अकुल
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पाणिनिकालीन भारतवर्ष में, जो परिवार वेदाध्ययन में प्रमाद करते अथवा किसी भी रूप में सदाचार का परित्याग करते थे, वह अकुल या हीनकुल माने जाते थे। ऐसे कुल में उत्पन्न व्यक्ति के लिए पाणिनि ने 'दुष्कुलीन' या 'दौष्यकुलेय' शब्दों के प्रयोग का उल्लेख किया है।[1][2]
इन्हें भी देखें: पाणिनि, अष्टाध्यायी एवं भारत का इतिहास
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