"प्रयोग:कविता सा.-2": अवतरणों में अंतर
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कविता भाटिया (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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{ | {सामान्य पेंसिल में कौन-सी सामग्री प्रयुक्त होती है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-170,प्रश्न-29 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | +ग्रेफाइट | ||
-कार्बन | |||
- | -लोहा | ||
-हीरा | |||
||ग्रेफाइट, सिलेटी [[रंग]] का पदार्थ है जिसे पेंसिल में प्रयोग किया जाता है। 18वीं सदी तक छोटी तूलिका को पेंसिल कहा जाता था परंतु वर्तमान में ग्रेफाइट से बनी वर्तिका को पेंसिल कहते हैं। | |||
{ | {चित्र में कितने रस दिखाई देते हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-179,प्रश्न-20 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | +9 | ||
-6 | |||
- | -5 | ||
- | -10 | ||
||[[ | ||'विष्णु-धर्मोत्तर पुराण' के 'चित्रसूत्र' में नौ रसों की चर्चा मिलती है। चित्र के लिए शृंगार, हास्य, वीर, करूण, रौद्र, भयानक, वीभत्स, अद्भुत तथा शांत रसों का वर्णन किया गया है। | ||
{संगीत नाटक अकादमी' का स्थापना वर्ष क्या हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-185,प्रश्न-26 | |||
|type="()"} | |||
-1959 | |||
-1954 | |||
-1945 | |||
+1952 | |||
||[[31 मई]], 1952 को तत्कालीन शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के हस्ताक्षर से पारित प्रस्ताव द्वारा सबसे पहले नृत्य, नाटक और संगीत के लिए राष्ट्रीय अकादमी के रूप में संगीत नाटक अकादमी की स्थापना हुई। 28 जनवरी, 1953 को [[भारत]] के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संगीत नाटक अकादमी का विधिवत उद्घाटन किया। स्थापना का वर्ष दिए गए किसी भी विकल्प में नहीं है जबकि विकल्प उद्घाटन का वर्ष है। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड ने अपने प्रारंभिक उत्तर-कुंजी में इस प्रश्न का उत्तर (d) माना था किंतु परिवर्तित उत्तर कुंजी में ओस प्रशन को गलत बताया है। | |||
{राघव कनेरिया को किस रूप में जाना जाता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-195,प्रश्न-76 | |||
|type="()"} | |||
-फोटोग्राफर | |||
-ग्राफिक आर्टिस्ट | |||
+मूर्तिकार | |||
-चित्रकार | |||
||राधव कनेरिया को मूर्तिकार के रूप में जाना जाता है। इनका जन्म वर्ष 1936 में गुजरात में हुआ। इन्हें कला के क्षेत्र में योगदान देने के लिए ललित कला अकादमी का राष्ट्रीय पुरस्कार, बॉम्बे आर्ट सोसाइटी का राज्यपाल पदक, राष्ट्रपति सिल्वर पट्टिका पुरस्कार, कलारत्न पुरस्कार आदि प्रदान किया गया। | |||
राजस्थान के प्रसिद्ध चित्र 'ढोलामारू' राजा व रानी किस पशु पर सवार चित्रित हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-207,प्रश्न-167|type="()"} | |||
-हाथी | |||
+ऊंट | |||
-घोड़ा | |||
-उपर्युक्त में से कोई नहीं | |||
||ढोलामारू 11वीं शताब्दी में रचित एक लोक-भाषा काव्य है। मूलत: दोहों में रचित इस लोक काव्य को सत्रहवीं शताब्दी में कुशलराय वाचक ने कुछ चौपाइयां जोड़कर विस्तार दिया। इसमें नटवर के राजकुमार ढोला और राजकुमारी मारू की प्रेमकथा का वर्णन है। ढोलामारू का चित्र मेवाड़ क्षेत्र से संबंधित है जिस पर राजा और रानी को ऊंट पर सावार चित्रित किया गया है। | |||
{'लाफिर के अनुसार भारत में चित्रकला का जन्म हुआ? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-236,प्रश्न-374 | |||
|type="()"} | |||
+दरबारों में | |||
-समाज में | |||
-युद्धों में | |||
-वेदों में | |||
||'लाफिर' के अनुसार [[भारत]] में [[चित्रकला]] का जन्म दरबारों में हुआ, पुजारियों के प्रभावस्वरूप नहीं। | |||
{भीमबेटका, लखनियादारी, पंचमढ़ी प्रसिद्ध हैं- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-19,प्रश्न-12 | |||
|type="()"} | |||
-बौद्ध स्तूप के लिए | |||
+प्रागैतिहासिक चित्र के लिए | |||
-विष्णु मंदिर के लिए | |||
-गुफा के लिए | |||
||भीमबेटका, लखनियादरी और पंचमढ़ी भारत के प्रागैतिहासिक चित्रों के केंद्र के रूप में प्रसिद्ध हैं। पंचमढ़ी के गुफाओं एवं शिलाश्रयों से जो प्रागैतिहासिक चित्र प्राप्त हुए हैं, उनमें मुख्य रूप से पशु तथा आखेट दृश्य के अतिरिक्त आदि-मानव के क्रिया-कलापों के चित्र मिलते हैं। | |||
