अल्पबुद्धिता

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अल्पबुद्धिता अल्पबुद्धिता संबंधी कानून ने यह परिभाषा दी है कि अल्पबुद्धिता मस्तिष्क का वह अवरुद्ध अथव अपूर्ण विकास है जो 18 वर्ष की आयु के पूर्व पाया जाए, चाहे वह जन्मजात कारणों से उत्पन्न हो चाहे रोग अथवा आघात (चोट) से, परंतु वास्तविकता यह है कि अल्पबुद्धिता साधारण से कम मानसिक विकास और जन्म से ही अज्ञात कारणों द्वारा उत्पन्न सीमित बुद्धि का फल है। अन्य सब प्रकार की अल्पबुद्धिता को गौण मानसिक न्यूनता कहना चाहिए। बिनेट परीक्षण में व्यक्ति की योग्यता देखी जाती है और अनुमान किया जाता है कि उतनी योग्यता कितने वर्ष के बच्चे में होती है। इसको उस व्यक्ति की मानसिक आयु कहते हैं। उदाहरणत:, यदि शरीर के अंगों के स्वस्थ रहने पर भी कोई बालक अल्पबुद्धिता के कारण अपने हाथ से स्वच्छता से नहीं खा सकता, तो उसकी मानसिक आयु चार वर्ष मानी जा सकती है। यदि उस व्यक्ति की साधारण आयु 16 वर्ष है तो उसका बुद्धि गुणांक (इनटेलिजेंस कोशेंट, स्टैनफ़ोर्ड-बेनेट) 4/16´100, अर्थात्‌ 25, माना जाएगा। इस गुणांक के आधार पर अल्पबुद्धिता को तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है। यदि यह गुणांक 20 से कम है तो व्यक्ति को मूढ़ (अंग्रेजी में इडियट) कहा जाता है; 20 और 50 के बीचवाले व्यक्ति को न्यूनबुद्धि (इंबेसाइल) कहा जाता है और 50 से 70 के बीच दुर्बलबुद्धि (फ़ीबुल माइंडेड), परंतु यह वर्गीकरण अनियमित है, क्योंकि अल्पबुद्धिता अटूट रीति से उत्तरोत्तर बढ़ती है। सामान्य बुद्धि, दुर्बल बुद्धि, इतनी मूढ़ता कि डाक्टर उसका प्रमाणपत्र दे सके और उससे भी अधिक अल्पबुद्धिता के बीच भेद व्यक्ति के सामाजिक आचरण पर निर्भर है; कोई नहीं कह सकता कि मूर्खता का कहाँ अंत होता है और मूढ़ता का कहाँ आरंभ। जिनका बुद्धिता गुणांक 70 से 75 के बीच पड़ता है उन्हें लोग मंदबुद्धि कह देते हैं, परंतु मंदबुद्धिता भी उत्तरोत्तर कम होकर सामान्यबुद्धिता में मिल जाती है। ऐसे भी उदाहरण मिलते हैं जिनमें केवल प्रयासशक्ति और आवेगशक्ति (कोनेटिव और इमोशनल फंक्शंस) के संबंध में बुद्धि कम रहती है।

भारत में अल्पबुद्धिता संबंधी आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। यूरोप में सारी जनसंख्या का लगभग दो प्रतिशत अल्पबुद्धि पाया जाता है, परंतु यदि मंदबुद्धि और पिछड़ी बुद्धिवालों को भी सम्मिलित कर लिया जाए तो अल्पबुद्धियों की संख्या कम से कम छह प्रतिशत होगी। सौभाग्य की बात है कि मूढ़ और न्यून बुद्धिवाले कम होते हैं (ह 1/2 प्रतिशत से भी कम)। इनका अनुपात यों रहता है :मूढ़,1 :न्यूनबुद्धि 4 :दुर्बलबुद्धि, 20।

अल्पबुद्धिता के कारणों का पता नहीं है। आनुवंशिकता (हेरेडिटी) तथा गर्भावस्था अथवा जन्म के समय अथवा पूर्वशैशवकाल में रोग अथवा चोट संभव कारण समझे जाते हैं।

