"हरषि चले सुग्रीव तब" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 36: पंक्ति 36:
 
</poem>
 
</poem>
 
{{poemclose}}
 
{{poemclose}}
;भावार्थ
+
;दोहा
 
तब [[अंगद]] आदि [[बंदर|वानरों]] को साथ लेकर और [[राम|श्रीराम जी]] के छोटे भाई [[लक्ष्मण|लक्ष्मण जी]] को आगे करके (अर्थात्‌ उनके पीछे-पीछे) [[सुग्रीव]] हर्षित होकर चले और जहाँ रघुनाथजी थे वहाँ आए॥20॥
 
तब [[अंगद]] आदि [[बंदर|वानरों]] को साथ लेकर और [[राम|श्रीराम जी]] के छोटे भाई [[लक्ष्मण|लक्ष्मण जी]] को आगे करके (अर्थात्‌ उनके पीछे-पीछे) [[सुग्रीव]] हर्षित होकर चले और जहाँ रघुनाथजी थे वहाँ आए॥20॥
 
{{लेख क्रम4| पिछला=पवन तनय सब कथा सुनाई |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=नाइ चरन सिरु कह कर जोरी}}
 
{{लेख क्रम4| पिछला=पवन तनय सब कथा सुनाई |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=नाइ चरन सिरु कह कर जोरी}}
  
'''चौपाई'''- मात्रिक सम [[छन्द]] का भेद है। [[प्राकृत]] तथा [[अपभ्रंश]] के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित [[हिन्दी]] का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। [[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास]] ने [[रामचरितमानस]] में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
+
'''दोहा'''- मात्रिक अर्द्धसम [[छंद]] है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
 +
 
  
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}

10:26, 25 मई 2016 का अवतरण

हरषि चले सुग्रीव तब
रामचरितमानस
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड किष्किंधा काण्ड
चौपाई

हरषि चले सुग्रीव तब अंगदादि कपि साथ।
रामानुज आगें करि आए जहँ रघुनाथ॥20॥

दोहा

तब अंगद आदि वानरों को साथ लेकर और श्रीराम जी के छोटे भाई लक्ष्मण जी को आगे करके (अर्थात्‌ उनके पीछे-पीछे) सुग्रीव हर्षित होकर चले और जहाँ रघुनाथजी थे वहाँ आए॥20॥


पीछे जाएँ
हरषि चले सुग्रीव तब
आगे जाएँ

दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख