"जम्मू और कश्मीर का जनजीवन": अवतरणों में अंतर
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[[जम्मू और कश्मीर]] की भू-आकृति की विविधता के कारण इस क्षेत्र में लोगों के व्यवसायों में भी भारी विविधता पाई जाती है। लोगों के [[पंजाब]] से आकर बसने की दीर्घकालीन प्रवृत्ति के कारण मैदानों और तराइयों में [[कृषि]] बस्तियाँ हैं। लोग और उनकी संस्कृति, दोनों की पंजाब के पड़ोसी क्षेत्रों और पश्चिम की अन्य निम्नभूमि के समरूप है। जहाँ जलाढ़ [[मिट्टी]] और सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धि ने खेती को सम्भव बनाया है। जैसा की दूनों और निचली घाटियों में हुआ। जनसंख्या [[गेहूँ]] और जौ कि फ़सलों पर निर्भर है। यह फ़सल बसन्त (रबी) में काटी जाती है और [[चावल]] तथा मक्का ग्रीष्म के अंत (ख़रीफ़) की फ़सलें हैं, साथ ही पशुपालन भी विरल है और मक्का की खेती, पशुपालन और वन्य उपजों पर निर्भर है। दक्षिणी मैदानी बाज़ारों के लिए [[दूध]] और शुद्ध घी के उत्पादन के लिए बसन्त में ऊँचे चरागाहों की ओर प्रवास ज़रूरी होता है। शीत ऋतु में पहाड़ियों के निवासी निचले क्षेत्रों में लौट आते हैं और शासकीय वनों या लकड़ी की मिलों में काम करते हैं। खेतिहर छोटी बस्तियों और गाँवों की बहुतायत है। [[जम्मू]] और [[उधमपुर]] जैसे नगर ग्रामीण और आसपास के इस्टेट के लिए बाज़ार केन्द्र व प्रशासनिक मुख्यालय का काम करते हैं। | [[जम्मू और कश्मीर]] की भू-आकृति की विविधता के कारण इस क्षेत्र में लोगों के व्यवसायों में भी भारी विविधता पाई जाती है। लोगों के [[पंजाब]] से आकर बसने की दीर्घकालीन प्रवृत्ति के कारण मैदानों और तराइयों में [[कृषि]] बस्तियाँ हैं। लोग और उनकी संस्कृति, दोनों की पंजाब के पड़ोसी क्षेत्रों और पश्चिम की अन्य निम्नभूमि के समरूप है। जहाँ जलाढ़ [[मिट्टी]] और सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धि ने खेती को सम्भव बनाया है। जैसा की दूनों और निचली घाटियों में हुआ। जनसंख्या [[गेहूँ]] और जौ कि फ़सलों पर निर्भर है। यह फ़सल बसन्त (रबी) में काटी जाती है और [[चावल]] तथा मक्का ग्रीष्म के अंत (ख़रीफ़) की फ़सलें हैं, साथ ही पशुपालन भी विरल है और मक्का की खेती, पशुपालन और वन्य उपजों पर निर्भर है। दक्षिणी मैदानी बाज़ारों के लिए [[दूध]] और शुद्ध घी के उत्पादन के लिए बसन्त में ऊँचे चरागाहों की ओर प्रवास ज़रूरी होता है। शीत ऋतु में पहाड़ियों के निवासी निचले क्षेत्रों में लौट आते हैं और शासकीय वनों या लकड़ी की मिलों में काम करते हैं। खेतिहर छोटी बस्तियों और गाँवों की बहुतायत है। [[जम्मू]] और [[उधमपुर]] जैसे नगर ग्रामीण और आसपास के इस्टेट के लिए बाज़ार केन्द्र व प्रशासनिक मुख्यालय का काम करते हैं। | ||
==घाटी और पहाड़ी क्षेत्रों के कश्मीरी लोग== | ==घाटी और पहाड़ी क्षेत्रों के कश्मीरी लोग== | ||
[[कश्मीर की घाटी]] और उसके आसपास के ऊँचाई वाले क्षेत्र (मुख्यतः [[कश्मीर]]) ने सदा से अपनी अलग पहचान बनाए रखी है। जनसंख्या का अधिकांश भाग मुस्लिमों का है, जो सांस्कृतिक और मानव विज्ञान की दृष्टि से पाकिस्तानी इलाक़े के गिलगित ज़िले के पश्चिमोत्तर के ऊँचे क्षेत्र के लोगों से निकटतम रूप से सम्बन्धित हैं। जनसंख्या का बड़ा भाग घाटी के निचले इलाक़े में रहता है। जम्मू - कश्मीर राज्य का सबसे बड़ा शहर [[श्रीनगर]] [[झेलम नदी]] पर स्थित है। | [[कश्मीर की घाटी]] और उसके आसपास के ऊँचाई वाले क्षेत्र (मुख्यतः [[कश्मीर]]) ने सदा से अपनी अलग पहचान बनाए रखी है। जनसंख्या का अधिकांश भाग मुस्लिमों का है, जो सांस्कृतिक और मानव विज्ञान की दृष्टि से पाकिस्तानी इलाक़े के गिलगित ज़िले के पश्चिमोत्तर के ऊँचे क्षेत्र के लोगों से निकटतम रूप से सम्बन्धित हैं। जनसंख्या का बड़ा भाग घाटी के निचले इलाक़े में रहता है। जम्मू - कश्मीर राज्य का सबसे बड़ा शहर [[श्रीनगर]] [[झेलम नदी]] पर स्थित है। | ||
