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*राबर्ट क्लाइव के सुझाव पर मीर जाफ़र के साथ होने वाली संधि के दो प्रारूप तैयार किये गये। एक में उक्त कमीशन दिये जाने की बात थी और दूसरे में यह बात नहीं थी। | *राबर्ट क्लाइव के सुझाव पर मीर जाफ़र के साथ होने वाली संधि के दो प्रारूप तैयार किये गये। एक में उक्त कमीशन दिये जाने की बात थी और दूसरे में यह बात नहीं थी। | ||
*जाली संधि पत्र पर क्लाइब के तथा एडमिरल वाटसन को छोड़कर कलकत्ता कौंसिल इव के तथा सदस्यों के हस्ताक्षर थे। | *जाली संधि पत्र पर क्लाइब के तथा एडमिरल वाटसन को छोड़कर कलकत्ता कौंसिल इव के तथा सदस्यों के हस्ताक्षर थे। | ||
*क्लाइव ने उस जाली संधि पत्र पर वाटसन के भी जाली हस्ताक्षर कर लिये। किन्तु अमीचन्द को इस जाल बट्टे की जानकारी [[प्लासी का युद्ध|प्लासी के युद्ध]] के उपरान्त हुई और कहा जाता है कि अन्तत: वह निराश और पागल होकर मर गया। | *क्लाइव ने उस जाली संधि पत्र पर वाटसन के भी जाली हस्ताक्षर कर लिये। किन्तु अमीचन्द को इस जाल बट्टे की जानकारी [[प्लासी का युद्ध|प्लासी के युद्ध]] के उपरान्त हुई और कहा जाता है कि अन्तत: वह निराश और पागल होकर मर गया। | ||
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11:16, 20 अप्रैल 2011 का अवतरण
- अमीचन्द एक धनी किन्तु धूर्त सेठ था, जो 18वीं शताब्दी के मध्य में कलकत्ता में रहता था।
- उसने नवाब सिराजुद्दौला को अपदस्थ कर मीर ज़ाफ़र को बंगाल का नवाब बनाने के लिए कलकत्ता में अंग्रेज़ों और मुर्शिदाबाद में नवाब के विरोधियों के बीच गुप्त वार्ताएँ चलाईं। जब यह गुप्त वार्ताएँ काफ़ी आगे बढ़ चुकीं और नवाब सिराजुद्दौला के विरुद्ध षड़यंत्र में अंग्रेज़ों की पूर्ण भागीदारी स्पष्ट हो चुकी, तब अमीचन्द ने मुर्शिदाबाद में नवाब के ख़जाने की लूट से प्राप्त होने वाले धन से लम्बे कमीशन की माँग की तथा यह धमकी दी कि यदि उसे वांछित धनराशि नहीं दी गई तो वह नवाब को सारे षड़यंत्र की सूचना दे देगा।
- राबर्ट क्लाइव के सुझाव पर मीर जाफ़र के साथ होने वाली संधि के दो प्रारूप तैयार किये गये। एक में उक्त कमीशन दिये जाने की बात थी और दूसरे में यह बात नहीं थी।
- जाली संधि पत्र पर क्लाइब के तथा एडमिरल वाटसन को छोड़कर कलकत्ता कौंसिल इव के तथा सदस्यों के हस्ताक्षर थे।
- क्लाइव ने उस जाली संधि पत्र पर वाटसन के भी जाली हस्ताक्षर कर लिये। किन्तु अमीचन्द को इस जाल बट्टे की जानकारी प्लासी के युद्ध के उपरान्त हुई और कहा जाता है कि अन्तत: वह निराश और पागल होकर मर गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-14