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'''नींद में चलना''' ([[अंग्रेज़ी]]: Somnambulism) अर्थात ''स्लीपवाकिंग'' एक विचित्र प्रकार की गंभीर मनोवैज्ञानिक बीमारी है जो कि कुछ ही लोगों में पायी जाती है। जिसे सोमनाबुलिज्म (SOMNAMBULISM) या स्लीपिंग डिसऑर्डर भी कहा जाता है। इस रोग में रोगी नींद में ही चलने लगता है। इस बीमारी से ग्रसित रोगी रात में नींद से उठकर अपने बिस्तर से चलता है और एक जागे हुए मनुष्य की तरह विभिन्न कार्य को आसानी से कर देता है। उसे पता ही नहीं चलता कि वो रात को क्या कर रहा था। जब रोगी ऐसा कर रहा होता है तब वे अर्धजागृत अवस्था में होता है, लेकिन फिर से सो जाने के बाद जब वह सुबह जागता है तो उसे अपने द्वारा नींद में किए गए कार्य याद नहीं रहते। यह एक विचित्र बीमारी है जो कि स्नायुविक गड़बड़ी से होती है।
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'''नींद में चलना''' ([[अंग्रेज़ी]]: Somnambulism) अर्थात् ''स्लीपवाकिंग'' एक विचित्र प्रकार की गंभीर मनोवैज्ञानिक बीमारी है जो कि कुछ ही लोगों में पायी जाती है। जिसे सोमनाबुलिज्म (SOMNAMBULISM) या स्लीपिंग डिसऑर्डर भी कहा जाता है। इस रोग में रोगी नींद में ही चलने लगता है। इस बीमारी से ग्रसित रोगी रात में नींद से उठकर अपने बिस्तर से चलता है और एक जागे हुए मनुष्य की तरह विभिन्न कार्य को आसानी से कर देता है। उसे पता ही नहीं चलता कि वो रात को क्या कर रहा था। जब रोगी ऐसा कर रहा होता है तब वे अर्धजागृत अवस्था में होता है, लेकिन फिर से सो जाने के बाद जब वह सुबह जागता है तो उसे अपने द्वारा नींद में किए गए कार्य याद नहीं रहते। यह एक विचित्र बीमारी है जो कि स्नायुविक गड़बड़ी से होती है।
  
 
==भारत में स्थिति==
 
==भारत में स्थिति==
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==स्लीपवाकिंग के लक्षण==
 
==स्लीपवाकिंग के लक्षण==
स्लीपवाकिंग का सबसे मुख्य लक्षण है- अपनी इच्छा से गतिविधि करना जब गहरी नींद की अर्ध जाग्रत अवस्था में हो। कुछ नींद में चलने वाले लोग बिस्तर पर ही बैठ जाते हैं और अपने पैर हिलाते रहते हैं। अन्य और जटिल कार्य करते हैं जैसे की कपडे उतारना और पहनना, खाना खाना या पेशाब करना।
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स्लीपवाकिंग का सबसे मुख्य लक्षण है- अपनी इच्छा से गतिविधि करना जब गहरी नींद की अर्ध जाग्रत अवस्था में हो। कुछ नींद में चलने वाले लोग बिस्तर पर ही बैठ जाते हैं और अपने पैर हिलाते रहते हैं। अन्य और जटिल कार्य करते हैं जैसे कि कपड़े उतारना और पहनना, खाना खाना या पेशाब करना।
  
बच्चा नींद में चलते समय भी गहरी नींद में ही होता है और उसे अपनी उस स्थिति का अहसास तक नहीं होता क्योंकि नींद में चलते वक्त भी उसकी [[आँख|आँखें]] खुली रहती हैं, लेकिन चेहरा एकदम भावहीन रहता है। उसे जगाना अगर असंभव नहीं है तो बहुत कठिन होता है। लेकिन वह आस-पास की चीजों से टकरा कर घायल हो सकता है। वह अपने आस-पास हो रही बातचीत पर ध्यान नहीं देता। यहां तक की यदि उसका नाम लेकर पुकारा जाय, तब भी वह कोई प्रतिक्रिया नहीं देता।
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बच्चा नींद में चलते समय भी गहरी नींद में ही होता है और उसे अपनी उस स्थिति का अहसास तक नहीं होता क्योंकि नींद में चलते वक्त भी उसकी [[आँख|आँखें]] खुली रहती हैं, लेकिन चेहरा एकदम भावहीन रहता है। उसे जगाना अगर असंभव नहीं है तो बहुत कठिन होता है। लेकिन वह आस-पास की चीजों से टकरा कर घायल हो सकता है। वह अपने आस-पास हो रही बातचीत पर ध्यान नहीं देता। यहां तक कि यदि उसका नाम लेकर पुकारा जाय, तब भी वह कोई प्रतिक्रिया नहीं देता।
  
