"प्रयोग:कविता सा.-2": अवतरणों में अंतर
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{विरोधी रंग कौन-से हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-164,प्रश्न-20 | {[[विरोधी रंग |विरोधी रंग]] कौन-से हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-164,प्रश्न-20 | ||
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+[[लाल रंग|लाल]]-[[हरा रंग|हरा]] | +[[लाल रंग|लाल]]-[[हरा रंग|हरा]] | ||
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-[[पीला रंग|पीला]]-[[लाल रंग|लाल]] | -[[पीला रंग|पीला]]-[[लाल रंग|लाल]] | ||
-[[नीला रंग|नीला]]-[[बैंगनी रंग|बैंगनी]] | -[[नीला रंग|नीला]]-[[बैंगनी रंग|बैंगनी]] | ||
||नीले का विरोधी अथवा पूरक रंग नारंगी होता है। प्राथमिक व द्वितीयक रंगों के मिश्रण से जो रंग बनते हैं उन्हें विरोधी रंग कहते हैं। इस प्रकार नारंगी का विरोधी आसमानी (नीला) व [[बैंगनी रंग|बैंगनी]] का विरोधी रंग पीला है। [[लाल रंग|लाल]] का विरोधी रंग हरा होता है। | ||नीले का विरोधी अथवा पूरक रंग नारंगी होता है। [[प्राथमिक रंग|प्राथमिक]] व [[द्वितीयक रंग|द्वितीयक रंगों]] के मिश्रण से जो रंग बनते हैं उन्हें विरोधी रंग कहते हैं। इस प्रकार नारंगी का विरोधी आसमानी (नीला) व [[बैंगनी रंग|बैंगनी]] का विरोधी रंग पीला है। [[लाल रंग|लाल]] का विरोधी रंग हरा होता है। | ||
{उस चित्रकार का नाम बताइए, जिन्होंने ताहिती द्वीप पर चित्र बनाए- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-122,प्रश्न-49 | {उस चित्रकार का नाम बताइए, जिन्होंने ताहिती द्वीप पर चित्र बनाए- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-122,प्रश्न-49 | ||
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-प्रकृति द्वारा किया गया अमूर्त चित्रण | -प्रकृति द्वारा किया गया अमूर्त चित्रण | ||
-अभिलेख | -अभिलेख | ||
|| | ||'पेट्रोग्लिफ़' संदेश का प्राचीनतम माध्यम 'गुफ़ाओं में उकेरे गए चित्र' हैं। | ||
{'स्नानमग्न युवतियों'के चित्रकार कौन हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-124,प्रश्न-71 | {'स्नानमग्न युवतियों' के चित्रकार कौन हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-124,प्रश्न-71 | ||
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+सेजां | +सेजां | ||
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||पॉल सेजां का जन्म 1839ई. में एजा प्रिवांस में हुआ था। बीसवीं सदी की कला पर सेजां का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा, इसलिए इन्हें 'आधुनिक कला का जन्मदाता' कहा जाता है। चित्रकार सोरा, वान गॉग एवं गॉगिन, सेजां आदि थे जिन्हें उत्तर प्रभाववादी के नाम से विश्लेषित किया गया। ये सभी कलाकार प्रभाववाद से असंतुष्ट थे। सेजां ने अपने अधिकांश विख्यात चित्र 1870 ई. से 1900 ई. के मध्य बनाए। | ||पॉल सेजां का जन्म 1839ई. में एजा प्रिवांस में हुआ था। बीसवीं सदी की कला पर सेजां का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा, इसलिए इन्हें 'आधुनिक कला का जन्मदाता' कहा जाता है। चित्रकार सोरा, वान गॉग एवं गॉगिन, सेजां आदि थे जिन्हें उत्तर प्रभाववादी के नाम से विश्लेषित किया गया। ये सभी कलाकार प्रभाववाद से असंतुष्ट थे। सेजां ने अपने अधिकांश विख्यात चित्र 1870 ई. से 1900 ई. के मध्य बनाए। | ||
{ | {1610 ई. से 1620 ई. के मध्य गोलकुंडा में कौन-सी सचित्र पोथी चित्रित की गई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-237,प्रश्न-376 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-नुजूम अल उलूम | -नुजूम अल उलूम | ||
-तारीफे हुसैन शाही | -तारीफे हुसैन शाही | ||
+दीवान-ए-हाफिज | +दीवान-ए-हाफिज | ||
-रज़्मनामा | -[[रज़्मनामा]] | ||
||1610ई. से 1620ई. के मध्य गोलकुंडा में 'दीवान-ए-हाफिज' सचित्र पोथी चित्रित की गई। | ||1610ई. से 1620ई. के मध्य [[गोलकुंडा]] में 'दीवान-ए-हाफिज' सचित्र पोथी चित्रित की गई। | ||
