प्रयोग:दीपिका2
दीपिका2
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पूरा नाम | गोकुलनाथ गोस्वामी |
अन्य नाम | भढूची वैष्णव |
जन्म | संवत 1608 |
मृत्यु | संवत 1697 |
अभिभावक | पिता- गोस्वामी विट्ठलनाथ |
मुख्य रचनाएँ | उपदेशों के दो संकलन प्रसिद्ध हैं-चौरासी वैष्णवन की वार्ता और दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता। |
प्रसिद्धि | वल्लभ सम्प्रदाय की आचार्य परम्परा के प्रसिद्ध प्रचारक थे। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | गोकुलनाथ जी के अनुयायी 'भढूची वैष्णव' कहलाते थे। |
गोकुलनाथ गोस्वामी (जन्म- विक्रम संवत 1608; मृत्यु- संवत 1697) वल्लभ सम्प्रदाय की आचार्य परम्परा के प्रसिद्ध प्रचारक थे। इन्होंने अपनी सरस व्याख्यान-शैली से भक्तों को मुग्ध बना रखा था। ये अपने विद्वत्तापूर्ण प्रवचनों के अवसर पर भक्तों के चरित्रों का भी बखान किया करते थे, जिससे श्रोता उनके जीवन में अनुसरण करने को उत्साहित हों।
परिचय
गोकुलनाथ गोस्वामी का जन्म विक्रम संवत 1608 में हुआ था। ये गोसाई विट्ठलनाथ जी के चतुर्थ पुत्र थे। विट्ठलनाथ जी के सातों पुत्रों के सात गृह और पीठ हैं। 6 भाइयों के साम्प्रदायिक विचारों तथा सिद्धांतों में विशेष विभिन्नता नहीं है, परंतु इनके गृह और पीठ के साम्प्रदायिक विचार अन्य पीठों की अपेक्षा तनिक भिन्न हैं। इनके अनुयायी भडूची वैष्णव कहलाते हैं।
कथा
इनके संप्रदाय में ठाकुर जी की मूर्ति की पूजा नहीं होती, केवल गद्दी या पीठ की पूजा होती है। इनके विचार-विभिन्नता के सम्बन्ध में एक कथा प्रचलित है। कहा जाता है, जब इनका जन्म हुआ था तब गोस्वामी विट्ठलनाथ ठाकुर जी की सेवा में संलग्न थे। अतएव पुत्र-जन्म के समाचार को सुनकर उन्हें सेवा स्थगित करनी पड़ी। तब क्षुब्ध होकर उन्होंने कहा था कि 'इसके कारण सेवा से वंचित रहेंगे।' सम्प्रदाय में विश्वास है कि गोस्वामी विट्ठलनाथ के उपर्युक्त 'वचनों' का ही यह परिणाम है कि गोकुलनाथ के अनुयायी भडूची-वैष्णव गोकुलनाथ जी के पीठ को ही मानते-पूजते हैं। ये पुष्टि-सम्प्रदाय के प्रबल प्रचारक थे। इन्होंने अपनी सरस व्याख्यान-शैली से भक्तों को मुग्ध बना रखा था। ये अपने विद्वत्तापूर्ण प्रवचनों के अवसर पर भक्तों के चरित्रों का भी बखान किया करते थे, जिससे श्रोता उनके जीवन में अनुसरण करने को उत्साहित हों।
रचनाएँ
गोस्वामी जी ने इन्हीं मौखिक भक्त-चरित्रों को हरिराय जी ने लेखबद्ध किया था, जो बाद में 'चौरासी' और 'दो सौ बावन बैष्णवों' की वार्ताओं के नाम से प्रसिद्ध हुए। 'वार्ताओं' को गोकुलनाथकृत कहने का आशय इतना ही है कि ये उनके श्रीमुख से नि:सृत हुई थीं।
धर्म-प्रचार
यद्यपि गोस्वामी जी द्वारा रचित कई ग्रंथों और वचनामृत प्रसिद्ध हैं पर ये वार्ताकार के रूप में ही विशेष रूप से स्मरण किये जाते हैं। हिन्दी-साहित्य के इतिहास-ग्रंथों में इनके कृतित्व पर प्रकाश नहीं डाला गया। डा. रामकुमार वर्मा ने अपने 'हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास' में लिखा है कि "इनकी पुस्तकों का उद्देश्य एकमात्र धार्मिक ही है क्योंकि उनमें साहित्यिक सौन्दर्य नाममात्र को नहीं है। एक ही बात अनेक बार दुहरायी गयी है। उनमें अनेक भाषाओं के शब्द भी हैं। इसका कारण यही ज्ञात होता है कि गोकुलनाथ को अपने धर्म-प्रचार में यथेष्ट पर्यटन करना पड़ा होगा और अनेक स्थानों में जाने के कारण वहाँ के शब्द भी अज्ञात रूप से इनकी भाषा में मिल गये होंगे। इतनी बात अवश्य है कि इस चित्रण में स्वाभाविकता अधिक है। इसमें जीवन के अनेक चित्र मिलते हैं।" इन्हें यदि पुष्टि-सम्प्रदाय रूपी मन्दिर का कलश कहा जाय तो अत्युक्ति न होगी। हरिराय जी इनके लिपिकार और टीकाकार हैं।[1]