 
==नींद==
 
==नींद==
 
 
नींद के प्रारंभिक दो घंटो के मध्य ही नींद में चलने की घटनाएं सबसे आम होती है। नींद में चलने का समय 15 मिनट से लेकर दो घंटे तक का हो सकता है। इस अवस्था में बच्चा तैयार होकर घर से बाहर भी जा सकता है। स्लीपवाकिंग नींद के स्वप्न वाले स्तर पर नहीं होता है।
 
नींद के प्रारंभिक दो घंटो के मध्य ही नींद में चलने की घटनाएं सबसे आम होती है। नींद में चलने का समय 15 मिनट से लेकर दो घंटे तक का हो सकता है। इस अवस्था में बच्चा तैयार होकर घर से बाहर भी जा सकता है। स्लीपवाकिंग नींद के स्वप्न वाले स्तर पर नहीं होता है।
 
====चार अवस्थाएं====  
 
====चार अवस्थाएं====  
नींद की चार अवस्थाएं होती हैं। अकसर यह समस्या नींद की चौथी अवस्था में होती है। इसे स्लोवेव स्लीप भी कहा जाता है। यह नींद की नॉन ड्रीमिंग स्टेज होती है और इसकी अवधि लंबी होती है। इसमें सांस लेने तथा नाडी की गति धीमी हो जाती है। शरीर का तापमान कम हो जाता है तथा मांसपेशियां भी शिथिल हो जाती हैं। यह अवस्था प्राय: पांच से पंद्रह मिनट तक की हो सकती हैं। नींद में चलने वाले व्यक्ति को ख़ुद इस बात का एहसास नहीं होता कि वह नींद में चल रहा है।
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नींद की चार अवस्थाएं होती हैं। अकसर यह समस्या नींद की चौथी अवस्था में होती है। इसे स्लोवेव स्लीप भी कहा जाता है। यह नींद की नॉन ड्रीमिंग स्टेज होती है और इसकी अवधि लंबी होती है। इसमें सांस लेने तथा नाड़ी की गति धीमी हो जाती है। शरीर का तापमान कम हो जाता है तथा [[मांसपेशी|मांसपेशियां]] भी शिथिल हो जाती हैं। यह अवस्था प्राय: पांच से पंद्रह मिनट तक की हो सकती हैं। नींद में चलने वाले व्यक्ति को ख़ुद इस बात का एहसास नहीं होता कि वह नींद में चल रहा है।
 
 
यदि आप चाहे तो इस विषय पर अपने की डॉक्टर की सलाह ले सकते हैं। लेकिन बच्चा घर से बाहर न जा सके, इसका सबसे अच्छा उपाय यही है कि सोने से पहले घर के सभी खिड़की दरवाजों को अच्छी तरह बंद कर दें और मुख्य द्वार पर ताला लगा कर उसकी चाभी अपने पास रखे। यदि खिड़कियां नीची हैं और आपको लगता है कि इससे भी बाहर निकला जा सकता है तो आपके लिए यही सलाह है कि सोने के पहले खिड़की को भी अच्छी तरह लॉक करें। अगर आप सभी सावधानियां बरतते हैं तो आपको अपनी रातों की नींद खराब करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। वैसे भी उम्र बढ़ने के साथ यह रोग अपने आप ही ठीक हो जाता है।
 
 
 
