"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/2": अवतरणों में अंतर
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||[[चित्र:Lokmanya-Bal-Gangadhar-Tilak.jpg| | ||[[चित्र:Lokmanya-Bal-Gangadhar-Tilak.jpg|80px|right|बाल गंगाधर तिलक]]वर्ष 1915-1916 में दो होमरूल लीगों की स्थापना हुई। एक के नेता [[लोकमान्य तिलक]] थे और दूसरी का नेतृत्व [[एनी बेसेंट]], और '[[एस. सुब्रह्मण्य अय्यर]]' ने किया। दोनों होमरूल लीगों ने युद्ध के बाद [[भारत]] को होमरूल या स्वराज्य देने देने की मांग के पक्ष में सारे भारत में जोरदार प्रचार किया। इसी आन्दोलन के दौरान लोकमान्य तिलक ने यह लोकप्रिय नारा दिया- '''स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूँगा'''। दोनों लीगों ने तेज़ी से प्रगति की और स्वराज्य का नारा सारे भारत में गूँज उठा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[इंडियन होमरूल लीग|होमरूल लीग]] | ||
{[[तमिलनाडु|तमिल]] राष्ट्र में [[दुर्गा]] का तादात्म्य तमिल देवी 'कोरवई' से किया गया है; वे किस [[तत्व]] की तमिल देवी थीं? | {[[तमिलनाडु|तमिल]] राष्ट्र में [[दुर्गा]] का तादात्म्य तमिल देवी 'कोरवई' से किया गया है; वे किस [[तत्व]] की तमिल देवी थीं? | ||
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+[[समावर्तन संस्कार|समावर्तन]] | +[[समावर्तन संस्कार|समावर्तन]] | ||
-[[सीमन्तोन्नयन संस्कार|सीमन्तोन्नयन]] | -[[सीमन्तोन्नयन संस्कार|सीमन्तोन्नयन]] | ||
||[[चित्र:Vedic-Tradition-1.jpg|right| | ||[[चित्र:Vedic-Tradition-1.jpg|right|120px|वेद-वेदांग का अध्ययन]][[हिन्दू धर्म]] में मान्य [[सोलह संस्कार|सोलह संस्कारों]] में '[[समावर्तन संस्कार]]' द्वादश संस्कार है। यह संस्कार विद्याध्ययन पूर्ण हो जाने पर किया जाता है। पाँच वर्ष की अवस्था तक ब्रह्मचर्यपूर्वज गुरुकुल में रहकर गुरु से समस्त [[वेद]]-[[वेदांग|वेदांगों]] की शिक्षा प्राप्त करके, शिष्य जब गुरु की कसौटी पर खरा उतर जाता थ, तब गुरु उसकी शिक्षा पूर्ण होने के प्रतीकस्वरूप उसका 'समावर्तन-संस्कार' करते थे। यह [[संस्कार]] एक या अनेक शिष्यों का एक साथ भी होता था। वर्तमान युग में भी यह संस्कार विश्वविद्यालयों में होता है, किंतु उसका रूप व उद्देश्य बदल गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[समावर्तन संस्कार]] | ||
{निम्नलिखित में से किसने [[भारत]] के भागों से कर संग्रह किया? | {निम्नलिखित में से किसने [[भारत]] के भागों से कर संग्रह किया? | ||
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-[[बैरम ख़ाँ]] की प्रतिशासन व्यवस्था - 1556 से 1560 ई. | -[[बैरम ख़ाँ]] की प्रतिशासन व्यवस्था - 1556 से 1560 ई. | ||
-[[पुरन्दर की सन्धि]] - 1665 ई. | -[[पुरन्दर की सन्धि]] - 1665 ई. | ||
||[[चित्र:Shershah-Suri.jpg|right| | ||[[चित्र:Shershah-Suri.jpg|right|80px|शेरशाह]]'चौसा का युद्ध' [[भारतीय इतिहास]] में लड़े गये महत्त्वपूर्ण युद्धों में से एक है। यह युद्ध [[26 जून]], 1539 ई. को [[मुग़ल]] बादशाह [[बाबर]] के पुत्र [[हुमायूँ]] एवं शेर ख़ाँ ([[शेरशाह]]) की सेनाओं के मध्य [[गंगा नदी]] के उत्तरी तट पर स्थित '[[चौसा]]' नामक स्थान पर लड़ा गया था। चौसा का यह महत्त्वपूर्ण युद्ध हुमायूँ अपनी कुछ ग़लतियों के कारण हार गया। युद्ध में मुग़ल सेना की काफ़ी तबाही हुई और उसे बहुत नुकसान उठाना पड़ा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चौसा का युद्ध]] | ||
{प्रथम [[मुग़ल]] सम्राट [[बाबर]] द्वारा जो सूफ़ी सिलसिला [[भारत]] में लोकप्रिय हुआ, वह था- | {प्रथम [[मुग़ल]] सम्राट [[बाबर]] द्वारा जो सूफ़ी सिलसिला [[भारत]] में लोकप्रिय हुआ, वह था- |
07:23, 21 जनवरी 2013 का अवतरण
इतिहास सामान्य ज्ञान
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