मृत्यु
गोकुलनाथ गोस्वामी का निधन संवत 1697 में हुआ था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी साहित्य कोश भाग-2 |लेखक: डॉ. धीरेन्द्र वर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 143 |
बाहरी कड़ियाँ
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गंगाप्रसाद अग्निहोत्री (जन्म- श्रावण कृष्ण 7 सन 1870 ई.,नागपुर, मध्यप्रदेश; मृत्यु 1931 ई.) हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। गंगाप्रसाद हिन्दी के प्रबल समर्थक थे और उसे ही राष्ट्रभाषा के लिए सर्वथा उपयुक्त समझते थे। इन्होंने चिपलूणकर शास्त्री की पूरी पुस्तक 'निबन्धमालादर्श' का अनुवाद किया था। गंगाप्रसाद जी ने समीक्षा-सिद्धांतों का प्रतिपादन करने वाली पद्धति का सूत्रपात करके महत्त्वपूर्ण कार्य किया है।
परिचय
गंगाप्रसाद अग्निहोत्री का जन्म श्रावण मास के कृष्ण 7 सन 1870 ई. को नागपुर, मध्यप्रदेश में हुआ था। गंगाप्रसाद हिन्दी भाषा में पाश्चात्य समीक्षा सिद्धांतों का सूत्रपात करने वालों में अग्रणी हैं। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण इनकी शिक्षा का उचित प्रबन्ध न हो सका। गंगाप्रसाद जी ज्यों-त्यों एण्ट्रेंस की परीक्षा में सम्मिलित हुए और अनुत्तीर्ण होकर रह गये। इन्होंने वैकल्पिक विषय के रूप में मराठी और संस्कृत का भी ज्ञान प्राप्त कर लिया था।
जगन्नाथ प्रसाद भानु से सम्पर्क
गंगाप्रसाद सन 1892 ई. में आप असिस्टेंट सेटिलमेंट आफिसर जगन्नाथ प्रसाद भानु के सम्पर्क में आये। उनकी कृपा से आपको दुहरा लाभ हुआ। जीविका के लिए नकलनवीसी का काम मिल गया और सहित्यिक विकास के लिए निरंतर प्रेरणा मिलती रही। सबसे पहले आपने चिपलूणकर शास्त्री के 'समालोचना' शीर्षक निबन्ध का अनुवाद मराठी से हिन्दी में किया, जो नागरी प्रचारिणी पत्रिका के पहले वर्ष (2896 ई.) में पहले अंक में प्रकाशित हुआ। आपको ख्याति मिली और उत्साहित होकर आपने चिपलूणकर शास्त्री की पूरी पुस्तक 'निबन्धमालादर्श' का अनुवाद किया। फिर तो आप बराबर लिखते रहे 'रसवारिका' सं. 1964 में वेकटेश्वर प्रेम बम्बई से मद्रित हो चुका है। 'राष्ट्रभाषा' (1899 ई,) (मराठी से हिन्दी में अनुवाद), 'प्रणयीमाधव' (मराठी से अनुवाद), 'संस्कृत कविपंचल', 'मेघदूत', 'निबन्धमालादर्श', 'डाँ. जानसन की जीवनी' (अप्रकाशित), 'नर्मदा विहार', 'संसार सुख साधन' (1917 ई.), 'किसानों की कामधेनु' आपकी प्रसिद्ध अनूदित और मौलिक कृतियाँ हैं।
आपकी भाषा तत्समप्रधान है। उसमें प्राय: उर्दू शब्दों का अभाव है। अँग्रेजी के बहुप्रचलित शब्दों को आपने ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया है। आप हिन्दी के प्रबल समर्थक थे और उसे ही राष्ट्रभाषा के लिए सर्वथा उपयुक्त समझते थे।
आपकी सबसे बड़ी देन हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में है। जिस समय हिन्दी में आलोचना के नाम पर या तो पुस्तक-परिचय लिखे जाते थे या रीतिकालीन मानदंडों के आधार पर गुण-देष विवेचना किया जाता था, उस समय पाश्चात्य समीक्षा-सिद्धांतों का प्रतिपादन करनेवाली पद्धति का सूत्रपात करके आपने महत्त्वपूर्ण कार्य किया।
जीवन के अंतिम दिनों में उन्नति करते हुए आप कोरिया रियासर के नायब दीवान हो गये थे। सन् 1931 ई. में आपकी मृत्यु हुई।