इस अवस्था में इंसान अपने आप से पूरी तरह बेखबर होता है। इसलिए ऐसे लोगों के साथ दुर्घटना की आशंका हमेशा बनी रहती है। इसलिए ऐसे मरीजों की सुरक्षा का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। अगर किसी को यह समस्या हो तो उसके बेडरूम के डोर नॉब के साथ एक ऑटोमेटिक अलार्म फिट होता है, ताकि जब वह व्यक्ति दरवाजा खोलने की कोशिश करेगा तो अलार्म बज उठेगा। इससे संभावित दुर्घटना को टालना आसान हो जाएगा। अक्सर ये लोग घर में रखी चीजों से टकरा जाते हैं इसलिए उन्हें इस बात का विशेष ध्यान रखिए कि घर में बाहर निकली हुई कोई नुकीली वस्तु न हो जिससे टकरा कर वे घायल हो जाएं।
 
 
 
;कारण
 
विशेषज्ञ सोचते हैं कि बच्चों में स्लीपवाकिंग इसलिये होता है कि दिमाग की नींद और जाग्रत करने वाली प्रणाली अभी तक परिपक्व नहीं हो पायी होती है। ज़्यादातर बच्चों में लक्षणों से पीछा छुट जाता है जैसे उनका तंत्रिका तंत्र विकसित हो जाता है। स्लीपवाकिंग जो की जीवन के बाद में शुरू होता है और व्यस्क उम्र तक चलता है उसके कई मानसिक कारण हो सकते हैं जैसे की अत्याधिक दवाब या दुर्लभ रूप से चिकित्सकीय कारण जैसे मिर्गी। नींद में डर (नाईट टेरर या पेवोर नोक्तार्नस) सम्बंधित विकार होते है जो की प्राय बहुत जवान बच्चों में होते हैं। स्लीपवाकिंग और स्लीप टेरर परिवारों में चलते हैं।
 
  
स्लीप टेरर में एक बच्चा अचानक से नींद में जाने के 1 से 2 घंटे के बाद अचानक से बैठ जाता है और बहुत डर और उत्तेजना दर्शाता है और इस तरह से चिल्ला या रो सकता है की अन्य कोई कमरे में है और उसे आराम या उसे जगाया नहीं जा सकता है। जैसे ही विघ्न खत्म होता है बच्चा गहरी नींद में वापस आ जाता है। जब बच्चा सुबह जागता है तो वो स्लीप टेरर को याद नहीं रख पाता है। स्लीप टेरर रात के बुरे सपनो से अलग होता है जो की डराने वाले स्वप्न होते हैं जो की अगली सुबह विस्तार से याद रहते हैं।
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==उपाय==
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* यदि आप चाहे तो इस विषय पर अपने किसी डॉक्टर की सलाह ले सकते हैं। लेकिन बच्चा घर से बाहर न जा सके, इसका सबसे अच्छा उपाय यही है कि सोने से पहले घर के सभी खिड़की दरवाजों को अच्छी तरह बंद कर दें और मुख्य द्वार पर ताला लगा कर उसकी चाभी अपने पास रखे।
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* यदि खिड़कियां नीची हैं और आपको लगता है कि इससे भी बाहर निकला जा सकता है तो आपके लिए यही सलाह है कि सोने के पहले खिड़की को भी अच्छी तरह लॉक करें। अगर आप सभी सावधानियां बरतते हैं तो आपको अपनी रातों की नींद ख़राब करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। वैसे भी उम्र बढ़ने के साथ यह रोग अपने आप ही ठीक हो जाता है।
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* इस अवस्था में इंसान अपने आप से पूरी तरह बेखबर होता है। इसलिए ऐसे लोगों के साथ दुर्घटना की आशंका हमेशा बनी रहती है। इसलिए ऐसे मरीजों की सुरक्षा का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। अगर किसी को यह समस्या हो तो उसके बेडरूम के डोर नॉब के साथ एक ऑटोमेटिक अलार्म फिट होता है, ताकि जब वह व्यक्ति दरवाज़ा खोलने की कोशिश करेगा तो अलार्म बज उठेगा। इससे संभावित दुर्घटना को टालना आसान हो जाएगा। अक्सर ये लोग घर में रखी चीजों से टकरा जाते हैं इसलिए उन्हें इस बात का विशेष ध्यान रखिए कि घर में बाहर निकली हुई कोई नुकीली वस्तु न हो जिससे टकरा कर वे घायल हो जाएं।
  
वयस्कों में यह बीमारी औसतन एक प्रतिशत लोगों को ही होती है। यह भी जरूरी नहीं है कि जो बच्चे बचपन में नींद मे चलते थे बड़े होकर भी नींद में चलेंगे ही। बड़ों में नींद में चलने के कारण एकदम अलग होते हैं, वे तनाव, चिंता, अनिद्रा या मिर्गी जैसे रोगों के कारण इस रोग का शिकार हो जाते हैं। कारण दूर होते ही रोग का निवारण अपने आप हो जाता है। किसी मामूली न्यूरोलॉजिक समस्या के कारण भी ऐसे लक्षण देखने को मिल सकते हैं।  
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==कारण==
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विशेषज्ञ सोचते हैं कि बच्चों में स्लीपवाकिंग इसलिये होता है कि दिमाग की नींद और जाग्रत करने वाली प्रणाली अभी तक परिपक्व नहीं हो पायी होती है। ज़्यादातर बच्चों में लक्षणों से पीछा छुट जाता है जैसे उनका तंत्रिका तंत्र विकसित हो जाता है। स्लीपवाकिंग जो की जीवन के बाद में शुरू होता है और वयस्क उम्र तक चलता है, उसके कई मानसिक कारण हो सकते हैं जैसे कि अत्याधिक दवाब या दुर्लभ रूप से चिकित्सकीय कारण जैसे मिर्गी। नींद में डर (नाईट टेरर या पेवोर नोक्तार्नस) सम्बंधित विकार होते है जो की प्राय बहुत जवान बच्चों में होते हैं। स्लीपवाकिंग और स्लीप टेरर [[परिवार|परिवारों]] में चलते हैं।
  
वयस्कों को इलाज की जरूरत पड़ सकती है यदि नींद में चलने वाला रात में उठ कर लिविंगरूम में आ जाता है या दरवाजा खोल कर घर से बाहर भीड़ भरी सड़कों पर भी निकल जाता है। ऐसे में वह दुर्घटना का शिकार हो सकता है। ऐसा माना जाता है कि सम्मोहन से इस रोग का इलाज संभव है।
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स्लीप टेरर में एक बच्चा अचानक से नींद में जाने के 1 से 2 घंटे के बाद अचानक से बैठ जाता है और बहुत डर और उत्तेजना दर्शाता है और इस तरह से चिल्ला या रो सकता है कि अन्य कोई कमरे में है और उसे आराम या उसे जगाया नहीं जा सकता है। जैसे ही विघ्न खत्म होता है, बच्चा गहरी नींद में वापस आ जाता है। जब बच्चा सुबह जागता है तो वो स्लीप टेरर को याद नहीं रख पाता है। स्लीप टेरर रात के बुरे सपनो से अलग होता है जो की डराने वाले स्वप्न होते हैं जो की अगली सुबह विस्तार से याद रहते हैं।
  
इस समस्या के निदान के लिए सबसे पहले नींद में चलने का सही कारण पता लगाकर उसे दूर करने की कोशिश की जाती है। बिहेवियर थेरेपी द्वारा व्यक्ति को अवचेतन में ले जाकर उसे मनोचिकित्सक द्वारा वही कार्य करने के निर्देश दिए जाते हैं, जिन्हें वह प्राय: नींद की अवस्था में करता है। उपचार की प्रक्रिया थोडी लंबी जरूर होती है, लेकिन इससे यह समस्या दूर हो जाती है।
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वयस्कों में यह बीमारी औसतन एक प्रतिशत लोगों को ही होती है। यह भी ज़रूरी नहीं है कि जो बच्चे बचपन में नींद मे चलते थे बड़े होकर भी नींद में चलेंगे ही। बड़ों में नींद में चलने के कारण एकदम अलग होते हैं, वे तनाव, चिंता, अनिद्रा या मिर्गी जैसे रोगों के कारण इस रोग का शिकार हो जाते हैं। कारण दूर होते ही रोग का निवारण अपने आप हो जाता है। किसी मामूली न्यूरोलॉजिक समस्या के कारण भी ऐसे लक्षण देखने को मिल सकते हैं।
  