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जंगली जानवर, जिनमें साइबेरियाई साकिन (आइबेक्स), लाल लद्दाखी जंगली भेड़, दुर्लभ कश्मीरी हिरन (हंगल) शामिल है, दकिंघम राष्ट्रीय उद्यान में पाए जाते हैं। इनके अलावा काले और भूरे रंग के रीछ, कई शिकार सुलभ चिड़ियाएँ और बड़ी संख्या में प्रवासी बत्तख़ें भी यहाँ पर पाई जाती हैं। | जंगली जानवर, जिनमें साइबेरियाई साकिन (आइबेक्स), लाल लद्दाखी जंगली भेड़, दुर्लभ कश्मीरी हिरन (हंगल) शामिल है, दकिंघम राष्ट्रीय उद्यान में पाए जाते हैं। इनके अलावा काले और भूरे रंग के रीछ, कई शिकार सुलभ चिड़ियाएँ और बड़ी संख्या में प्रवासी बत्तख़ें भी यहाँ पर पाई जाती हैं। | ||
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जम्मू और कश्मीर की भू-आकृति की विविधता के कारण इस क्षेत्र में लोगों के व्यवसायों में भी भारी विविधता पाई जाती है। लोगों के पंजाब से आकर बसने की दीर्घकालीन प्रवृत्ति के कारण मैदानों और तराइयों में कृषि बस्तियाँ हैं। लोग और उनकी संस्कृति, दोनों की पंजाब के पड़ोसी क्षेत्रों और पश्चिम की अन्य निम्नभूमि के समरूप है। जहाँ जलाढ़ मिट्टी और सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धि ने खेती को सम्भव बनाया है। जैसा की दूनों और निचली घाटियों में हुआ। जनसंख्या गेहूँ और जौ कि फ़सलों पर निर्भर है। यह फ़सल बसन्त (रबी) में काटी जाती है और चावल तथा मक्का ग्रीष्म के अंत (ख़रीफ़) की फ़सलें हैं, साथ ही पशुपालन भी विरल है और मक्का की खेती, पशुपालन और वन्य उपजों पर निर्भर है। दक्षिणी मैदानी बाज़ारों के लिए दूध और शुद्ध घी के उत्पादन के लिए बसन्त में ऊँचे चरागाहों की ओर प्रवास ज़रूरी होता है। शीत ऋतु में पहाड़ियों के निवासी निचले क्षेत्रों में लौट आते हैं और शासकीय वनों या लकड़ी की मिलों में काम करते हैं। खेतिहर छोटी बस्तियों और गाँवों की बहुतायत है। जम्मू और उधमपुर जैसे नगर ग्रामीण और आसपास के इस्टेट के लिए बाज़ार केन्द्र व प्रशासनिक मुख्यालय का काम करते हैं।
घाटी और पहाड़ी क्षेत्रों के कश्मीरी लोग
कश्मीर की घाटी और उसके आसपास के ऊँचाई वाले क्षेत्र (मुख्यतः कश्मीर) ने सदा से अपनी अलग पहचान बनाए रखी है। जनसंख्या का अधिकांश भाग मुस्लिमों का है, जो सांस्कृतिक और मानव विज्ञान की दृष्टि से पाकिस्तानी इलाक़े के गिलगित ज़िले के पश्चिमोत्तर के ऊँचे क्षेत्र के लोगों से निकटतम रूप से सम्बन्धित हैं। जनसंख्या का बड़ा भाग घाटी के निचले इलाक़े में रहता है। जम्मू - कश्मीर राज्य का सबसे बड़ा शहर श्रीनगर झेलम नदी पर स्थित है।
प्राणी जीवन
जंगली जानवर, जिनमें साइबेरियाई साकिन (आइबेक्स), लाल लद्दाखी जंगली भेड़, दुर्लभ कश्मीरी हिरन (हंगल) शामिल है, दकिंघम राष्ट्रीय उद्यान में पाए जाते हैं। इनके अलावा काले और भूरे रंग के रीछ, कई शिकार सुलभ चिड़ियाएँ और बड़ी संख्या में प्रवासी बत्तख़ें भी यहाँ पर पाई जाती हैं।
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