका यह सुझाव सही साबित हुआ। महान अदाकारा नर्गिस को फ़िल्म इंडस्ट्री में लाने में महबूब ख़ान की अहम भूमिका रही।

नर्गिस अभिनेत्री नहीं बनना चाहती थी, लेकिन महबूब ख़ान को उनकी अभिनय क्षमता पर पूरा भरोसा था और वह उन्हें अपनी फ़िल्म में अभिनेत्री के रूप में काम देना चाहते थे। एक बार नर्गिस की माँ ने उन्हें स्क्रीन टेस्ट के लिए महबूब ख़ान के पास जाने को कहा। चूंकि नर्गिस अभिनय क्षेत्र में जाने की इच्छुक नहीं थीं, इसलिए उन्होंने सोचा कि यदि वह स्क्रीन टेस्ट में फेल हो जाती हैं तो उन्हें अभिनेत्री नहीं बनना पडे़गा।

स्क्रीन टेस्ट के दौरान नर्गिस ने अनमने ढंग से संवाद बोले और सोचा कि महबूब ख़ान उन्हें स्क्रीन टेस्ट में फेल कर देंगे। लेकिन उनका यह विचार ग़लत निकला। महबूब ख़ान ने अपनी नई फ़िल्म तकदीर (1943) के लिए नायिका उन्हें चुन लिया। बाद में नर्गिस ने महबूब ख़ान की कई फ़िल्मों में अभिनय किया। इसमें 1957 में प्रदर्शित फ़िल्म मदर इंडिया ख़ास तौर पर उल्लेखनीय है।

सन ऑफ़ इंडिया

वर्ष 1962 में प्रदर्शित फ़िल्म सन ऑफ़ इंडिया महबूब ख़ान के सिने करियर की अंतिम फ़िल्म साबित हुई। बड़े बजट से बनी यह फ़िल्म टिकट खिड़की की पर बुरी तरह नकार दी गई। हांलाकि नौशाद के स्वरबद्ध फ़िल्म के गीत नन्हा मुन्ना राही हूं... और तुझे दिल ढूंढ रहा है... श्रोताओं के बीच आज भी तन्मयता के साथ सुने जाते हैं। अपने जीवन के आख़िरी दौर में महबूब ख़ान 16वीं शताब्दी की कवयित्री हब्बा खातून की जिंदगी पर एक फ़िल्म बनाना चाहते थे। लेकिन उनका यह ख्वाब अधूरा ही रह गया। [1]

पुरस्कार

मदर इंडिया (1957) के निर्माण ने सर्वाधिक ख्याति दिलाई क्योंकि मदर इंडिया को विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के लिये अकादमी पुरस्कार के लिये नामांकित किया गया तथा इस फ़िल्म ने सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए फ़िल्म फेयर पुरस्कार भी जीता।

महबूब ख़ान की प्रमुख कृतियाँ

महबूब ख़ान और मदर इंडिया के सम्मान में भारत सरकार द्वारा जारी डाक टिकट

निर्देशक के रूप में

  • सन ऑफ़ इंडिया (1962)
  • अ हैंडफुल ऑफ़ ग्रेन (1959)
  • मदर इंडिया (1957)
  • अमर (1954)
  • आन (1952)
  • अंदाज (1949)
  • अनोखी अदा (1948)
  • ऐलान (1947)
  • अनमोल घड़ी (1946)
  • हुमायुँ (1945)
  • नाज़िमा (1943)
  • तकदीर (1943)
  • रोटी (1942)
  • बहन (1941)
  • अलीबाबा (1940/I)
  • अलीबाबा (1940/II)
  • औरत (1940)
  • एक ही रास्ता (1939)
  • हम तुम और वो (1938)
  • वतन (1938)
  • जागीरदार (1937)
  • डेक्कन क्वीन (1936)
  • मनमोहन (1936)
  • जजमेंट ऑफ़ अल्लाह (1935)

निर्माता के रूप में

  • अमर (1954)
  • आन (1952)
  • अनोखी अदा (1948)
  • अनमोल घड़ी (1946)

अभिनेता के रूप में

  • दिलावर (1931)
  • मेरी जान (1931)[2]

मृत्यु

अपनी फ़िल्मों से दर्शकों के बीच ख़ास पहचान बनाने वाले महान फ़िल्मकार महबूब ख़ान 28 मई 1964 को इस दुनिया से रूख़सत हो गया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. चालीस 'चोरों' में एक 'चोर' थे महबूब ख़ान (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) हिंदुस्तान। अभिगमन तिथि: 28 अगस्त, 2010
  2. महबूब ख़ान … भारतीय सिनेमा के अग्रणी निर्माता-निर्देशक (हिन्दी) हिन्दी वेबसाइट। अभिगमन तिथि: 28 अगस्त, 2010