;वैज्ञानिकों का शोध
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वयस्कों को इलाज की ज़रूरत पड़ सकती है यदि नींद में चलने वाला रात में उठ कर लिविंगरूम में आ जाता है या दरवाज़ा खोल कर घर से बाहर भीड़ भरी सड़कों पर भी निकल जाता है। ऐसे में वह दुर्घटना का शिकार हो सकता है। ऐसा माना जाता है कि [[सम्मोहन]] से इस रोग का इलाज संभव है।
वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि यह बिमारी अनुवांशिक है और पीढी दर पीढी आगे बढती रहती है। नींद में चलने के पीछे जिनेटिक खामी जिम्मेदार है। डीएनए में इतना सा दोष भी इस डिसऑर्डर के लिए काफी है। हाल में की गई एक शोध के अनुसार हमारे शरीर में स्थित क्रोमोसोम 20 की वजह से ऐसा होता है। इस क्रोमोसोम के खराब हो जाने से नींद में चलने की आदत लग जाती है।
 
  
वाशिंगटन स्कूल ऑफ मेडिसीन (वाशिंगटन यूनिवर्सिटी) की डॉ. क्रिस्टीना जर्नेट और उनकी टीम ने एक ही परिवार के 22 सदस्यों का परीक्षण कर ये नतीजे प्राप्त किए। इस परिवार के 9 सदस्य नींद में चलने की बिमारी से ग्रसित हैं। डॉ. गर्नट के अनुसार इस बिमारी से ग्रसित व्यक्ति से यह क्रोमोसोम खामी उसकी संतान तक जाती है। ऐसा होने की सम्भावना लगभग 50% तक होती है।
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इस समस्या के निदान के लिए सबसे पहले नींद में चलने का सही कारण पता लगाकर उसे दूर करने की कोशिश की जाती है। बिहेवियर थेरेपी द्वारा व्यक्ति को अवचेतन में ले जाकर उसे मनोचिकित्सक द्वारा वही कार्य करने के निर्देश दिए जाते हैं, जिन्हें वह प्राय: नींद की अवस्था में करता है। उपचार की प्रक्रिया थोडी लंबी ज़रूर होती है, लेकिन इससे यह समस्या दूर हो जाती है।
  
डॉ. क्रिस्टीना जर्नेट का मानना है कि इससे इस बीमारी का इलाज ढूंढने में मदद मिलेगी। यह डिसऑर्डर 10 में से एक बच्चे को कभी ना कभी प्रभावित करता है और 50 वयस्कों में से एक को। इस स्थिति को साम्नैम्ब्यलिजम भी कहा जाता है। जर्नेट के मुताबिक इसके लिए क्रोमोसोम 20 जिम्मेदार है। यह एक जीन है, जो कि विशेष तौर से एक परिवार में मिला, लेकिन यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि इस बीमारी से पीड़ित हर परिवार में यही जीन जिम्मेदार होगा।
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==वैज्ञानिकों का शोध==
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वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि यह बीमारी अनुवांशिक है और पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढती रहती है। नींद में चलने के पीछे जिनेटिक खामी ज़िम्मेदार है। डी.एन.ए. में इतना सा दोष भी इस डिसऑर्डर के लिए काफ़ी है। हाल में की गई एक शोध के अनुसार हमारे शरीर में स्थित क्रोमोसोम 20 की वजह से ऐसा होता है। इस क्रोमोसोम के ख़राब हो जाने से नींद में चलने की आदत लग जाती है। वाशिंगटन स्कूल ऑफ मेडिसीन (वाशिंगटन यूनिवर्सिटी) की डॉ. क्रिस्टीना जर्नेट और उनकी टीम ने एक ही परिवार के 22 सदस्यों का परीक्षण कर ये नतीजे प्राप्त किए। इस परिवार के 9 सदस्य नींद में चलने की बीमारी से ग्रसित हैं। डॉ. गर्नट के अनुसार इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति से यह क्रोमोसोम खामी उसकी संतान तक जाती है। ऐसा होने की सम्भावना लगभग 50% तक होती है।
  
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डॉ. क्रिस्टीना जर्नेट का मानना है कि इससे इस बीमारी का इलाज ढूंढने में मदद मिलेगी। यह डिसऑर्डर 10 में से एक बच्चे को कभी ना कभी प्रभावित करता है और 50 वयस्कों में से एक को। इस स्थिति को ''साम्नैम्ब्यलिजम'' भी कहा जाता है। जर्नेट के मुताबिक़ इसके लिए क्रोमोसोम 20 ज़िम्मेदार है। यह एक जीन है, जो कि विशेष तौर से एक [[परिवार]] में मिला, लेकिन यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि इस बीमारी से पीड़ित हर परिवार में यही जीन ज़िम्मेदार होगा।
  
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
==बाहरी कड़ियाँ==
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*[http://pratibhaba-bhagwanbharose.blogspot.in/2011/12/blog-post.html बच्चे नींद में क्यों चलते हैं?]
  
