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'''चन्देल वंश''' [[गोंड]] जनजातीय मूल का राजपूत वंश था, जिसने उत्तर-मध्य [[भारत]] के [[बुंदेलखंड]] पर कुछ शताब्दियों तक शासन किया। प्रतिहारों के पतन के साथ ही चंदेल नौवीं शताब्दी में सत्ता में आए। उनका साम्राज्य उत्तर में [[यमुना नदी]] (जमुना) से लेकर सागर ([[मध्य प्रदेश]], मध्य भारत) तक और [[धसान नदी]] से विंध्य पहाड़ियों तक फैला हुआ था। सुप्रसिद्ध कलिंजर का क़िला, खजुराहो, महोबा और अजयगढ़ उनके प्रमुख गढ़ थे। चंदेल राजा नंद या गंड ने लाहौर में तुर्कों के ख़िलाफ़ अभियान में एक अन्य राजपूत सरदार [[जयपाल]] की मदद की, लेकिन ग़ज़ना (ग़ज़नी) के महमूद ने उन्हें पराजित कर दिया था। 1023 में चंदेलों का स्थान बुंदेलों ने ले लिया खजुराहो के मंदिर निर्माण के लिए ही चंदेल संभवत: सबसे अधिक विख्यात है।
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'''चन्देल वंश''' [[गोंड]] जनजातीय मूल का राजपूत वंश था, जिसने 8वीं से 12वीं शताब्दी तक स्वतंत्र रूप से राज किया। [[गुर्जर प्रतिहार वंश|प्रतिहारों]] के पतन के साथ ही चंदेल नौवीं शताब्दी में सत्ता में आए। उनका साम्राज्य उत्तर में [[यमुना नदी]] से लेकर सागर ([[मध्य प्रदेश]], मध्य भारत) तक और [[धसान नदी]] से विंध्य पहाड़ियों तक फैला हुआ था। सुप्रसिद्ध [[कालिंजर|कालिंजर का क़िला]], [[खजुराहो]], [[महोबा]] और [[अजयगढ़]] उनके प्रमुख गढ़ थे। चंदेल राजा नंद या गंड ने [[लाहौर]] में [[तुर्क|तुर्कों]] के ख़िलाफ़ अभियान में एक अन्य [[राजपूत]] सरदार [[जयपाल]] की मदद की, लेकिन 'ग़ज़ना' ([[ग़ज़नी]]) के [[महमूद ग़ज़नवी|महमूद]] ने उन्हें पराजित कर दिया था। 1023 ई. में चंदेलों का स्थान [[बुंदेला|बुंदेलों]] ने ले लिया। खजुराहो के मंदिर निर्माण के लिए ही चंदेल संभवत: सबसे अधिक विख्यात हैं।
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==वंश स्थापना तथा शासक==
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[[जेजाकभुक्ति]] के प्रारम्भिक शासक [[गुर्जर प्रतिहार वंश|गुर्जर प्रतिहार]] शासकों के सामंत थे। इन्होनें [[खजुराहो]] को अपनी राजधानी बनाया। 'नन्नुक' इस वंश का पहला राजा था। उसके अतिरिक्त अन्य सामंत थे- वाक्पति, जयशक्ति (सम्भवतः इसके नाम पर ही बुन्देलखण्ड का नाम जेजाक भुक्ति पड़ा) विजय शक्ति, राहिल एवं हर्ष।
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#नन्नुक (831 - 845 ई.) (संस्थापक)
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[[जेजाकभुक्ति]] के प्रारम्भिक शासक [[गुर्जर प्रतिहार वंश|गुर्जर प्रतिहार]] शासकों के सामंत थे। इन्होनें [[खजुराहो]] को अपनी राजधानी बनाया। '''नन्नुक''' इस वंश का पहला राजा था। उसके अतिरिक्त अन्य सामंत थे- वाक्पति, जयशक्ति (सम्भवतः इसके नाम पर ही बुन्देलखण्ड का नाम जेजाक भुक्ति पड़ा) विजय शक्ति, राहिल एवं हर्ष।
 
*[[यशोवर्मन]]
 
*[[धंगदेव]]
 
*[[गंडदेव]]
 
*[[विद्याधर]]
 
 
विद्याधर के बाद अन्य '''चन्देल शासक''' निम्नलिखित थे। -
 
*विजयपाल (1030 से 1050 ई.),
 
*देववर्मन (1050 से 1060ई.),
 
*[[कीर्तिवर्मन]] (1060 से 1100ई.),
 
*सल्लक्षण वर्मन (1100 से 1115 ई.),
 
*जयवर्मन,
 
*पृथ्वी वर्मन आदि।
 
*मदन वर्मन (1129 से 1163 ई.) चंदेल वंश का अन्य पराक्रमी राजा हुआ।
 
*परर्माददेव पर 1173 ई. में चालुक्यों से [[भिलसा]] को छीन लिया ।
 
 
*1203 ई. में [[कुतुबुद्दीन ऐबक]] ने परार्माददेव को पराजित कर [[कालिंजर]] पर अधिकार कर लिया और अंततः 1305 ई. में चन्देल राज्य [[दिल्ली]] में मिल गया।
 
*1203 ई. में [[कुतुबुद्दीन ऐबक]] ने परार्माददेव को पराजित कर [[कालिंजर]] पर अधिकार कर लिया और अंततः 1305 ई. में चन्देल राज्य [[दिल्ली]] में मिल गया।
  

09:24, 6 मई 2016 का अवतरण

चन्देल वंश गोंड जनजातीय मूल का राजपूत वंश था, जिसने 8वीं से 12वीं शताब्दी तक स्वतंत्र रूप से राज किया। प्रतिहारों के पतन के साथ ही चंदेल नौवीं शताब्दी में सत्ता में आए। उनका साम्राज्य उत्तर में यमुना नदी से लेकर सागर (मध्य प्रदेश, मध्य भारत) तक और धसान नदी से विंध्य पहाड़ियों तक फैला हुआ था। सुप्रसिद्ध कालिंजर का क़िला, खजुराहो, महोबा और अजयगढ़ उनके प्रमुख गढ़ थे। चंदेल राजा नंद या गंड ने लाहौर में तुर्कों के ख़िलाफ़ अभियान में एक अन्य राजपूत सरदार जयपाल की मदद की, लेकिन 'ग़ज़ना' (ग़ज़नी) के महमूद ने उन्हें पराजित कर दिया था। 1023 ई. में चंदेलों का स्थान बुंदेलों ने ले लिया। खजुराहो के मंदिर निर्माण के लिए ही चंदेल संभवत: सबसे अधिक विख्यात हैं।

वंश स्थापना तथा शासक

जेजाकभुक्ति के प्रारम्भिक शासक गुर्जर प्रतिहार शासकों के सामंत थे। इन्होनें खजुराहो को अपनी राजधानी बनाया। 'नन्नुक' इस वंश का पहला राजा था। उसके अतिरिक्त अन्य सामंत थे- वाक्पति, जयशक्ति (सम्भवतः इसके नाम पर ही बुन्देलखण्ड का नाम जेजाक भुक्ति पड़ा) विजय शक्ति, राहिल एवं हर्ष।

  1. नन्नुक (831 - 845 ई.) (संस्थापक)
  2. वाक्पति (845 - 870 ई.)
  3. जयशक्ति चन्देल और विजयशक्ति चन्देल (870 - 900 ई.)
  4. राहिल (900 - ?)
  5. हर्ष चन्देल (900 - 925 ई.)
  6. यशोवर्मन (925 - 950 ई.)
  7. धंगदेव (950 - 1003 ई.)
  8. गंडदेव (1003 - 1017 ई.)
  9. विद्याधर (1017 - 1029 ई.)
  10. विजयपाल (1030 - 1045 ई.)
  11. देववर्मन (1060 - ?)
  12. कीरतवर्मन
  13. सल्लक्षनवर्मन (1100 - 1115 ई.)
  14. जयवर्मन (1115 - ?)
  15. पृथ्वीवर्मन (1120 - 1129 ई.)
  16. मदनवर्मन (1129 - 1162 ई.)
  17. यशोवर्मन द्वितीय (1165 - 1166 ई.)
  18. परमार्दिदेव अथवा परमल (1166 - 1203 ई.)


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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