"ऐ मेरे वतन के लोगों": अवतरणों में अंतर
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सन [[1962]] में [[भारत-चीन युद्ध (1962)|भारत-चीन युद्ध]] में [[चीन]] से पराजय के बाद पूरा [[भारत]] हीनता के सागर में डूब गया था। [[26 जनवरी]], [[1963]] को [[प्रधानमंत्री]] [[जवाहर लाल नेहरू]] ने शहीद सैनिकों की याद में [[दिल्ली]] के नेशनल स्टेडियम में एक विशेष श्रद्धांजलि सभा का आयोजन कराया था। इस समारोह में [[लता मंगेशकर]] को एक गीत गाना था। कवि प्रदीप से विशेष आग्रह किया गया था कि वे इस कार्यक्रम के लिए एक शानदार गीत लिखें। प्रदीप परेशान हो उठे कि किस प्रकार एक ऐसा गीत लिखा जाए जो अमर हो जाए। एक शाम वे घूमने के लिए घर से बाहर निकले तो अचानक उनके [[हृदय]] में ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गीत के शब्द आ गए। इन शब्दों को वे भूल न जाएँ, इसीलिए पान की दुकान से एक सिगरेट का पैकेट खरीदा और उसे फाड़कर तत्काल ही वे शब्द उस पर लिख डाले। | सन [[1962]] में [[भारत-चीन युद्ध (1962)|भारत-चीन युद्ध]] में [[चीन]] से पराजय के बाद पूरा [[भारत]] हीनता के सागर में डूब गया था। [[26 जनवरी]], [[1963]] को [[प्रधानमंत्री]] [[जवाहर लाल नेहरू]] ने शहीद सैनिकों की याद में [[दिल्ली]] के नेशनल स्टेडियम में एक विशेष श्रद्धांजलि सभा का आयोजन कराया था। इस समारोह में [[लता मंगेशकर]] को एक गीत गाना था। कवि प्रदीप से विशेष आग्रह किया गया था कि वे इस कार्यक्रम के लिए एक शानदार गीत लिखें। प्रदीप परेशान हो उठे कि किस प्रकार एक ऐसा गीत लिखा जाए जो अमर हो जाए। एक शाम वे घूमने के लिए घर से बाहर निकले तो अचानक उनके [[हृदय]] में ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गीत के शब्द आ गए। इन शब्दों को वे भूल न जाएँ, इसीलिए पान की दुकान से एक सिगरेट का पैकेट खरीदा और उसे फाड़कर तत्काल ही वे शब्द उस पर लिख डाले। | ||
==लता द्वारा गायन== | ==लता द्वारा गायन== | ||
[[दिल्ली]] में श्रद्धांजलि समारोह का संचालन [[दिलीप कुमार]] कर रहे थे। जैसे ही लता जी का नाम लिया गया, वे मंच पर आ गईं। माइक सम्भाला तो [[सी. रामचंद्र]] का आर्केस्ट्रा बज उठा। लता जी ने प्रदीप का गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख में भर लो पानी’ गाया। गीत की एक-एक पंक्ति श्रोताओं के हृदय में उतरती चली गई। हृदय भर उठे, आँखें उमड़ पड़ीं। पण्डित जवाहर लाल नेहरू रो पड़े, संयम के बावजूद लता मंगेशकर का गला भर आया। गीत की समाप्ति के बाद ऐसे मार्मिक गीत के रचयिता प्रदीप के बारे में नेहरू जी ने पूछा। पता चला कि आयोजकों ने उन्हें बुलाया नहीं है। पण्डित नेहरू निराश हो गए। सत्य तो यह था कि प्रदीप के बहुत जोर देने पर ही लता जी ने यह गीत गाया था, अन्यथा कुछ वर्षों से वे सी. रामचंद्र के निर्देशन में गीत नहीं गा रही थीं। | [[दिल्ली]] में श्रद्धांजलि समारोह का संचालन [[दिलीप कुमार]] कर रहे थे। जैसे ही लता जी का नाम लिया गया, वे मंच पर आ गईं। माइक सम्भाला तो [[सी. रामचंद्र]] का आर्केस्ट्रा बज उठा। लता जी ने प्रदीप का गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख में भर लो पानी’ गाया। गीत की एक-एक पंक्ति श्रोताओं के हृदय में उतरती चली गई। हृदय भर उठे, आँखें उमड़ पड़ीं। पण्डित जवाहर लाल नेहरू रो पड़े, संयम के बावजूद लता मंगेशकर का गला भर आया। गीत की समाप्ति के बाद ऐसे मार्मिक गीत के रचयिता प्रदीप के बारे में नेहरू जी ने पूछा। पता चला कि आयोजकों ने उन्हें बुलाया नहीं है। पण्डित नेहरू निराश हो गए। सत्य तो यह था कि प्रदीप के बहुत जोर देने पर ही लता जी ने यह गीत गाया था, अन्यथा कुछ वर्षों से वे सी. रामचंद्र के निर्देशन में गीत नहीं गा रही थीं।<ref name="aa">आभार- अहा! ज़िंदगी, फ़रवरी 2015</ref> | ||