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
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[[Category:नया पन्ना दिसंबर-2011]]
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[[Category:रोग]]
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09:58, 11 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

नींद में चलता रोगी

नींद में चलना (अंग्रेज़ी: Somnambulism) अर्थात् स्लीपवाकिंग एक विचित्र प्रकार की गंभीर मनोवैज्ञानिक बीमारी है जो कि कुछ ही लोगों में पायी जाती है। जिसे सोमनाबुलिज्म (SOMNAMBULISM) या स्लीपिंग डिसऑर्डर भी कहा जाता है। इस रोग में रोगी नींद में ही चलने लगता है। इस बीमारी से ग्रसित रोगी रात में नींद से उठकर अपने बिस्तर से चलता है और एक जागे हुए मनुष्य की तरह विभिन्न कार्य को आसानी से कर देता है। उसे पता ही नहीं चलता कि वो रात को क्या कर रहा था। जब रोगी ऐसा कर रहा होता है तब वे अर्धजागृत अवस्था में होता है, लेकिन फिर से सो जाने के बाद जब वह सुबह जागता है तो उसे अपने द्वारा नींद में किए गए कार्य याद नहीं रहते। यह एक विचित्र बीमारी है जो कि स्नायुविक गड़बड़ी से होती है।

भारत में स्थिति

नींद में चलना एक विकार है। आंकड़ों के अनुसार इससे भारत के लगभग चौदह प्रतिशत किशोर इस रोग से पीड़ित होते है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार 4 से 8 वर्ष के बच्चों में सोमनाबुलिज्म की समस्या ज़्यादा देखने को मिलती है। स्लीपवाकिंग स्कूल जाने वाली उम्र के बच्चों में आम रूप से होता है। एक अध्ययन से पता चला है की लगभग 15% तक बच्चे जो कि 5 से 12 साल की उम्र के हैं वो अपनी नींद में कम से कम एक बार चलते हैं। लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में नींद में चलने की बीमारी ज़्यादा पाई जाती है। बार बार स्लीपवाकिंग पुरुषों में आम होती है और बिस्तर में पेशाब करने के साथ होती है।

नींद में चलना एक मस्तिष्क रोग के साथ-साथ नींद का भी विकार है। यह तंत्रिका-तंत्र का मस्तिष्क विकार है। उदाहरण के लिए जैसे- जब हम जागृत अवस्था में होते हैं तो मस्तिष्क भी पूर्णतः जागृत अवस्था में होता है, परंतु नींद में चलने वालों के मस्तिष्क का एक हिस्सा तो गतिशील रहता है जबकि दूसरा हिस्सा सुप्त अवस्था में रहता है, जिसके कारण वे नींद में भी उठ कर चलने लगते है। लेकिन यह अवस्था ज़्यादा देर नहीं रहती, सिर्फ उतनी देर ही रहती है जब बच्चा चल रहा होता है।

स्लीपवाकिंग के लक्षण

स्लीपवाकिंग का सबसे मुख्य लक्षण है- अपनी इच्छा से गतिविधि करना जब गहरी नींद की अर्ध जाग्रत अवस्था में हो। कुछ नींद में चलने वाले लोग बिस्तर पर ही बैठ जाते हैं और अपने पैर हिलाते रहते हैं। अन्य और जटिल कार्य करते हैं जैसे कि कपड़े उतारना और पहनना, खाना खाना या पेशाब करना।

बच्चा नींद में चलते समय भी गहरी नींद में ही होता है और उसे अपनी उस स्थिति का अहसास तक नहीं होता क्योंकि नींद में चलते वक्त भी उसकी आँखें खुली रहती हैं, लेकिन चेहरा एकदम भावहीन रहता है। उसे जगाना अगर असंभव नहीं है तो बहुत कठिन होता है। लेकिन वह आस-पास की चीजों से टकरा कर घायल हो सकता है। वह अपने आस-पास हो रही बातचीत पर ध्यान नहीं देता। यहां तक कि यदि उसका नाम लेकर पुकारा जाय, तब भी वह कोई प्रतिक्रिया नहीं देता।