अल्पबुद्धिता जितनी ही अधिक रहती है उतना ही कम उसमें आनुवंशिकता का प्रभाव रहता है, केवल कुछ विशेष प्रकार की अल्पबुद्धिता, जो कभी-कभी ही देखने में आती है और जिसमें दृष्टि भी हीन हो जाती है, खानदानी होती है। संतान में पहुँच जाने की संभावना, मूढ़ता अथवा न्यूनबुद्धिता की अपेक्षा, दुर्बलबुद्धिता में अधिक रहती है। गर्भावस्था में माता को जर्मन मीज़ल्स नीरमयी छोटी माता (चिकन पॉक्स), वायरस के कारण मस्तिष्कार्ति (वायरस एनसेफ़ैलाइटिज़) इत्यादि होना और माता-पिता के रुधिरों में परस्पर विषमता (इनकॉम्पैटिबिलिटी), माता-पिता में उपदंश (सिफ़लिस) और जन्म के समय चोट अथवा अन्य क्षति महत्वपूर्ण कारण समझे जाते हैं। जन्म के समय की क्षतियों में बच्चे में रक्त की कमी से विवर्णता (पैलर), जमुआ (तीव्र श्वासरोध, इतना गला घुट जाना कि शरीर नीला पड़ जाए, ब्लू अस्फ़िक्सिया), दुग्ध पीने की शक्ति न रहना अथवा जन्म के बाद आक्षेप (छटपटाने के साथ बेहोशी का दौरा) हैं।

बाल्यकाल के आरंभ में मस्तिष्क में पानी बढ़ जाने (जलशीर्ष, हाइड्रोसेफ़लस) और मस्तिष्कार्ति (मस्तिष्क का प्रदाह, एनसेफ़ैलाइटिज) से मस्तिष्क बहुत कुछ⌠ खराब हो जाता है और इस प्रकार गौण अल्पबुद्धिता उत्पन्न होती है। खोपड़ी की हड्डी में कुछ प्रकार की त्रुटियों से भी, जिनके कारण खोपड़ी बढ़ने नहीं पाती, मानसिक त्रुटियां उत्पन्न होती हैं। ये रोग मस्तिष्क को वास्तविक भौतिक क्षति पहुँचाते हैं और इस क्षति के कारण विविध अंगों में भी विकृति उत्पन्न हो सकती है।

अल्पबुद्धि बच्चों में विकास के साधारण पद, जैसे बैठना, खड़ा होना, चलना, बोलना, स्वच्छता (विशेषकर मूत्र को वश में रखना), देर से विकसित होते हैं। एक वर्ष की आयु के पहले इन सब त्रुटियों का पता पाना कठिन होता है, परंतु चतुर माताएँ, विशेषकर वे जो इसके पहले स्वस्थ बच्चे पाल चुकी हैं, कुछ त्रुटियाँ शीघ्र भाँप लेती हैं, जैसे दूध पीने में विभिन्नता, न रोना और बच्चे का माता के प्रति न्यून आकर्षण, बच्चे का बहुत शांत और चुप रहना इत्यादि।

साधारणत:, मूढ़ सामान्य भौतिक विपत्तियों से, जैसे आग से या सड़क पर गाड़ी से, अपने को नहीं बचा सकता। मूढ़ों को अपने हाथ खाना या अपने को स्वच्छ रखना नहीं सिखाया जा सकता। उनमें से कुछ अपने साथियों को पहचान सकते हैं और अपनी सरल आवश्यकताएँ बता सकते हैं; वस्तुत: वे पशुओं से भी कम बुद्धिवाले होते हैं। जो कुछ वे पाते हैं उसे मुंह में डाल लेते हैं, जैसे मिट्टी, घास, कपड़ा, चमड़ा; कुछ मूढ़ अपना सिर हिलाते रहते हैं या झूमते रहते हैं।

न्यून बुद्धिवालों की भी देखभाल दूसरों को करनी पड़ती है और उनको खिलाना पड़ता है। वे जीविकोपार्जन नहीं कर सकते। सरलतम बातों को छोड़कर अन्य बातें स्मरण रखने या गुण ढंग सीखने में वे असमर्थ होते हैं। परंतु यह संभव है कि वे स्वयंचालित यंत्र की तरह, बिना समझे, सिखाया गया कार्य करते रहें। कभी-कभी वे कुछ दिनांक या घटनाएँ भी स्मरण रख सकते हैं, परंतु जो कुछ भी वे किसी न किसी प्रकार सीख लेते हैं उसका वे यथोचित उपयोग नहीं कर पाते। न्यूनबुद्धिवालों का व्यक्तित्व विविध होता है; कुछ दयावान और आज्ञाकारी होते हैं; दूसरे क्रूर, धोखेबाज और कुनही (बदला लेनेवाले)। इनसे भी अधिक अल्पबुद्धितावाले बहुधा जिद्दी, शीघ्र धोखा खानेवाले और खुशामदपसंद होते हैं। वे शीघ्र ही समाजद्रोही मार्गों में उतर पड़ते हैं; जैसे वेश्यावृत्ति, चोरी, डकैती और भारी अपराध। वे बिना अपराध की महत्ता को समझे हत्या तक कर सकते हैं।