==प्रदीप की नेहरू जी से भेंट== | ==प्रदीप की नेहरू जी से भेंट== | ||
[[दिल्ली]] में इस गीत के गायन के कुछ हफ़्तों बाद ही जब [[जवाहर लाल नेहरू]] [[मुम्बई]] पहुँचे तो उन्होंने प्रदीप की तलाश करवाई। वे एक स्कूल में थे तो वे वहीं जा पहुँचे और ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ उनके कंठ से सुना। पण्डित जी ने कहा- "भई तुम तो गाते भी इतना अच्छा हो, यहाँ तो ऑर्केस्ट्रा भी नहीं है।" कवि प्रदीप ने मात्र इतना ही कहा- "यह गीत मेरे [[हृदय]] की वेदना का प्रतीक है, जिसके लिए वाद्य सामग्री की आवश्यकता नहीं होती है।" इसी मुलाकात के बाद नेहरू जी को पता चला कि ‘[[चल चल रे नौजवान|चल-चल रे नौजवान]]’ और ‘[[दूर हटो ऐ दुनिया वालों]]’ गीत भी प्रदीप ने ही लिखे थे। उन्हें यह भी पता चला कि छात्र जीवन में प्रदीप [[इलाहाबाद]] स्थित उनके निवास ‘आनन्द भवन’ के पीछे रहते थे। नेहरू जी ने कहा था कि- "यदि कोई ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ से प्रभावित नहीं होता है तो वह सच्चा हिन्दुस्तानी नहीं है।" | [[दिल्ली]] में इस गीत के गायन के कुछ हफ़्तों बाद ही जब [[जवाहर लाल नेहरू]] [[मुम्बई]] पहुँचे तो उन्होंने प्रदीप की तलाश करवाई। वे एक स्कूल में थे तो वे वहीं जा पहुँचे और ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ उनके कंठ से सुना। पण्डित जी ने कहा- "भई तुम तो गाते भी इतना अच्छा हो, यहाँ तो ऑर्केस्ट्रा भी नहीं है।" कवि प्रदीप ने मात्र इतना ही कहा- "यह गीत मेरे [[हृदय]] की वेदना का प्रतीक है, जिसके लिए वाद्य सामग्री की आवश्यकता नहीं होती है।" इसी मुलाकात के बाद नेहरू जी को पता चला कि ‘[[चल चल रे नौजवान|चल-चल रे नौजवान]]’ और ‘[[दूर हटो ऐ दुनिया वालों]]’ गीत भी प्रदीप ने ही लिखे थे। उन्हें यह भी पता चला कि छात्र जीवन में प्रदीप [[इलाहाबाद]] स्थित उनके निवास ‘आनन्द भवन’ के पीछे रहते थे। नेहरू जी ने कहा था कि- "यदि कोई ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ से प्रभावित नहीं होता है तो वह सच्चा हिन्दुस्तानी नहीं है।" | ||
‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ का जब अधिकार बेचने का प्रस्ताव आया तो प्रदीप ने कहा कि “जिस गीत के शब्दों के किनारे जवाहर लाल नेहरू के आँसुओं की झालर लगी हो, उसे बेचा नहीं जा सकता।“ इस गीत से होने वाली आय उन्होंने सैनिक कल्याण कोष में दान कर दी। [[लता मंगेशकर]] ने इस गीत को गाने की कोई फीस नहीं ली। उन्होंने [[1997]] में कवि प्रदीप को इस गीत के लिए एक लाख रुपये का व्यक्तिगत पुरस्कार दिया। | ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ का जब अधिकार बेचने का प्रस्ताव आया तो प्रदीप ने कहा कि “जिस गीत के शब्दों के किनारे जवाहर लाल नेहरू के आँसुओं की झालर लगी हो, उसे बेचा नहीं जा सकता।“ इस गीत से होने वाली आय उन्होंने सैनिक कल्याण कोष में दान कर दी। [[लता मंगेशकर]] ने इस गीत को गाने की कोई फीस नहीं ली। उन्होंने [[1997]] में कवि प्रदीप को इस गीत के लिए एक लाख रुपये का व्यक्तिगत पुरस्कार दिया।<ref name="aa"/> | ||
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12:00, 9 फ़रवरी 2015 का अवतरण