नींद

नींद के प्रारंभिक दो घंटो के मध्य ही नींद में चलने की घटनाएं सबसे आम होती है। नींद में चलने का समय 15 मिनट से लेकर दो घंटे तक का हो सकता है। इस अवस्था में बच्चा तैयार होकर घर से बाहर भी जा सकता है। स्लीपवाकिंग नींद के स्वप्न वाले स्तर पर नहीं होता है।

चार अवस्थाएं

नींद की चार अवस्थाएं होती हैं। अकसर यह समस्या नींद की चौथी अवस्था में होती है। इसे स्लोवेव स्लीप भी कहा जाता है। यह नींद की नॉन ड्रीमिंग स्टेज होती है और इसकी अवधि लंबी होती है। इसमें सांस लेने तथा नाड़ी की गति धीमी हो जाती है। शरीर का तापमान कम हो जाता है तथा मांसपेशियां भी शिथिल हो जाती हैं। यह अवस्था प्राय: पांच से पंद्रह मिनट तक की हो सकती हैं। नींद में चलने वाले व्यक्ति को ख़ुद इस बात का एहसास नहीं होता कि वह नींद में चल रहा है।

उपाय

  • यदि आप चाहे तो इस विषय पर अपने किसी डॉक्टर की सलाह ले सकते हैं। लेकिन बच्चा घर से बाहर न जा सके, इसका सबसे अच्छा उपाय यही है कि सोने से पहले घर के सभी खिड़की दरवाजों को अच्छी तरह बंद कर दें और मुख्य द्वार पर ताला लगा कर उसकी चाभी अपने पास रखे।
  • यदि खिड़कियां नीची हैं और आपको लगता है कि इससे भी बाहर निकला जा सकता है तो आपके लिए यही सलाह है कि सोने के पहले खिड़की को भी अच्छी तरह लॉक करें। अगर आप सभी सावधानियां बरतते हैं तो आपको अपनी रातों की नींद ख़राब करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। वैसे भी उम्र बढ़ने के साथ यह रोग अपने आप ही ठीक हो जाता है।
  • इस अवस्था में इंसान अपने आप से पूरी तरह बेखबर होता है। इसलिए ऐसे लोगों के साथ दुर्घटना की आशंका हमेशा बनी रहती है। इसलिए ऐसे मरीजों की सुरक्षा का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। अगर किसी को यह समस्या हो तो उसके बेडरूम के डोर नॉब के साथ एक ऑटोमेटिक अलार्म फिट होता है, ताकि जब वह व्यक्ति दरवाज़ा खोलने की कोशिश करेगा तो अलार्म बज उठेगा। इससे संभावित दुर्घटना को टालना आसान हो जाएगा। अक्सर ये लोग घर में रखी चीजों से टकरा जाते हैं इसलिए उन्हें इस बात का विशेष ध्यान रखिए कि घर में बाहर निकली हुई कोई नुकीली वस्तु न हो जिससे टकरा कर वे घायल हो जाएं।

कारण

विशेषज्ञ सोचते हैं कि बच्चों में स्लीपवाकिंग इसलिये होता है कि दिमाग की नींद और जाग्रत करने वाली प्रणाली अभी तक परिपक्व नहीं हो पायी होती है। ज़्यादातर बच्चों में लक्षणों से पीछा छुट जाता है जैसे उनका तंत्रिका तंत्र विकसित हो जाता है। स्लीपवाकिंग जो की जीवन के बाद में शुरू होता है और वयस्क उम्र तक चलता है, उसके कई मानसिक कारण हो सकते हैं जैसे कि अत्याधिक दवाब या दुर्लभ रूप से चिकित्सकीय कारण जैसे मिर्गी। नींद में डर (नाईट टेरर या पेवोर नोक्तार्नस) सम्बंधित विकार होते है जो की प्राय बहुत जवान बच्चों में होते हैं। स्लीपवाकिंग और स्लीप टेरर परिवारों में चलते हैं।