दुर्बल बुद्धिवाले, जिन्हें अंग्रेजी में मोरन भी कहते हैं, विशेष शिक्षा से इतना सीख सकते हैं कि यंत्रवत्‌ श्रम द्वारा वे अपना जीविकोपार्जन कर सकें। ऐसे व्यक्तियों को जीविकोपार्जन के लिए अवश्य उत्साहित करना चाहिए। खेती, बर्तन आदि मांजने की नौकरी और मजदूरी आदि का काम वे कर सकते हैं। प्रयोगशाला में कांच के बर्तन धोना और मेज साफ करना भी कुछ ऐसे व्यक्ति संभाल लेते हैं।

पाठशाला जाने की आयु के पहले, दुर्बल बुद्धिवाले बच्चों में अन्य बच्चों की तरह जिज्ञासा नहीं होती। अपने मन से काम करने की शक्ति भी उनमें नहीं होती और न उनमें खेल कूद आदि के प्रति रुचि होती है; वे बड़े शाँत और निष्क्रिय रहते हैं। उनकी स्मरणशक्ति पर्याप्त अच्छी हो सकती है। बहुधा वे देर में बोलना आरंभ करते हैं; बोली साफ नहीं होती और व्यंजना भी अच्छी नहीं होती। ऐसे बच्चों को विशेष पाठशालाओं में शिक्षा दी जाए तो अच्छा है। उनकी कामप्रवृत्ति (सेक्सइंस्टिंक्ट) न्यूनविकसित होती है, परंतु स्त्रियों में दुर्बलबुद्धिवालियों का वेश्यावृत्ति अपनाना असाधारण नहीं है। दुर्बलबुद्धिवाली माता निर्दय होती है, बच्चों की ठीक देखभाल नहीं करती और गृहस्थी भी ठीक से नहीं चलाती, जिससे गृहस्थ जीवन दु:खमय हो जाता है। बहुधा दुर्बल बुद्धिवाले लड़के अपना अलग समूह बनाकर चोरी करते हैं या आवेशयुक्त अपराध करते हैं, उदाहरणत: यदि मालिक के प्रति क्रोध है तो उसके घर में आग लगा सकते हैं। पैसे के प्रलोभन से हत्या इत्यादि अपराधों के लिए उन्हें सुगमता से राजी किया जा सकता है, परंतु वे योजना नहीं बना पाते और बहुधा पकड़ लिए जाते हैं, क्योंकि वे बचने की चेष्टा ही नहीं करते। ये लोग बिना यह समझे कि परिणाम क्या होगा, अपराध कर बैठते हैं।

ऐसे भी लोग हैं जो पाठशाला में मंदबुद्धि समझे जाते थे, परंतु पीछे अपने ही प्रयत्न से ऊँची स्थितियों में पहुँचे हैं।

कुछ विशेष प्रकार की अल्पबुद्धिताएँ भी हैं जिनमें मानसिक त्रुटियों के साथ शारीरिक विकृति भी रहती है, जैसे मौद्गल्याभ मूढ़ता (मॉआंगोलॉयड इडिओसी, जिसमें आर्यवंश के लोगों का चेहरा विकृत होकर मंगोल लोगों की तरह हो जाता है), क्रेटिनिज्म (एक रोग जिसमें बचपन से ही शरीरिक वृद्धि रुक जाती है और विकृति, घेघा, थायरायड-हीनता, खुरखुरी कड़ी त्वचा और मूढ़ता आदि लक्षण उत्पन्न हो जाते हैैं; यह बहुधा थायरायड रस के कारण उत्पन्न हो जाते है), कदाकारता (गॉरगॉयलिज्म) इत्यादि।

अल्पबुद्धिवाले बच्चों की देखभाल साधारण पाठशालाएँ नहीं कर सकतीं और उनमें ऐसे बच्चों को भरती करना और उनको किसी न किसी प्रकार पास कराने की चेष्टा करना भूल है। संयुक्त राज्य (अमरीका) आदि कतिपय देशों में अल्पबुद्धि और दुर्बलबुद्धि बच्चों की पृथक्‌ बस्तियां होती हैं जहाँ उनकी विशेष देखभाल की जाती है और इस उद्देश्य से विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है कि जहाँ तक हो सके, उनका विकास कर दिया जाए। इन अभागे बच्चों की सामाजिक समस्याओं का और परिवार के लोगों को छुटकारा देने का यही सबसे अच्छा हल है।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 263-64 |

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