{ | {सित्तनावसल, बाघ तथा मातानचेरी किसलिए प्रसिद्ध हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-27,प्रश्न-34 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -स्थापत्य | ||
- | +भित्तिचित्र | ||
- | -टेराकोटा | ||
+ | -वास्तुकला | ||
||[[ | ||सित्तनावसल, बाघ तथा मातानचेरी भित्तिचित्र के लिए प्रसिद्ध हैं। | ||
{सित्तनवासल गुफा कहां है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-42,प्रश्न-20 | |||
|type="()"} | |||
-केरल | |||
+तमिलनाडु | |||
-आंध्र प्रदेश | |||
-कर्नाटक | |||
|सित्तनवासल गुफा जैन धर्म से संबंधित है। यह एक जैन मंदिर है, जिसे चट्टानों को काटकर बनाया गया है। यह सित्तनवासल गांव, पुडुकोट्टई जिला, तमिलनाडु में अवस्थित है। | |||
{त्रिनाले आयोजित होती है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-210,प्रश्न-186 | |||
|type="()"} | |||
+[[दिल्ली]] | |||
-[[मुंबई]] में | |||
-[[कोलकाता]] में | |||
-[[चेन्नई]] में | |||
||ललित कला अकादमी हर तीसरे वर्ष कला त्रैवार्षिकी (त्रिनाले इंडिया) का आयोजन [[दिल्ली]] में करता है जो अंतर्राष्ट्रीय [[चित्रकला]] प्रदर्शनी होती है। इसका आयोजन संस्कृति मंत्रालय द्वारा वर्ष 1968 से ही हो रहा है। | |||
{दिलवाड़ा मंदिर है, इसका- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-224,प्रश्न-287 | |||
|type="()"} | |||
-टेराकोटा | |||
-बलुआ पत्थर मूर्तिकला | |||
+संगमरमर मूर्तिकला | |||
-प्लास्टर मूर्तिकला | |||
||दिलवाड़ा का जैन मंदिर माउंड आबू (सिरोही, राजस्तान) में स्थित है। इनमें सबसे प्रसिद्ध विमल वासाही मंदिर है। चालुक्य शासक भीमदेव प्रथम (1022-1064 ई.) के सामंत विमल शाह ने इसे बनवाया था। यहां के मंदिर संगमरमर (मकराना मार्बल) की नक्काशी से सुसज्जित हैं। | |||
{हुमांयू का दरबारी [[चित्रकार]] कहां का रहने वाला था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-65,प्रश्न-68 | |||
|type="()"} | |||
+[[ईरान]] | |||
-काबुल | |||
-[[अफगानिस्तान]] | |||
-ताशकंद | |||
||1544ई. के लगभग जब हुमांयू कबुल लौट रहा था तो तबंरेज में उसकी मुलाकार दो महान ईरानी चित्रकारों से हुई, वे थे-'ख्वाजा अब्दुस्समद शीराजी' और 'मीर सैयद अली'। 'अब्दुस्समद शीराजी' पशु चित्रण करने में पारंगत था और मीर सैयद अली 'ग्राम्य चित्रण करने में, बाद में दोनों कलाकार हुमांयू के दरबारी चित्रकार के रूप में नियुक्त हुए जिनकी अध्यक्षता में अकनर मे चित्रकारी की प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की, किंतु हिंदुस्तान की पुनर्विजय के बाद वह अधिक समय तक जीवित न रहा। अकबर ने गद्दी पर बैठने के बाद चित्रकला का एक नया विभाग खोल दिया। इसका अध्यक्ष अब्दुस्समद को बनाया गया। | |||
{पटना शैली चित्रों का दूसरा नाम क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-76,प्रश्न-2 | |||
|type="()"} | |||
+कंपनी शैली | |||
-बंगाल शैली | |||
-मुगल-राजपूत शैली | |||
-बिहार शैली | |||
||पटना कला शैली का विकास यूरोपीय एवं भारतीय शैली के सम्मिश्रण से हुआ। इसका दूसरा नाम 'कंपनी शैली' भी है। अंग्रेजी प्रशासन तथा व्यापार का विशिष्ट केंद्र होने के कारण पटना में अंग्रेज व्यापारी, धनाढ्य तथा कंपनी के अधिकारी निवास करते थे। इनके आश्रय में अलाकार 'एंग्लो इंडियन स्टाइल' चित्रण करते थे। 'अर्द्ध-यूरोपीय ढंग' से पूर्व-पाश्चात्य मिश्रण के आधार पर पटना शैली में पशु-पक्षी, प्राकृतिक चित्र, लघु चित्र, भारतीय जनमानस तथा पारिवारिक चित्र बनाए गए। पटना शैली के कलाकारों ने अबरक (अभ्रक) के पत्रों पर अतिलधु चित्रों का निर्माण आरंभ किया। | |||
{[[रबीन्द्रनाथ टैगोर]] रचित 'गीतांजलि' के लिए चित्रण-कार्य किया था- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-83,प्रश्न-44 | |||
|type="()"} | |||
+नंदलाल बोस ने | |||
-गगनेन्द्रनाथ ठाकुर ने | |||
-अबनीन्द्रनाथ ठाकुर ने | |||
-स्वयं रबीन्द्रनाथ टैगोर ने | |||
||[[नंदलाल बोस]] ने [[रबीन्द्रनाथ टैगोर]] की साहित्यिक कृतियों के लिए चित्रण कार्य किया था, जिसमें गीतांजलि के लिए किया गया चित्रण महत्त्वपूर्ण है। | |||
{प्रागैतिहासिक चित्रों में किसका महत्त्व है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-162,प्रश्न-38 | |||
|type="()"} | |||
+रेखा | |||
-[[रंग]] | |||
-रेखा-रंग | |||
-प्रकृति | |||
</quiz> | </quiz> | ||
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12:26, 26 दिसम्बर 2017 का अवतरण
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