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तत्कालीन समय में यह वह दौर, था जब कलाकार सिर्फ एक ‘फॉर्म’ नहीं सीखते थे। मृणालिनी साराभाई ने भी नृत्य की अलग-अलग शैलियों की बारीकियां सीखीं। उन्होंने अमूबी सिंह से मणिपुरी नृत्य सीखा। कुंजु कुरूप से कथकली सीखा। मीनाक्षी सुदंरम पिल्लै और मुथुकुमार पिल्लै से भरतनाट्यम सीखा। उनके हर एक गुरू का अपनी अपनी कला में जबरदस्त योगदान था। इसी दौरान उन्होंने विश्वविख्यात [[सितार]] वादक [[पंडित रविशंकर]] के भाई [[उदय शंकर|पंडित उदय शंकर]] के साथ भी काम किया। पंडित उदय शंकर का भारतीय कला को पूरी दुनिया में अलग पहचान दिलाने का श्रेय जाता है। उन्होंने आधुनिक नृत्य को लोकप्रियता और कामयाबी के अलग मुकाम पर पहुंचाया। इस बीच मृणालिनी साराभाई कुछ दिनों के लिए [[अमेरिका]] भी गईं और वहां जाकर ड्रामाटिक आर्ट्स की बारीकियां सीखीं। इसके बाद मृणालिनी साराभाई ने देश दुनिया में भारतीय नृत्य परंपरा का विकास किया।
 
तत्कालीन समय में यह वह दौर, था जब कलाकार सिर्फ एक ‘फॉर्म’ नहीं सीखते थे। मृणालिनी साराभाई ने भी नृत्य की अलग-अलग शैलियों की बारीकियां सीखीं। उन्होंने अमूबी सिंह से मणिपुरी नृत्य सीखा। कुंजु कुरूप से कथकली सीखा। मीनाक्षी सुदंरम पिल्लै और मुथुकुमार पिल्लै से भरतनाट्यम सीखा। उनके हर एक गुरू का अपनी अपनी कला में जबरदस्त योगदान था। इसी दौरान उन्होंने विश्वविख्यात [[सितार]] वादक [[पंडित रविशंकर]] के भाई [[उदय शंकर|पंडित उदय शंकर]] के साथ भी काम किया। पंडित उदय शंकर का भारतीय कला को पूरी दुनिया में अलग पहचान दिलाने का श्रेय जाता है। उन्होंने आधुनिक नृत्य को लोकप्रियता और कामयाबी के अलग मुकाम पर पहुंचाया। इस बीच मृणालिनी साराभाई कुछ दिनों के लिए [[अमेरिका]] भी गईं और वहां जाकर ड्रामाटिक आर्ट्स की बारीकियां सीखीं। इसके बाद मृणालिनी साराभाई ने देश दुनिया में भारतीय नृत्य परंपरा का विकास किया।
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मृणालिनी साराभाई विषय सूची
मृणालिनी साराभाई का प्रशिक्षण
मृणालिनी साराभाई
पूरा नाम मृणालिनी साराभाई
जन्म 11 मई, 1918
जन्म भूमि केरल
मृत्यु 21 जनवरी, 2016
मृत्यु स्थान अहमदाबाद, गुजरात
अभिभावक पिता- डॉ. स्वामीनाथन, माता- अम्मू स्वामीनाथन
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र शास्त्रीय नृत्य
पुरस्कार-उपाधि 'पद्मभूषण', 'पद्मश्री', 'कालिदास सम्मान' (1996-97)।
प्रसिद्धि शास्त्रीय नृत्यांगना
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख विक्रम साराभाई, लक्ष्मी सहगल
अन्य जानकारी मृणालिनी की बड़ी बहन लक्ष्मी सहगल स्वतंत्रता सेनानी थीं। वे प्रसिद्ध क्रांतिकारी सुभाषचंद्र बोस की आज़ाद हिंद फ़ौज की महिला सेना झांसी रेजीमेंट की कमांडर इन चीफ़ थीं।

तत्कालीन समय में यह वह दौर, था जब कलाकार सिर्फ एक ‘फॉर्म’ नहीं सीखते थे। मृणालिनी साराभाई ने भी नृत्य की अलग-अलग शैलियों की बारीकियां सीखीं। उन्होंने अमूबी सिंह से मणिपुरी नृत्य सीखा। कुंजु कुरूप से कथकली सीखा। मीनाक्षी सुदंरम पिल्लै और मुथुकुमार पिल्लै से भरतनाट्यम सीखा। उनके हर एक गुरू का अपनी अपनी कला में जबरदस्त योगदान था। इसी दौरान उन्होंने विश्वविख्यात सितार वादक पंडित रविशंकर के भाई पंडित उदय शंकर के साथ भी काम किया। पंडित उदय शंकर का भारतीय कला को पूरी दुनिया में अलग पहचान दिलाने का श्रेय जाता है। उन्होंने आधुनिक नृत्य को लोकप्रियता और कामयाबी के अलग मुकाम पर पहुंचाया। इस बीच मृणालिनी साराभाई कुछ दिनों के लिए अमेरिका भी गईं और वहां जाकर ड्रामाटिक आर्ट्स की बारीकियां सीखीं। इसके बाद मृणालिनी साराभाई ने देश दुनिया में भारतीय नृत्य परंपरा का विकास किया।

मृणालिनी साराभाई की संस्था दर्पण से जुड़ा एक किस्सा बहुत कम लोगों को ही पता होगा। ये उस समय की बात है, जब 'दर्पण' में अच्छे-खासे लोग नृत्य सीखने आते थे। नृत्यु सीखने के बाद जब पहली बार उन्हें विधिवत नृत्य करना होता था तो उसे 'आरंगेत्रम' कहा जाता है। आरंगेत्रम में होने ये लगा था कि जिस प्रशिक्षु के माता-पिता पैसे रुपए से सम्पन्न होते थे, वो उसे बड़े जलसे की तरह मनाते थे। ऐसे में उन प्रशिक्षुओं पर एक किस्म का दबाव होता था, जो आर्थिक तौर पर ज्यादा सम्पन्न नहीं थे। इस बात की जानकारी जब मृणालिनी साराभाई को हुई तो उन्होंने आरंगेत्रम का नाम बदलकर उसे 'आराधना' कर दिया। इसके बाद साड़ियां संस्थान की तरफ से ही दी जाती थीं। एक साथ कार्ड छप जाया करते थे। फिजूलखर्ची पर रोक लगा दी गई। मृणालिनी साराभाई ने आराधना को समर्पण और आस्था से जोड़ दिया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पद्मभूषण सुप्रसिद्ध नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई का निधन (हिन्दी) नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई का निधन। अभिगमन तिथि: 21 जनवरी, 2016।

संबंधित लेख

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