दिनेश(चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:23, 20 जून 2013 का अवतरण ('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Faiz-Ahmed-Faiz.jp...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अब कहाँ रस्म घर लुटाने की
बरकतें थीं शराबख़ाने की
कौन है जिससे गुफ़्तगू कीजे
जान देने की दिल लगाने की
बात छेड़ी तो उठ गई महफ़िल
उनसे जो बात थी बताने की
साज़ उठाया तो थम गया ग़म-ए-दिल
रह गई आरज़ू सुनाने की
चाँद फिर आज भी नहीं निकला
कितनी हसरत थी उनके आने की