{मिर्जापुर की गुफ़ाओं में सर्वाधिक चित्र इस विषय पर हैं- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-19,प्रश्न-2 | {मिर्जापुर की गुफ़ाओं में सर्वाधिक चित्र इस विषय पर हैं- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-19,प्रश्न-2 | ||
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-पारिवारिक | -पारिवारिक | ||
-नृत्य | -नृत्य | ||
||[[उत्तर प्रदेश]] में स्थित [[ | ||[[उत्तर प्रदेश]] में स्थित [[मिर्ज़ापुर]] की गुफ़ाओं में सर्वाधिक चित्र पशु-आखेट के हैं। यह चित्र मिर्ज़ापुर जिले के विभिन्न क्षेत्रों से प्राप्त हुई हैं। रौंप तथा घोड़मंगर गुफ़ा में कॉकबर्न ने गैंडे के आखेट दृश्य अंकित पाए थे। भल्डरिया में शिलाश्रयों तथा गुफाओं में कॉकबर्न ने (वर्ष 1883 में) अनेकानेक पशु-आखेट चित्र अंकित पाए। | ||
{अंत्येष्टि संस्कारों की कला किसे कहते हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-210,प्रश्न-189 | {अंत्येष्टि संस्कारों की कला किसे कहते हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-210,प्रश्न-189 | ||
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+[[मिस्र]] की कला को | +[[मिस्र]] की कला को | ||
-ग्रीक कला को | -ग्रीक कला को | ||
||[[मिस्र]] की कला सबसे अधिक मृत्यु संबंधी और | ||[[मिस्र]] की कला सबसे अधिक मृत्यु संबंधी और अंत्येष्टि क्रिया से संबंधित है। इस कला का केंद्र जहां से उत्कृष्ट उदाहरण प्राप्त हुए हैं, मृतक प्राणों का स्मारक रहा है। यहां से चित्रों की लिपि में लिखी एक पुस्तक प्राप्त हुई है जिसे 'मृतकों की पुस्तक' अथवा 'स्वर्गवासियों की पुस्तक' कहते हैं। इसकी खोज जर्मन-मिस्रविद् कार्ल रिचर्ड लेप्सियस ने की जिन्होंने वर्ष 1842 में कुछ पुस्तकों को चयन कर प्रकाशित कराया था। | ||
{[[उत्तर भारत]] में [[कंपनी शैली]] का प्रमुख केंद्र था- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-76,प्रश्न-4 | {[[उत्तर भारत]] में [[कंपनी शैली]] का प्रमुख केंद्र था- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-76,प्रश्न-4 | ||
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+[[पटना]] | +[[पटना]] | ||
-[[नैनीताल]] | -[[नैनीताल]] | ||
||पटना कला शैली का विकास यूरोपीय एवं भारतीय शैली के सम्मिश्रण से हुआ। इसका दूसरा नाम 'कंपनी शैली' भी है। अंग्रेजी प्रशासन तथा व्यापार का विशिष्ट केंद्र होने के कारण पटना में | ||पटना कला शैली का विकास यूरोपीय एवं भारतीय शैली के सम्मिश्रण से हुआ। इसका दूसरा नाम 'कंपनी शैली' भी है। [[अंग्रेजी]] प्रशासन तथा व्यापार का विशिष्ट केंद्र होने के कारण पटना में [[अंग्रेज़]] व्यापारी, धनाढ्य तथा कंपनी के अधिकारी निवास करते थे। इनके आश्रय में अलाकार 'एंग्लो इंडियन स्टाइल' चित्रण करते थे। 'अर्द्ध-यूरोपीय ढंग' से पूर्व-पाश्चात्य मिश्रण के आधार पर पटना शैली में पशु-पक्षी, प्राकृतिक चित्र, लघु चित्र, भारतीय जनमानस तथा पारिवारिक चित्र बनाए गए। पटना शैली के कलाकारों ने अबरक (अभ्रक) के पत्रों पर अतिलधु चित्रों का निर्माण आरंभ किया। | ||
{असंबद्ध शब्द बताइए- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-171,प्रश्न-38 | {असंबद्ध शब्द बताइए- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-171,प्रश्न-38 | ||
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-17वीं शती | -17वीं शती | ||
-20वीं शती | -20वीं शती | ||
||'चौरपंचाशिका' 16वीं शताब्दी (1540 ई.) में कश्मीरी कवि विल्हण द्वारा लिखी गयी थी। राजस्थानी ([[मेवाड़]]) शैली में | ||'चौरपंचाशिका' 16वीं शताब्दी (1540 ई.) में कश्मीरी कवि विल्हण द्वारा लिखी गयी थी। राजस्थानी ([[मेवाड़]]) शैली में 16वीं शताब्दी में इस पुस्तक का चित्रण किया गया है। | ||
12:28, 10 जनवरी 2018 का अवतरण
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