स्लीप टेरर में एक बच्चा अचानक से नींद में जाने के 1 से 2 घंटे के बाद अचानक से बैठ जाता है और बहुत डर और उत्तेजना दर्शाता है और इस तरह से चिल्ला या रो सकता है कि अन्य कोई कमरे में है और उसे आराम या उसे जगाया नहीं जा सकता है। जैसे ही विघ्न खत्म होता है, बच्चा गहरी नींद में वापस आ जाता है। जब बच्चा सुबह जागता है तो वो स्लीप टेरर को याद नहीं रख पाता है। स्लीप टेरर रात के बुरे सपनो से अलग होता है जो की डराने वाले स्वप्न होते हैं जो की अगली सुबह विस्तार से याद रहते हैं।

वयस्कों में यह बीमारी औसतन एक प्रतिशत लोगों को ही होती है। यह भी ज़रूरी नहीं है कि जो बच्चे बचपन में नींद मे चलते थे बड़े होकर भी नींद में चलेंगे ही। बड़ों में नींद में चलने के कारण एकदम अलग होते हैं, वे तनाव, चिंता, अनिद्रा या मिर्गी जैसे रोगों के कारण इस रोग का शिकार हो जाते हैं। कारण दूर होते ही रोग का निवारण अपने आप हो जाता है। किसी मामूली न्यूरोलॉजिक समस्या के कारण भी ऐसे लक्षण देखने को मिल सकते हैं।

वयस्कों को इलाज की ज़रूरत पड़ सकती है यदि नींद में चलने वाला रात में उठ कर लिविंगरूम में आ जाता है या दरवाज़ा खोल कर घर से बाहर भीड़ भरी सड़कों पर भी निकल जाता है। ऐसे में वह दुर्घटना का शिकार हो सकता है। ऐसा माना जाता है कि सम्मोहन से इस रोग का इलाज संभव है।

इस समस्या के निदान के लिए सबसे पहले नींद में चलने का सही कारण पता लगाकर उसे दूर करने की कोशिश की जाती है। बिहेवियर थेरेपी द्वारा व्यक्ति को अवचेतन में ले जाकर उसे मनोचिकित्सक द्वारा वही कार्य करने के निर्देश दिए जाते हैं, जिन्हें वह प्राय: नींद की अवस्था में करता है। उपचार की प्रक्रिया थोडी लंबी ज़रूर होती है, लेकिन इससे यह समस्या दूर हो जाती है।

वैज्ञानिकों का शोध

वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि यह बीमारी अनुवांशिक है और पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढती रहती है। नींद में चलने के पीछे जिनेटिक खामी ज़िम्मेदार है। डी.एन.ए. में इतना सा दोष भी इस डिसऑर्डर के लिए काफ़ी है। हाल में की गई एक शोध के अनुसार हमारे शरीर में स्थित क्रोमोसोम 20 की वजह से ऐसा होता है। इस क्रोमोसोम के ख़राब हो जाने से नींद में चलने की आदत लग जाती है। वाशिंगटन स्कूल ऑफ मेडिसीन (वाशिंगटन यूनिवर्सिटी) की डॉ. क्रिस्टीना जर्नेट और उनकी टीम ने एक ही परिवार के 22 सदस्यों का परीक्षण कर ये नतीजे प्राप्त किए। इस परिवार के 9 सदस्य नींद में चलने की बीमारी से ग्रसित हैं। डॉ. गर्नट के अनुसार इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति से यह क्रोमोसोम खामी उसकी संतान तक जाती है। ऐसा होने की सम्भावना लगभग 50% तक होती है।

डॉ. क्रिस्टीना जर्नेट का मानना है कि इससे इस बीमारी का इलाज ढूंढने में मदद मिलेगी। यह डिसऑर्डर 10 में से एक बच्चे को कभी ना कभी प्रभावित करता है और 50 वयस्कों में से एक को। इस स्थिति को साम्नैम्ब्यलिजम भी कहा जाता है। जर्नेट के मुताबिक़ इसके लिए क्रोमोसोम 20 ज़िम्मेदार है। यह एक जीन है, जो कि विशेष तौर से एक परिवार में मिला, लेकिन यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि इस बीमारी से पीड़ित हर परिवार में यही जीन ज़िम्मेदार होगा।


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