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ऐ मेरे वतन के लोगों देशभक्ति से परिपूर्ण प्रसिद्ध कवि और गायक प्रदीप द्वारा लिखा गया गीत है। कवि प्रदीप को गगनचुम्बी गौरव, प्राणेय प्रशंसा और आत्म-संतुष्टि इस गैर-फ़िल्मी गीत से मिली थी, जिसने लोकप्रियता के अभूतपूर्व कीर्तिमान निर्मित किए। यह गीत उन्होंने फ़िल्मी जगत में रहते हुए लिखा था।
गीत की रचना
सन 1962 में भारत-चीन युद्ध में चीन से पराजय के बाद पूरा भारत हीनता के सागर में डूब गया था। 26 जनवरी, 1963 को प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने शहीद सैनिकों की याद में दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में एक विशेष श्रद्धांजलि सभा का आयोजन कराया था। इस समारोह में लता मंगेशकर को एक गीत गाना था। कवि प्रदीप से विशेष आग्रह किया गया था कि वे इस कार्यक्रम के लिए एक शानदार गीत लिखें। प्रदीप परेशान हो उठे कि किस प्रकार एक ऐसा गीत लिखा जाए जो अमर हो जाए। एक शाम वे घूमने के लिए घर से बाहर निकले तो अचानक उनके हृदय में ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गीत के शब्द आ गए। इन शब्दों को वे भूल न जाएँ, इसीलिए पान की दुकान से एक सिगरेट का पैकेट खरीदा और उसे फाड़कर तत्काल ही वे शब्द उस पर लिख डाले।
लता द्वारा गायन
दिल्ली में श्रद्धांजलि समारोह का संचालन दिलीप कुमार कर रहे थे। जैसे ही लता जी का नाम लिया गया, वे मंच पर आ गईं। माइक सम्भाला तो सी. रामचंद्र का आर्केस्ट्रा बज उठा। लता जी ने प्रदीप का गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख में भर लो पानी’ गाया। गीत की एक-एक पंक्ति श्रोताओं के हृदय में उतरती चली गई। हृदय भर उठे, आँखें उमड़ पड़ीं। पण्डित जवाहर लाल नेहरू रो पड़े, संयम के बावजूद लता मंगेशकर का गला भर आया। गीत की समाप्ति के बाद ऐसे मार्मिक गीत के रचयिता प्रदीप के बारे में नेहरू जी ने पूछा। पता चला कि आयोजकों ने उन्हें बुलाया नहीं है। पण्डित नेहरू निराश हो गए। सत्य तो यह था कि प्रदीप के बहुत जोर देने पर ही लता जी ने यह गीत गाया था, अन्यथा कुछ वर्षों से वे सी. रामचंद्र के निर्देशन में गीत नहीं गा रही थीं।[1]
प्रदीप की नेहरू जी से भेंट
दिल्ली में इस गीत के गायन के कुछ हफ़्तों बाद ही जब जवाहर लाल नेहरू मुम्बई पहुँचे तो उन्होंने प्रदीप की तलाश करवाई। वे एक स्कूल में थे तो वे वहीं जा पहुँचे और ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ उनके कंठ से सुना। पण्डित जी ने कहा- "भई तुम तो गाते भी इतना अच्छा हो, यहाँ तो ऑर्केस्ट्रा भी नहीं है।" कवि प्रदीप ने मात्र इतना ही कहा- "यह गीत मेरे हृदय की वेदना का प्रतीक है, जिसके लिए वाद्य सामग्री की आवश्यकता नहीं होती है।" इसी मुलाकात के बाद नेहरू जी को पता चला कि ‘चल-चल रे नौजवान’ और ‘दूर हटो ऐ दुनिया वालों’ गीत भी प्रदीप ने ही लिखे थे। उन्हें यह भी पता चला कि छात्र जीवन में प्रदीप इलाहाबाद स्थित उनके निवास ‘आनन्द भवन’ के पीछे रहते थे। नेहरू जी ने कहा था कि- "यदि कोई ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ से प्रभावित नहीं होता है तो वह सच्चा हिन्दुस्तानी नहीं है।"
‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ का जब अधिकार बेचने का प्रस्ताव आया तो प्रदीप ने कहा कि “जिस गीत के शब्दों के किनारे जवाहर लाल नेहरू के आँसुओं की झालर लगी हो, उसे बेचा नहीं जा सकता।“ इस गीत से होने वाली आय उन्होंने सैनिक कल्याण कोष में दान कर दी। लता मंगेशकर ने इस गीत को गाने की कोई फीस नहीं ली। उन्होंने 1997 में कवि प्रदीप को इस गीत के लिए एक लाख रुपये का व्यक्तिगत पुरस्कार दिया।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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